Bhagyawat, Author at मणिमहेश https://manimahesh.in/author/bhagyawat/ भगवान् शिव का निवास Sat, 11 Feb 2023 10:40:25 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.2 https://manimahesh.in/wp-content/uploads/2022/01/cropped-om-icon-32x32.png Bhagyawat, Author at मणिमहेश https://manimahesh.in/author/bhagyawat/ 32 32 क्या है शिव तांडव स्त्रोत व इसके लाभ https://manimahesh.in/%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5-%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%b5-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%a4-%e0%a4%b5-%e0%a4%87%e0%a4%b8%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%ad/ Sat, 17 Dec 2022 15:54:14 +0000 https://manimahesh.in/?p=654 शिव तांडव स्त्रोत क्या है व इसके जप से क्या लाभ होते हैं।  हिंदू धर्म में भगवान शिव को उनकी महिमा और क्रोध के लिए जाना जाता है. दुष्ट राक्षस रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्त्रोत की रचना की थी।  शिव तांडव में तांडव शब्द ‘तंदुल’ से बना है […]

The post क्या है शिव तांडव स्त्रोत व इसके लाभ appeared first on मणिमहेश.

]]>
शिव तांडव स्त्रोत क्या है व इसके जप से क्या लाभ होते हैं।  हिंदू धर्म में भगवान शिव को उनकी महिमा और क्रोध के लिए जाना जाता है. दुष्ट राक्षस रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्त्रोत की रचना की थी।  शिव तांडव में तांडव शब्द ‘तंदुल’ से बना है जिसका अर्थ उछलना होता है. तांडव एक तरह का नृत्य है जिसे बेहद उर्जा और शक्ति के साथ किया जाता है. जोश के साथ उछलने से मन-मस्तिष्क को शक्तिशाली किया जाता है. तांडव का नृत्य केवल पुरुषों को करने की ही अनुमति दी गयी है महिलाओं को इस नृत्य पर नाचने पर सदियों से रोक लगाई गई है.

क्या है ‘शिव तांडव स्त्रोत’?

हिंदू महाकाव्य रामायण के उत्तर कांड में यह वर्णन है कि दस सिरों वाले, बीस भुजाओं वाले शक्तिशाली राजा रावण ने कैलाश पर्वत के पास स्थित अपने सौतेले भाई और धन के देवता कुबेर के शहर अलका को हराया और लूट लिया। कुबेर को हराने के बाद, रावण पुष्पक विमान (कुबेर से चुराया गया उड़ने वाला रथ) लेकर लंका लौट रहा था, तब उसने एक खूबसूरत जगह देखी। उसका रथ उसके ऊपर से नहीं उड़ प रहा था।

रावण ने उस स्थान पर शिव के देवता नंदी बैल (नंदीशा, नंदिकेश्वरा) को देखा और अपने रथ के उस स्थान से गुजरने में असमर्थता के पीछे का कारण पूछा। भगवान नंदी ने रावण को बताया कि भगवान शिव और माता पार्वती पहाड़ पर आनंद ले रहे हैं, और किसी को भी वहाँ से जाने की अनुमति नहीं है। रावण ने यह सुनकर भगवान शिव और नंदी का मजाक उड़ाया। अपने स्वामी के अपमान से क्रोधित होकर नंदी ने रावण को श्राप दिया कि वानर उसका सर्वनाश कर देंगे।

रावण भगवान नंदी के श्राप और आगे बढ़ने में असमर्थता के कारण क्रोधित हो गया। उसने कैलाश को उखाड़ने का ही फैसला कर लिया। उसने अपनी सारी बीस भुजाएँ कैलाश के नीचे रख दीं, और उसे उठाने लगा। जैसे ही कैलाश हिलने लगा, माता पार्वती भयभीत हो गई व उन्होंने भगवान शिव को गले लगा लिया। भगवान शिव को यह ज्ञान हो गया कि रावण ही इस खतरे के पीछे है। भगवान शिव ने अपने बड़े पैर के अंगूठे से पहाड़ को दबा दिया, जिससे रावण उसके नीचे फंस गया। रावण दर्द से कराह उठा व रोने लगा।

उसके मंत्रियों द्वारा सलाह दी गई कि रावण एक हजार वर्षों तक शिव की स्तुति में भजन गाए। अंत में, शिव ने न केवल रावण को क्षमा कर दिया, बल्कि उसे चंद्रहास नामक एक अजेय तलवार भी प्रदान की। चूंकि रावण रोया था, इसलिए उसे “रावण” नाम दिया गया था – जो रोया था। रावण द्वारा गाए गए छंद एकत्र किए गए और शिव तांडव स्तोत्र के रूप में जाने गए।

शिव तांडव स्तोत्र के लाभ

  • शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से मन मस्तिष्क शांत रहता है और जीवन में आने वाली बाधायों से मुक्ति मिलती है. जिस प्रकार शिव ने रावण के तांडव मंत्रो को सुन कर उसे माफ़ किया था और उसे कष्ट से मुक्त किया था, इसी प्रकार आप भी सभी कष्टों से मुक्ति पा सकोगे.
  • शिव तांडव स्त्रोत के नियमित रूप से जाप करने से आपको स्वस्थ्य संबंधित रोगों से जल्द छुटकारा मिलता है.
  • शिव तांडव स्त्रोत के जाप से आप ना केवल धनवान बल्कि गुणवान भी बन सकते हो. इससे आपको शिव की विशेष कृपा होगी और जीवन में शांति का अनुभव होगा.
  • यदि आपसे रावण की तरह अनजाने में कोई गलती हो जाती है तो शिव तांडव स्त्रोत (Shiv Tandav Stotra) का पाठ करने से आपकी गलतियों की क्षमा आपको जल्द मिल जाएगी.
  • शनि को काल माना जाता है परंतु भगवान शिव स्वयं महाकाल हैं, अत: शनि से पीड़ित व्यक्ति को इसके पाठ से बहुत लाभ प्राप्त है।.इसके इलावा जिन लोगों की जन्म-कुण्डली में सर्प योग, कालसर्प योग या पितृ दोष होता है, उन लोगों के लिए भी शिवतांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotra) का पाठ करना काफी उपयोगी होता है. इस पाठ से उनके सभी कुंडली दोष ख़तम हो जाएंगे.

शिव तांडव श्लोक

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥13॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

शिव तांडव स्तोत्र श्लोकों का हिन्दी मे अर्थ

क्या है शिव तांडव स्त्रोत व इसके लाभ

जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजंग-तुंग-मालिकाम् डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् ॥१॥

जिन शिव जी की सघन, वनरूपी जटा से प्रवाहित हो गंगा जी की धाराएँ उनके कंठ को प्रक्षालित करती हैं, जिनके गले में बड़े एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।

जटा-कटा-हसं-भ्रमभ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी- -विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि . धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

जिन शिव जी की जटाओं में अतिवेग से विलास पूर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरें उनके शीश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिक्षण बढ़ता रहे।

धरा-धरेन्द्र-नंदिनीविलास-बन्धु-बन्धुर स्फुर-द्दिगन्त-सन्ततिप्रमोद-मान-मानसे . कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जो पर्वतराजसुता (पार्वती जी) के विलासमय रमणीय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणीगण वास करते हैं, तथा जिनकी कृपादृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले) शिवजी की आराधना से मेरा चित्त सर्वदा आनन्दित रहे।
जटा-भुजंग-पिंगल-स्फुरत्फणा-मणिप्रभा कदम्ब-कुंकुम-द्रवप्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि ॥४॥

मैं उन शिवजी की भक्ति में आनन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों के आधार एवं रक्षक हैं, जिनकी जटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों का प्रकाश पीले वर्ण प्रभा-समूह रूप केसर के कान्ति से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभूषित हैं।

सहस्रलोचनप्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सरांघ्रि-पीठभूः भुजंगराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक: श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः ॥५॥

जिन शिव जी के चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों की धूल से रंजित हैं (जिन्हें देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पण करते हैं), जिनकी जटाओं में लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनंजय-स्फुलिंगभा- निपीत-पंच-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम् सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः ॥६॥

जिन शिव जी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभी देवों द्वारा पूज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्धि प्रदान करें।

कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल द्धनंज-याहुतीकृत-प्रचण्डपंच-सायके धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक -प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम ॥७॥

जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जो शिव पार्वती जी के स्तन के अग्र भाग पर चित्रकारी करने में अति चतुर हैं (यहाँ पार्वती प्रकृति हैं, तथा चित्रकारी सृजन है), उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।

नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत् कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

जिनका कण्ठ नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं तथा जो जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभी प्रकार की सम्पन्नता प्रदान करें।
प्रफुल्ल-नीलपंकज-प्रपंच-कालिमप्रभा- -वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् . स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे ॥९॥

जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभूषित है, जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुःखों को काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं तथा जो मृत्यू को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।


अखर्वसर्व-मंग-लाकला-कदंबमंजरी रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम् . स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

जो कल्याणमय, अविनाशी, समस्त कलाओं के रस का आस्वादन करने वाले हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के संहारक, दक्षयज्ञ विध्भंसक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।

जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजंग-मश्वस- द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट् धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंग-तुंग-मंगल ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

अत्यंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढ़ी हूई प्रचण्ड अग्नि के मध्य मृदंग की मंगलकारी उच्च धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।

दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजंग-मौक्ति-कस्रजोर् -गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः . तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टुकड़ों, शत्रु एवं मित्रों, राजाओं तथा प्रजाओं, तिनकों तथा कमलों पर समान दृष्टि रखने वाले शिव को मैं भजता हूँ।

कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुंज-कोटरे वसन् विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मंजलिं वहन् . विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करता हुआ, निष्कपट हो, सिर पर अंजलि धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा?

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका- निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः। तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

देवांगनाओं के सिर में गुंथे पुष्पों की मालाओं से झड़ते हुए सुगंधमय राग से मनोहर परम शोभा के धाम महादेव जी के अंगों की सुन्दरता परमानन्दयुक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहे।

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना। विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥

प्रचण्ड वडवानल की भांति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्टमहासिध्दियों तथा चंचल नेत्रों वाली कन्याओं से शिव विवाह समय गान की मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, संसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पायें।

इमम ही नित्यमेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम् . हरे गुरौ सुभक्तिमा शुयातिना न्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥

इस उत्तमोत्तम शिव ताण्डव स्तोत्र को नित्य पढ़ने या श्रवण करने मात्र से प्राणी पवित्र हो, परमगुरु शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे . तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र तुरंग युक्तां लक्ष्मीं सदैवसुमुखिं प्रददाति शंभुः ॥१७॥

प्रात: शिवपूजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोड़े आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है।

The post क्या है शिव तांडव स्त्रोत व इसके लाभ appeared first on मणिमहेश.

]]>
महामृत्युंजय मंत्र का महत्व व लाभ https://manimahesh.in/%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a5%83%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%81%e0%a4%82%e0%a4%9c%e0%a4%af-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b5-%e0%a4%b5-%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%ad/ Sun, 11 Dec 2022 11:20:49 +0000 https://manimahesh.in/?p=597 महामृत्युंजय मंत्र का हिन्दू धर्म व शिव पूजा मे बहुत महत्व है व इसके अनेक लाभ हैं। इसका उल्लेख ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में किया गया है। इसके अलावा शिव पुराण व अन्य धार्मिक ग्रंथो में भी इसका महत्व बताया गया है। संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं जो मृत्यु को जीतने वाला […]

The post महामृत्युंजय मंत्र का महत्व व लाभ appeared first on मणिमहेश.

]]>
महामृत्युंजय मंत्र का हिन्दू धर्म व शिव पूजा मे बहुत महत्व है व इसके अनेक लाभ हैं। इसका उल्लेख ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में किया गया है। इसके अलावा शिव पुराण व अन्य धार्मिक ग्रंथो में भी इसका महत्व बताया गया है। संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं जो मृत्यु को जीतने वाला हो। इसलिए भगवान शिव की स्तुति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है। इसके जप से संसार के सभी कष्ट से मुक्ति मिलती हैं। ये मंत्र जीवन देने वाला व कई दोषों को दूर करने वाला है। इससे जीवनी शक्ति तो बढ़ती ही है साथ ही सकारात्मकता बढ़ती है। मंत्र के प्रभाव से हर तरह का डर और मुसीबतें खत्म हो जाती है। शिव पुराण में यहाँ उल्लेख किए गए महामृत्युंजय मंत्र के जप से आदि शंकराचार्य को भी जीवन की प्राप्ती हुई थी।

महामृत्युंजय मंत्र

ॐ हौं जूं स:

ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

ॐ स्व: भुव: भू:

ॐ स: जूं हौं ॐ !!

महामृत्युंजय मंत्र का हिन्दी मे अर्थ

इस मंत्र का मतलब है कि हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं।

इस मंत्र के अन्य प्रकार

एकाक्षरी (1) मंत्र- ‘हौं’ ।

रोजाना ऐसा करने से आपकी आयु लंबी होगी और स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।

त्र्यक्षरी (3) मंत्र- ‘ॐ जूं सः’।

रात को सोने से पहले इस मंत्र का 27 बार जाप करने से आपको नियमित रूप से कोई भी बीमारी परेशान नहीं करेगी।

चतुराक्षरी (4) मंत्र- ‘ॐ वं जूं सः’।

इसका नियमित रूप से जाप करने से शल्य चिकित्सा, दुर्घटना का खतरा कम हो जाता है।

नवाक्षरी (9) मंत्र- ‘ॐ जूं सः पालय पालय’।

दशाक्षरी (10) मंत्र- ‘ॐ जूं सः मां पालय पालय’।

इसे अमृत मृत्युंजय मंत्र कहा जाता है। जिस व्यक्ति के लिए इस मंत्र का जाप करें, उस व्यक्ति का नाम इस मंत्र में जरूर प्रयोग करें। तांबे के लोटे में जल भरकर इसके सामने इस मंत्र का जाप करें। इस जल को उस व्यक्ति को पिलाएं जिसे आयु या स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो।

(स्वयं के लिए इस मंत्र का जप इसी तरह होगा जबकि किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह जप किया जा रहा हो तो ‘मां’ के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना होगा)

मंत्र का जप करने का उपाय

रोज रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करने से अकाल मृत्यु (असमय मौत) का डर दूर होता है। साथ ही कुंडली के दूसरे बुरे रोग भी शांत होते हैं, इसके अलावा पांच तरह के सुख भी इस मंत्र के जाप से मिलते हैं।

महामृत्युंजय मंत्र के जाप में रखें ये सावधानियां

1. महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय तन यानी शरीर और मन बिल्कुल साफ होना चाहिए। यानी किसी तरह की गलत भावना मन में नहीं होनी चाहिए।

2. मंत्र का जाप उच्चारण ठीक ढंग से करना चाहिए। अगर स्वयं मंत्र न बोल पाएं तो किसी योग्य पंडित से भी इसका जाप करवाया जा सकता है।

3. मंत्र का जाप निश्चित संख्या में करना चाहिए। समय के साथ जाप संख्या बढ़ाई जा सकती है।

4. भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर अथवा महामृत्युंजय यंत्र के सामने ही इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

5. मंत्र जाप के दौरान पूरे समय धूप-दीप जलते रहना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

6. इस मंत्र का जाप केवल रुद्राक्ष माला से ही करना चाहिए। बिना आसन के मंत्र जाप न करें।

7. इस मंत्र का जाप पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए। निर्धारित स्थान पर ही रोज मंत्र जाप करें।

महामृत्युंजय मंत्र से होता है दोषों का नाश

महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से मांगलिक दोष, नाड़ी दोष, कालसर्प दोष, भूत-प्रेत दोष, रोग, दुःस्वप्न, गर्भनाश, संतानबाधा कई दोषों का नाश होता है।
 

महामृत्युजंय मंत्र का जप करने के लाभ

1. दीर्घायु (लम्बी उम्र) – जिस भी मनुष्य को लंबी उम्र पाने की इच्छा हो, उसे नियमित रूप से महामृत्युजंय मंत्र का जप करना चाहिए। इस मंत्र के प्रभाव से मनुष्य का अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है। यह मंत्र भगवान शिव को बहुत प्रिय है, इसका का जप करने वाले को लंबी उम्र मिलती है।

2. आरोग्य प्राप्ति – यह मंत्र मनुष्य न सिर्फ निर्भय बनता है बल्कि उसकी बीमारियों का भी नाश करता है। भगवान शिव को मृत्यु का देवता भी कहा जाता है। इस मंत्र के जप से रोगों का नाश होता है और मनुष्य निरोगी बनता है।

3. सम्पत्ति की प्राप्ति – जिस भी व्यक्ति को धन-सम्पत्ति पाने की इच्छा हो, उसे महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करना चाहिए। इस मंत्र के पाठ से भगवान शिव हमेशा प्रसन्न रहते हैं और मनुष्य को कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है।

4. यश (सम्मान) की प्राप्ति – इस मंत्र का जप करने से मनुष्य को समाज में उच्च स्थान प्राप्त होता है। सम्मान की चाह रखने वाले मनुष्य को प्रतिदिन महामृत्युजंय मंत्र का जप करना चाहिए।

5. संतान की प्राप्ति – महामृत्युजंय मंत्र का जप करने से भगवान शिव की कृपा हमेशा बनी रहती है और हर मनोकामना पूरी होती है। इस मंत्र का रोज जाप करने पर संतान की प्राप्ति होती है।

महामृत्युंजय मंत्र जप के अन्य फायदे

  • भय से छुटकारा पाने के लिए 1100 मंत्र का जप किया जाता है।
  • रोगों से मुक्ति के लिए 11000 मंत्रों का जप किया जाता है।
  • पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए, अकाल मृत्यु से बचने के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना अनिवार्य है। 
  • यदि साधक पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह साधना करें, तो वांछित फल की प्राप्ति की प्रबल संभावना रहती है।

क्यों करते हैं महामृत्युंजय मंत्र का जाप

महामृत्युंजय मंत्र का जाप विशेष परिस्थितियों में किया जाता है। अकाल मृत्यु, महारोग, धन-हानि, गृह क्लेश, ग्रहबाधा, ग्रहपीड़ा, सजा का भय, प्रॉपर्टी विवाद, समस्त पापों से मुक्ति आदि जैसे स्थितियों में भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है। इसके चमत्कारिक लाभ देखने को मिलते हैं। इन सभी समस्याओं से मुक्ति के लिए महामृत्युंजय मंत्र या लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है।

भगवान शिव मंदिर मे इस मंत्र का जप कराने के लिए संपर्क करें।

The post महामृत्युंजय मंत्र का महत्व व लाभ appeared first on मणिमहेश.

]]>
भगवान शिव और अर्जुन युद्ध https://manimahesh.in/%e0%a4%ad%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%85%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9c%e0%a5%81%e0%a4%a8-%e0%a4%af%e0%a5%81%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%a7/ Sat, 03 Dec 2022 21:46:18 +0000 https://manimahesh.in/?p=524 भगवान शिव और अर्जुन युद्ध का महाभारत मे बहुत महत्व है क्योंकि इस युद्ध मे प्राप्त हुए बाण से ही अर्जुन ने कारण का वध किया था। हिमालय पर्वतमाला में  इन्द्रकील बड़ा पावन और शांत स्थल था। ॠषि-मुनि वहां तपस्या किया करते थे। एक दिन पांडु पुत्र अर्जुन उस स्थल पर पहुंच गए। अर्जुन को […]

The post भगवान शिव और अर्जुन युद्ध appeared first on मणिमहेश.

]]>
भगवान शिव और अर्जुन युद्ध का महाभारत मे बहुत महत्व है क्योंकि इस युद्ध मे प्राप्त हुए बाण से ही अर्जुन ने कारण का वध किया था। हिमालय पर्वतमाला में  इन्द्रकील बड़ा पावन और शांत स्थल था। ॠषि-मुनि वहां तपस्या किया करते थे। एक दिन पांडु पुत्र अर्जुन उस स्थल पर पहुंच गए। अर्जुन को अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित देखकर मुनि कुमारों में खुसर-पुसर होने लगी। एक मुनि कुमार बोला, यह अनजान व्यक्ति कौन है?

कोई भी क्यों न हो, इसे पवित्र स्थान पर अस्त्र शस्त्र नहीं लाने चाहिए थे। दूसरा बोला।
ॠषि कुमार नदी के किनारे तक अर्जुन के पीछे-पीछे गए और यह देखने लगे कि वह करता क्या है? अर्जुन ने अपने अस्त्र-शस्त्र उतारे और वहां बने शिवलिंग के सामने बैठ गया। उसने बड़े मनोयोग से भगवान शिव की आराधना की, शिवलिंग पर फूल चढ़ाए। तभी एक मुनि कुमार अर्जुन को पहचान गया। बोला, “अरे ये तो पांडु पुत्र अर्जुन है। मैंने इसके शौर्य के बहुत चर्चे सुने है। इस समय यह विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर है।”

पर यह यहाँ आया किसलिए है? दूसरे मुनिकुमार ने जिज्ञासा प्रकट की।
कपटी दुर्योधन के साथ जुए में सब-कुछ हारकर पांडव वनवास कर रहे है। पहले वाले मुनि कुमार ने बताया।
तब तो ये भगवान शिव से वरदान मांगने आए होंगे? तीसरे ने कहा।

कई महिने बीत गए। अर्जुन तन्मय होकर ॐ नमः शिवाय का जाप करते रहे, शिवलिंग के आगे। उनके शरीर से तेज़ निकलकर वातावरण को गरम करने लगा। इस कारण ॠषि-मुनियों को मन्त्र-पूजा करने में बाधा होने लगी। देखते ही देखते सारा जंगल उस ताप से तपने लगा। घबराकर ॠषि-मुनि कैलाश गए जहां शिव का वास है। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की, हे शिव शंकर, हे अभयंकर, अर्जुन की मनोकामना पूरी करो और हमारी पीड़ा हरो। शिव ने ॠषियों को आश्वस्त किया तो ॠषि-मुनि अपने स्थान को लौट गए। उनके जाने के पश्चात पार्वती ने शिव से पूछा, स्वामी! अर्जुन को क्या चाहिए।

देवी! उसे दिव्य अस्त्र-शस्त्र चाहिए ?
परंतु क्या वह दिव्यास्त्रों क प्रयोग कर लेगा?
मै उसकी परीक्षा लेकर देखूंगा। शिव बोले, मै किरात के भेष में जाकर उससे युद्ध करूंगा।
मैं भी साथ चलूंगी। पार्वती बोली।

चलो, लेकिन भेष बदलकर्।
तो ठीक है, मैं किरात-नारी बन जाती हूं।
यह बात जब शिव के गणों को मालूम हुई तो उन्होंने शिव से प्रार्थना की, प्रभु! हमारी इच्छा है कि हम भी इस युद्ध को देखें। हमें भी साथ ले चलें।

चलो, किंतु तुम्हें किरात-नारियों का भेष धारण करना पड़ेगा। शिव ने कहा। तत्पश्चात सभी किरात के भेष में इन्द्रनील की ओर चल पड़े। वे इन्द्रनील पहुंचे तो माता पार्वती ने एक ओर संकेत करते हुए भगवान शिव से कहा, स्वामी! वह देखिए , कितना बड़ा शूकर्।
देख लिया। अभी से इसे तीर से मार गिराऊंगा। कहते हुए शिव ने अपने धनुष पर बाण चढ़ा लिया। किंतु शूकर भागने में किरात से तेज़ था। उसने ॠषियों के आश्रम में जाकर ऐसा उत्पात मचाया कि ॠषि भाग खड़े हुए, ‘बचाओ, रक्षा करो, मूकासुर फिर आ गया शूकर बनकर।‘ कहते हुए वे सहायता की गुहार लगाने लगे।

ॠषि-मुनियों की चीख-पुकार से अर्जुन का ध्यान भंग हो गया। उन्होंने आंखें खोली और धनुष पर बाण चढ़ा लिया। तभी किरात भेषधारी भगवान शिव अपने धनुष पर बाण चढ़ाए उसे आते दिखाई दिए। अर्जुन को शूकर का निशाना बनाते देख शिव ने कहा’ ठहरो। इस शूकर पर बाण मत चलाना। यह शिकार मेरा है। मैंने बहुत देर तक इसका पीछा किया है।
ठीक है, तुम इसे मार सको तो ले जाओ। अर्जुन बोले, शिकारी भीख नहीं मांगा करते।

शूकर के शरीर में एक साथ दो तीर आ घुसे। एक किरात भेषधारी शिव का और दूसरा अर्जुन का। दो-दो तीर खाकर शूकर भेषधारी मूकासुर ढेर हो गया। ज़मीन पर गिरते नी उसका असली रूप प्रकट हो गया।
सरदार की जय। किरात नारियां बने शिवगणों ने जय-जयकार करनी शुरू कर दी।
यह तुम्हारे बाण से मरा है, स्वामी। किरात नारी बनीं पार्वती मुदित स्वर में बोलीं।

किरात-नारियों के हर्षोल्लास पर अर्जुन मुस्कराए। शिव के सामने जाकर बोले, किरात! इस घने वन में इन स्त्रियों को भय नहीं लगता? अकेले तुम्हीं पुरुष इनके साथ हो युवक! हमें किसी का भय नहीं। पर तुम शायद डरते हो। हो भी तो कोमल। शिव ने मुस्कराकर कहा।
मै कोमल हूं? तुमने देखा नहीं मेरे बाण ने कैसे शूकर को वेधा है? अर्जुन बोले।
शूकर हमारे सरदार के बाण से मरा है। किरात नारियों ने चीखकर कहा।

ये सच कहती है, युवक। किरात ने कहा, तुम्हारा बाण शूकर के शरीर में तब लगा, जब वह मेरे बाण से मरकर नीचे गिर गया।
तब तो इस बात का निर्णय हो ही जाना चाहिए, किरात, कि हम दोनों में कौन श्रेष्ठ धनुर्धर है। अर्जुन ने गर्व भरे स्वर में चुनौती दी।
बस, फिर क्या था, दोनो ने अपने अस्त्र-शस्त्र एक दूसरे की ओर चलाने शुरू कर दिए। देखते ही देखते भयंकर बाण-वर्षा शुरू हो गई। लेकिन कुछ ही देर बाद अर्जुन का तूणीर बाणों से ख़ाली हो गया। तब वह विस्मय से बड़बड़ाया, मेरे सभी बाणों को इस किरात ने काट डाला, मेरा बाणों से भरा सारा तूणीर ख़ाली हो गया किंतु किरात को खरोंच तक नहीं लगी।

तभी किरात का व्यंग्य-भरा स्वर गूंजा, धनुर्धारी वीर! उसने झपटकर किरात को अपने धनुष की प्रत्यंचा में फांस लिया, किंतु एक ही क्षण में किरात ने अर्जुन से धनुष छीनकर दूर फेंक दिया। यह देख किरात-स्त्रियां हर्ष से नाच उठी, तपस्यी हार गया। वे ज़ोर-ज़ोर सेह हर्षनाद करने लगीं।
अर्जुन और भी चिढ़ गए। इस बार वह तलवार लेकर किरात की ओर झपटे और बोले, किरात! भगवान का स्मरण कर ले, तेरा अंतकाल आ गया।

किंतु जैसे ही अर्जुन ने तलवार किरात के सिर पर मारी, तलवार टूट गई। अर्जुन निहत्थे हो गए तो उन्होंने एक पेड़ उखाड़ लिया और उसे किरात पर फेंका। लेकिन उमके आश्चर्य का ठिकाना न रहा क्योंकि किरात के शरीर से टकराते ही पेड़ किसी तिनके की भांति टूटकर नीचे जा गिरा। जब कोई और उपाय न रहा तो अर्जुन निहत्थे ही किरात पर टूट पड़े। किंतु किरात पर इसका कोई असर न हुआ। उसने अर्जुन को पकड़कर ऊपर उठाया और उन्हें धरती पर पटक दिया। अर्जुन बेबस हो गया। तब अर्जुन ने वहीं रेत का शिवलिंग बनाया और भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे। इससे उनके शरीर में नई शक्ति आ गई।

अर्जुन ने उठकर फिर से किरात को ललकारा, किरात! अब तेरा काल आ गया। वह चीखे।
लेकिन जैसे ही नज़र किरात के गले में पड़ी फूलमाला पर पड़ी, वह स्तब्ध होकर खड़े-के-खड़े रह गए, ‘अरे! ये पुष्पमाला तो मैंने भगवान शिव के लिंग पर चढ़ाई थी, तुम्हारे गले में कैसे आ गई?

पल मात्र में ही अर्जुन का सारा भ्रम जाता रहा। वे समझ गए कि किरात के भेष में स्वयं शिव शंकर ही उनके सामने ख़ड़े हैं।
अर्जुन किरात के चरणों में गिर पड़े, रुंधे गले से बोले, मेरे प्रभु, मेरे आराध्य देव। मुझे क्षमा कर दो। मैंने गर्व किया था।
तब शिव अपने असली रूप में प्रकट हुए, पार्वती भी अपने असली रूप में आ गई। शिव बोले, अर्जुन! मैं तेरी भक्ति और साहस से प्रसन्न हूं। मैं पाशुपत अस्त्र का भेद तुझे बताता हूं। संकट के समय यह तेरे काम आएगा।

शिव का वचन सत्य हुआ। महाभारत के युद्ध में अर्जुन अपने परम प्रतिद्वंद्वी कर्ण को पाशुपत अस्त्र से ही मारने में सफल हो चुके थे।

The post भगवान शिव और अर्जुन युद्ध appeared first on मणिमहेश.

]]>
शिवपूजा की कुछ विशेषताएं एवं उनका अध्यात्मशास्त्रीय आधार https://manimahesh.in/%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%9c%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%9b-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a5%87%e0%a4%b7%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%8f%e0%a4%82-%e0%a4%8f%e0%a4%b5%e0%a4%82-%e0%a4%89%e0%a4%a8%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%85%e0%a4%a7%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%ae%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%af-%e0%a4%86%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%b0/ Sat, 03 Dec 2022 21:26:35 +0000 https://manimahesh.in/?p=512 शिवपूजा में शंख की पूजा शिवपूजा में शंख की पूजा नहीं की जाती, उसी प्रकार शिवजी पर शंखद्वारा जल नहीं डालते । देवताओं की मूर्तियों के मध्य में यदि पंचायतन (पंचायतन अर्थात पंच देवता – नारायण (श्रीविष्णु), गणपति, शिव, देवी एवं रवि (सूर्य)) की स्थापना हो, तो उसके बाणलिंग पर शंखद्वारा जल डाल सकते हैं;  परंतु महादेव की पिंडी के बाणलिंग को शंख के जल से स्नान नहीं करवाते । अध्यात्मशास्त्रीय आधार […]

The post शिवपूजा की कुछ विशेषताएं एवं उनका अध्यात्मशास्त्रीय आधार appeared first on मणिमहेश.

]]>
शिवपूजा में शंख की पूजा

शिवपूजा में शंख की पूजा नहीं की जाती, उसी प्रकार शिवजी पर शंखद्वारा जल नहीं डालते । देवताओं की मूर्तियों के मध्य में यदि पंचायतन (पंचायतन अर्थात पंच देवता – नारायण (श्रीविष्णु), गणपतिशिवदेवी एवं रवि (सूर्य)) की स्थापना हो, तो उसके बाणलिंग पर शंखद्वारा जल डाल सकते हैं;  परंतु महादेव की पिंडी के बाणलिंग को शंख के जल से स्नान नहीं करवाते ।

अध्यात्मशास्त्रीय आधार : शिवपिंडी में अरघा के रूप में स्त्रीकारकत्व होता है, इसलिए स्त्रीकारकत्व युक्त शंख का जल पुनः डालने की आवश्यकता नहीं होती । बाणलिंग के साथ अरघा नहीं होती, इस कारण उसे शंख के जल से स्नान करवाते हैं ।

महादेव की पूजा करते समय शंखपूजा का विधान
मंदिर में महादेव की पूजा करते समय शंखपूजा का विधान नहीं है । केवल आरतीपूर्व शंखनाद का विधान है, इसलिए आरती के समय शंखनाद अवश्य किया जाता है ।

अध्यात्मशास्त्रीय आधार : शंखनाद से प्राणायाम का अभ्यास तो सिद्ध होता है ही, साथ ही शंखनाद की ध्वनि जहांतक गूंजती है, वहांतक भूतबाधा, जादू-टोना आदि अनिष्ट शक्तियों से कष्ट नहीं होता है ।

शिवजी पर तुलसी नहीं चढाते

शिवजी पर तुलसी नहीं चढाते हैं,  परंतु शालग्राम शिला पर अथवा विष्णुमूर्ति पर चढाई गई तुलसी उन पर चढा सकते हैं ।

अध्यात्मशास्त्रीय आधार : इसका कारण यह है कि शिवजी श्रीविष्णुभक्त हैं; इसलिए श्रीविष्णु पर चढाई गई तुलसी उन्हें प्रिय है ।

नीले पुष्पों से पूजा

आषाढ कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन शंकरजी की एवं चतुर्दशी को रेवती की पूजा नीले पुष्पों से करनी चाहिए । शिवजी को केवडे की बालियां महाशिवरात्रि व्रत के उद्यापन के समय ही चढाते हैं ।

अध्यात्मशास्त्रीय आधार : कालानुसार पूजासामग्री में होनेवाले परिवर्तन का यह एक उदाहरण है । उदा. ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन नीले रंग के फूलमें, हरे बेल के समान, शिवतत्त्व ग्रहण करने की क्षमता होती है । इसलिए इस दिन शिव को नीले रंग के फूल चढाने चाहिए ।

शिवपिंडी पर अर्पित किए गए बेल एवं श्वेत पुष्प तथा भोगप्रसाद ग्रहण करना वर्जित है

अध्यात्मशास्त्रीय आधार : शिवजी वैराग्य के देवता हैं । शिवजी को अर्पित की गई वस्तु यदि सर्वसाधारण व्यक्ति ग्रहण करे, तो उसमें वैराग्य निर्माण हो सकता है । सहसा सर्वसाधारण व्यक्ति को वैराग्य की इच्छा नहीं होती । इसलिए शिवपिंडी पर अर्पित वस्तु को अग्राह्य माना जाता है । ५० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति के लिए यह नियम लागू नहीं होता; स्तर अधिक होने के कारण उस पर वैराग्यदायक तरंगों का परिणाम नहीं हो सकता । ऐसा इसलिए क्योंकि, उसके मन में माया से दूर जाने के विचार आरंभ हो चुके होते हैं । साथ ही, ५० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर का व्यक्ति अधिकांशतः स्थूल कर्मकांड के परे जा चुका होता है; उसकी मानस-उपासना आरंभ हो चुकी होती है । ऐसे व्यक्ति के मन में ऐसे कर्मकांडजन्य विचार आने की संभावना अल्प होती है कि, शिवजी को अर्पित वस्तु ग्रहण करनी चाहिए ।

शैव, कापालिक, गोसावी, वीरशैव इत्यादि अपने-अपने संप्रदायानुसार पार्थिवलिंग, कंठस्थ (गले में पहनने हेतु चांदी की पेटी में) लिंग, स्फटिकलिंग, बाणलिंग, पंचसूत्री, पाषाणलिंग, इस प्रकार के लिंग शिवपूजा हेतु प्रयोग किए जाते हैं ।

The post शिवपूजा की कुछ विशेषताएं एवं उनका अध्यात्मशास्त्रीय आधार appeared first on मणिमहेश.

]]>
मणिमहेश के बारे में महत्वपूर्ण / मणिमहेश क्यों https://manimahesh.in/%e0%a4%ae%e0%a4%a3%e0%a4%bf%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%87-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a3-%e0%a4%ae%e0%a4%a3%e0%a4%bf%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%82/ Thu, 01 Dec 2022 07:41:24 +0000 https://manimahesh.in/?p=476 ॐ यह स्थान अपने नाम मणि महेश को पौराणिक मान्यता के लिए जिम्मेदार ठहराता है कि भगवान शिव के मुकुट पर मणि (एक गहना) है और स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि मणि से परावर्तित चंद्रमा की किरणें चंद्रमा के स्पष्ट पूर्ण चरण की रातों में महिमहेश झील से देखी जा सकती हैं। इसके अलावा, […]

The post मणिमहेश के बारे में महत्वपूर्ण / मणिमहेश क्यों appeared first on मणिमहेश.

]]>
ॐ यह स्थान अपने नाम मणि महेश को पौराणिक मान्यता के लिए जिम्मेदार ठहराता है कि भगवान शिव के मुकुट पर मणि (एक गहना) है और स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि मणि से परावर्तित चंद्रमा की किरणें चंद्रमा के स्पष्ट पूर्ण चरण की रातों में महिमहेश झील से देखी जा सकती हैं। इसके अलावा, चोटी को सुशोभित करने वाले ग्लेशियर से परावर्तित प्रकाश वास्तव में पहाड़ के सिर पर एक चमकदार गहना जैसा दिखता है। तो, मणिमहेश नाम एक गहना के लिए खड़ा है, भगवान शिव (महेश का) यानी मुकुट पर मणि।

स्थानीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का कहना है कि पूर्णिमा की स्वच्छ रातों में महिमहेश झील से रत्नों से प्रतिबिम्बित चन्द्र-किरणें देखी जा सकती हैं। यह एक दुर्लभ अवसर है। अधिकतर पर्वत के मस्तक पर यह चमकीला गहना बहुत कम देखने को मिलता है, स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि इसे केवल ब्रह्म मुहूर्त (ब्रह्मा का समय) में देखा जा सकता है, जो कि सूर्योदय से 1 घंटा 36 मिनट पहले होता है, भगवान की इच्छा से। पर्वत शिखर को बादलों से ढकने वाले खराब मौसम को भगवान की नाराजगी माना जाता है। तो इस चमकदार रत्न को देखने के इच्छुक व्यक्ति को या तो शिव या गौरी कुंड में पूरी रात बितानी पड़ती है। यह अधिक संभावना है कि ग्लेशियर से परावर्तित प्रकाश वास्तव में शिखर को सुशोभित करता है। यह शिव के गले में सर्प के समान प्रतीत होता है।

The post मणिमहेश के बारे में महत्वपूर्ण / मणिमहेश क्यों appeared first on मणिमहेश.

]]>
मणिमहेश – एक यात्रियों का स्वर्ग https://manimahesh.in/%e0%a4%ae%e0%a4%a3%e0%a4%bf%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%8f%e0%a4%95-%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%97/ Thu, 01 Dec 2022 07:40:14 +0000 https://manimahesh.in/?p=478 ॐ मणिमहेश न केवल धार्मिक पहलू के लिए प्रसिद्ध है। झील का प्राकृतिक सौंदर्य मनमोहक है। आसपास के खूबसूरत पहाड़, झील का साफ प्रतिबिंब और गरजते बादल आपको धरती पर स्वर्ग का आभास कराते हैं। झील का पानी इतना ठंडा है कि केवल मजबूत दिल वाले ही पानी में डुबकी लगा सकते हैं। मणिमहेश – […]

The post मणिमहेश – एक यात्रियों का स्वर्ग appeared first on मणिमहेश.

]]>
ॐ मणिमहेश न केवल धार्मिक पहलू के लिए प्रसिद्ध है। झील का प्राकृतिक सौंदर्य मनमोहक है। आसपास के खूबसूरत पहाड़, झील का साफ प्रतिबिंब और गरजते बादल आपको धरती पर स्वर्ग का आभास कराते हैं। झील का पानी इतना ठंडा है कि केवल मजबूत दिल वाले ही पानी में डुबकी लगा सकते हैं।

मणिमहेश – एक ट्रेकर का स्वर्ग माना जाता है। मणिमहेश झील के रास्ते पर चलना एक अद्भुत अनुभव है। अद्भुत प्राकृतिक दृश्यों को देखकर कोई भी थकाऊ यात्रा के दर्द को भूल जाएगा और मोहक माहौल में सराबोर हो जाएगा।

यह अद्भुत मार्ग न केवल तीर्थयात्रियों बल्कि साहसिक प्रेमियों और पर्यटकों को भी रोमांचित करता है। हालांकि, 4080 मीटर की ऊंचाई में इस यात्रा को सहने के लिए शारीरिक रूप से फिट होना चाहिए। पूरी यात्रा आत्मा को झकझोर देने वाली है। इसे आमतौर पर ट्रेकर का स्वर्ग कहा जाता है।

The post मणिमहेश – एक यात्रियों का स्वर्ग appeared first on मणिमहेश.

]]>
मणिमहेश भूगोल https://manimahesh.in/%e0%a4%ae%e0%a4%a3%e0%a4%bf%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%ad%e0%a5%82%e0%a4%97%e0%a5%8b%e0%a4%b2/ Wed, 30 Nov 2022 01:03:52 +0000 https://manimahesh.in/?p=157 हिमाच्छादित मूल की झील, घोई नाला की ऊपरी पहुँच में है , जो बुधिल नदी की सहायक नदी है , जो हिमाचल प्रदेश में रावी नदी की सहायक नदी है । हालांकि, झील बुधिल नदी की एक सहायक नदी का स्रोत है , जिसे मणिमहेश गंगा के नाम से जाना जाता है । धारा झील […]

The post मणिमहेश भूगोल appeared first on मणिमहेश.

]]>
हिमाच्छादित मूल की झील, घोई नाला की ऊपरी पहुँच में है , जो बुधिल नदी की सहायक नदी है , जो हिमाचल प्रदेश में रावी नदी की सहायक नदी है । हालांकि, झील बुधिल नदी की एक सहायक नदी का स्रोत है , जिसे मणिमहेश गंगा के नाम से जाना जाता है ।

धारा झील से धनचू में गिरने के रूप में निकलती है । पर्वत चोटी एक बर्फ के जनजातीय ग्लेन पहने है भरमौर में चम्बा जिले के मणिमहेश रेंज। सबसे ऊँची चोटी है मणि महेश कैलाश जिसे चंबा कैलाश भी कहा जाता है जो झील को देखती है। ग्लेशियल डिप्रेशन में मानी जाने वाली झील को आसपास की पहाड़ी ढलानों से बर्फ के पिघले पानी से सींचा जाता है। बर्फ के पिघलने की शुरुआत के साथ जून के अंत तक, हर जगह कई छोटी-छोटी धाराएँ टूट जाती हैं, जो हरे-भरे पहाड़ियों और फूलों के असंख्य के साथ मिलकर इस जगह को वास्तव में उल्लेखनीय दृश्य देते हैं। पहाड़ के आधार पर बर्फ के मैदान को स्थानीय लोगों द्वारा कहा जाता हैशिव का चौगान शिव का खेल का मैदान । एक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ यहां रुके थे।

मणिमहेश तीन मार्गों से आता है:

  1. लाहौल और स्पीति के तीर्थयात्री कुगती पास से गुजरते हैं ।
  2. कांगड़ा और मंडी से तीर्थयात्री कर्वारसी पास या जालसू पास के माध्यम से त्यारी गांव, होली, भरमौर से  होते हुए ।
  3. सबसे आसान और लोकप्रिय मार्ग चंबा से भरमौर तक है । सबसे लोकप्रिय भरमौर – हडसर – मणिमहेश मार्ग है जिसमें हडसर गांव से मणिमहेश झील तक 14 किलोमीटर ( 8.1 मील ) ट्रैक शामिल है ।

इस मार्ग में सबसे अधिक ऊँचाई ४,१५० मीटर ( १३,५०१ फीट ) को छुआ गया है और धनचू में रात भर रुकने के साथ दो दिन (क्योंकि ट्रेक बहुत खड़ी है) है । सीज़न जून से अक्टूबर तक किया जाता है और इसमें एक सौम्य ग्रेड होता है। झील तक जाने वाला मार्ग अच्छी तरह से बनाए रखा गया है।
इस ट्रैक का आधा रास्ता धनचू के लिए 6 किलोमीटर ( 3.7 मील ) खुली और सपाट घास की भूमि है । अगस्त-सितंबर के दौरान यहाँ टेंटेड आवास उपलब्ध है। यहां रात का पड़ाव पसंद किया जाता है। तीर्थयात्रियों को खिलाने के लिए लोगों ( स्वयं सहायता संगठनों से सेवकों ) द्वारा मुफ्त रसोई खोली जाती है । लेकिन कई लोग दिव्य अनुभव महसूस करने के लिए झील के बगल में अपने टेंट को जाना पसंद करते हैं। एन मार्ग, गौरी नाले में झरना है जिसे धनचू फॉल कहा जाता है । से Dhanchoo , यह एक खड़ी चढ़ाई है। इस ट्रैक में पिछले कुछ वर्षों में बहुत सुधार हुए हैं। अतीत में पहली चढ़ाई पहली बार धनचू नाले को पार करके की गई थी। यह इतना कठिन था कि लोगों को क्रॉल करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। चूंकि वे इस खंड में एक बंदर की तरह रेंगते थे इसलिए इसे बंदर घाटी ( बंदर घाटी ) के रूप में जाना जाता था । अब यह ट्रैक बहुत सुधरा हुआ है और नवनिर्मित पथ का उपयोग किया जाता है। हालांकि, कुछ अभी भी पुराने मार्ग को एक साहसिक कार्य के रूप में लेना पसंद करते हैं और बंदर घाटी से गुजरते हैं ।

अतीत में, धनचू से ट्रेक पर , घाटी के बाएं किनारे तक पहुंचने के लिए मणि महेश नदी पर पुल पार किया गया था। बाद 2 मी ( 1.2 मील ), नदी फिर से एक और लकड़ी के पुल को पार कर गया था, दाहिने किनारे करने के लिए।
इस बिंदु से, चढ़ाई फूलदार घास के मैदानों के साथ कई ज़िगज़ैग मार्गों से गुजरती है। आसपास के क्षेत्र में बर्च के पेड़ देखे जाते हैं, जो कि ट्रेक की आय के रूप में ऊंचाई में लाभ का संकेत देता है। ट्रेक मार्ग के इस खंड के साथ, लगभग 3,600 मीटर ( 11,800 फीट ) की ऊँचाई पर कई सामुदायिक रसोई (भोजनालयों) हैं । इस स्थान से, मणिमहेश झील की ओर जाने वाले मार्ग को देखा जा सकता है। झील से बहता हुआ झरना भी इस स्तर पर देखा जाता है। घास की लकीर के माध्यम से 1.5 किमी ( 0.93 मील ) की एक और ट्रेक मणिमहेश झील की ओर जाता है ।

The post मणिमहेश भूगोल appeared first on मणिमहेश.

]]>
तीर्थ यात्रा https://manimahesh.in/%e0%a4%a4%e0%a5%80%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a5-%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%be/ Wed, 30 Nov 2022 01:02:17 +0000 https://manimahesh.in/?p=162 मणिमहेश झील (भगवान शिव के विश्राम स्थल के रूप में स्थानीय लोगों द्वारा प्रतिष्ठित) को तीर्थ यात्रा हिमाचल प्रदेश सरकार, मणिमहेश तीर्थयात्रा समिति और कई स्वैच्छिक संगठनों द्वारा समर्थित है। क्षेत्र की गद्दी जनजातीय आबादी के लिए, झील के लिए तीर्थयात्रा सबसे पवित्र है। यह हर साल राधा अष्टमी पर बदोन के हिंदू महीने के […]

The post तीर्थ यात्रा appeared first on मणिमहेश.

]]>
मणिमहेश झील (भगवान शिव के विश्राम स्थल के रूप में स्थानीय लोगों द्वारा प्रतिष्ठित) को तीर्थ यात्रा हिमाचल प्रदेश सरकार, मणिमहेश तीर्थयात्रा समिति और कई स्वैच्छिक संगठनों द्वारा समर्थित है। क्षेत्र की गद्दी जनजातीय आबादी के लिए, झील के लिए तीर्थयात्रा सबसे पवित्र है। यह हर साल राधा अष्टमी पर बदोन के हिंदू महीने के दौरान आयोजित किया जाता है, 15 वें दिन जन्माष्टमी के त्योहार के बाद, अगस्त या सितंबर के ग्रेगोरियन महीने के लिए। यात्रा या जात्रा, जैसा कि कहा जाता है, को ‘मणिमहेश यात्रा’ के रूप में भी जाना जाता है। इसे स्थानीय स्तर पर “पवित्र छारी” (तीर्थयात्रियों द्वारा अपने कंधों पर उठाए गए पवित्र छड़ी) के रूप में जाना जाता है। तीर्थयात्री पवित्र ट्रेक नंगे पैर करते हैं और 14 किलोमीटर (8) की दूरी तय करते हैं।7 मील) हादसर के निकटतम सड़क बिंदु से मणिमहेश झील तक। भगवान शिव यात्रा के देवता हैं। “छेरी” का रंगीन जुलूस भगवान शिव की स्तुति में गायन और भजन के साथ होता है। छारी ट्रेक, एक कठिन ट्रेक माना जाता है, जो निर्धारित स्थानों पर रुकने के साथ एक प्राचीन मार्ग का अनुसरण करता है। इस ट्रेक की सुविधा के लिए, तीर्थयात्रियों को परिवहन की सुविधा (सड़क के छोर तक जीप), भोजन और चिकित्सा सुविधाएं और इसके बाद प्रदान की जाती हैं। यह धनछो में रात के पड़ाव के साथ हाडसर से झील का दो दिवसीय ट्रेक है। भरमौर या चंबा में किराए के लिए टेंट उपलब्ध हैं। ट्रेक के लिए कुछ भक्तों द्वारा पोनीज़ किराए पर ली जाती हैं। चंबा से सीधी ट्रेकिंग भी श्रद्धालुओं द्वारा किया जाने वाला एक विकल्प है, जो नौ दिनों का ट्रेक है; मार्ग का अनुसरण किया जा रहा है Rakh (20 किलोमीटर (12 मील)), भरमौर, हदर (12 किलोमीटर (7.5 मील)),धनचो (7 किलोमीटर (4.3 मील)) और मणिमहेश (7.5 किलोमीटर (4.7 मील)) भीम घाटी में एक संक्षिप्त पड़ाव के साथ। वापसी यात्रा उसी मार्ग का अनुसरण करती है।

तीर्थयात्रियों द्वारा साधुओं की भागीदारी के साथ गुरु चरपथनाथ की पवित्र छड़ी (stick छारी ’) के साथ पवित्र नारायण मंदिर और चंबा शहर में दशनामी अखाड़ा से शुरू होता है। झील के लिए ट्रेक में लगभग 6 दिन लगते हैं। झील में जुलूस आने के बाद, रात भर समारोह आयोजित किए जाते हैं। अगले दिन, तीर्थयात्री एक पवित्र डुबकी ( नन ) लेते हैं) झील में। झील के पवित्र जल में स्नान करने के बाद, तीर्थयात्री भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए तीन बार श्रद्धा के रूप में झील की परिक्रमा करते हैं। हालांकि, मणि महेश झील में अंतिम डुबकी लगाने से पहले, महिला श्रद्धालु गौरी कुंड में डुबकी लगाती हैं, जो झील के एक मील की दूरी पर स्थित है, जबकि पुरुष शिव कारोत्री में मुख्य झील का एक हिस्सा स्नान करते हैं। मान्यता यह है कि पार्वती, शिव के कंस ने गौरी कुंड में स्नान किया था, जबकि शिव ने शिव कालोत्री में स्नान किया था। भरमौर ब्राह्मण परिवार के राज्य पुजारी झील के भीतर सभी मंदिरों में पूजा (पूजा) करते हैं।

The post तीर्थ यात्रा appeared first on मणिमहेश.

]]>
श्रावण है भगवान शिव का प्रिय महीना https://manimahesh.in/%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a3-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%ad%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a5%80%e0%a4%a8%e0%a4%be/ Wed, 30 Nov 2022 00:58:49 +0000 https://manimahesh.in/?p=179 ऐसी मान्यता है कि प्रबोधनी एकादशी से सृष्टि के पालन कर्ता भगवान विष्णु सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने दिव्य भवन पाताललोक में विश्राम करने के निकल लेते है और अपना सारा कार्यभार अपने समकक्ष मस्त-मौला अवघड़ बाबा महादेव को सौंप देते है। भगवान भूतनाथ गौरा पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर विराजमान रहकर पृथ्वी […]

The post श्रावण है भगवान शिव का प्रिय महीना appeared first on मणिमहेश.

]]>

ऐसी मान्यता है कि प्रबोधनी एकादशी से सृष्टि के पालन कर्ता भगवान विष्णु सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने दिव्य भवन पाताललोक में विश्राम करने के निकल लेते है और अपना सारा कार्यभार अपने समकक्ष मस्त-मौला अवघड़ बाबा महादेव को सौंप देते है। भगवान भूतनाथ गौरा पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर विराजमान रहकर पृथ्वी वासियों के दुःख दर्द को समझते है एंव उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करते है।

महादेव को श्रावण मास वर्ष का सबसे प्रिय महीना लगता है। क्योंकि श्रावण मास में सबसे अधिक वर्षा होने के आसार रहते है, जो शिव के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करती एंव हमारी कृषि के लिए भी अत्यन्त लाभकारी है। भगवान शंकर ने स्वयं सनतकुमारों को सावन महीने की महिमा बताई है कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांये चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। हिन्दू कैलेण्डर में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखें गयें है।

जैसे वर्ष का पहला माह चैत्र होता है, जो चित्रा नक्षत्र के आधार पर पड़ा है, उसी प्रकार श्रावण महीना श्रवण नक्षत्र के आधार पर रखा गया है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चन्द्र होता है। चन्द्र भगवान भोले नाथ के मस्तक पर विराज मान है। जब सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है, तब सावन महीना प्रारम्भ होता है। सूर्य गर्म है एंव चन्द्र ठण्डक प्रदान करता है, इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से झमाझम बारिस होती है। जिसके फलस्वरूप लोक कल्याण के लिए विष को ग्रहण करने वाले देवों के देव महादेव को ठण्डक व सुकून मिलता है। शायद यही कारण है कि शिव का सावन से इतना गहरा लगाव है।

श्रावण मास में मंत्र जाप से भोले भंडारी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है, जिससे साधक अपनी कामना की पूर्ति करके जीवन में सफलता-सुख-शांति प्राप्त करता है। यहाँ कुछ दिए मंत्र हैं जिनका प्रतिदिन रुद्राक्ष की माला से जप करना चाहिए। जाप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए। जप के पूर्व शिवजी को बिल्वपत्र अर्पित करना या उनके ऊपर जलधारा लगाना चाहिए।

निम्नानुसार मंत्र जाप करके आप शिव कृपा को पात्र कर सकते हैं :

  • ॐ नमः शिवाय
  • नमो नीलकण्ठाय
  • ॐ पार्वतीपतये नमः
  • ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा
  • प्रौं ह्रीं ठः
  • ऊर्ध्व भू फट्
  • इं क्षं मं औं अं

The post श्रावण है भगवान शिव का प्रिय महीना appeared first on मणिमहेश.

]]>
देवों के देव महादेव भगवान शिव हैं अद्वितीय https://manimahesh.in/%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b5%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b5-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b5-%e0%a4%ad%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%82-%e0%a4%85%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a5%80%e0%a4%af/ Mon, 28 Nov 2022 10:00:06 +0000 https://manimahesh.in/?p=174 भारत के गरिमायुक्त ग्रंथ शिव पुराण में शिव और शक्ति में समानता बताई गई है और कहा गया है कि दोनों को एक-दूसरे की जरूरत रहती है। न तो शिव के बिना शक्ति का अस्तित्व है और न शक्ति के बिना शिव का। शिव पुराण में यह भी दर्ज है कि जो शक्ति संपन्न हैं, उनके स्वरूप में कोई अंतर […]

The post देवों के देव महादेव भगवान शिव हैं अद्वितीय appeared first on मणिमहेश.

]]>
भारत के गरिमायुक्त ग्रंथ शिव पुराण में शिव और शक्ति में समानता बताई गई है और कहा गया है कि दोनों को एक-दूसरे की जरूरत रहती है। न तो शिव के बिना शक्ति का अस्तित्व है और न शक्ति के बिना शिव का। शिव पुराण में यह भी दर्ज है कि जो शक्ति संपन्न हैं, उनके स्वरूप में कोई अंतर नहीं मानना चाहिए। भगवती पराशक्ति उमा ने इंद्र-आदि समस्त देवताओं से स्वयं कहा है कि मैं ही परब्रह्म, परम-ज्योति, प्रणव-रूपिणी तथा युगल रूप धारिणी हूं। मैं ही सब कुछ हूं। मुझ से अलग किसी का वजूद ही नहीं है। मेरे गुण तर्क से परे हैं। मैं नित्य स्वरूपा एवं कार्य कारण रूपिणी हूं। स्पष्ट है कि विविध पुराणों में विशुद्ध रूप से वर्णित शिव-शक्ति समस्त चराचर के लिए मंगलकारी और कल्याणकारी यानी शुभ है।

सिर्फ शिव ही हैं, जो बंधन, मोक्ष और सुख-दुख के नियामक हैं। चराचर जगत के वे ही गुरु हैं। यही कारण है कि शिव प्रकृति से परे साक्षात अद्वितीय पुरुष के नाम से जाने-माने जाते हैं, जो अपनी अंश कला से ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र रूप में संसार के सृजनकर्तापालक और संहारक हैं।

शिव रूप रहित जरूर हैं, मगर संसार के कारण वही हैं। शिव ही वह शक्ति हैं, जो सृष्टि रचना के समय ब्रह्मा का रूप धारण करते हैं तथा प्रलय के समय साक्षात शिव रूप में विराजमान हो जाते हैं। ब्रह्माजी के रूप में सृष्टि का निर्माण इसलिए करते हैं कि प्राणियों को चौरासी लाख योनियों में भटकना न पडे। विष्णुजी के रूप में सृष्टि का पालन-पोषण इसलिए करते हैं, ताकि प्रलय न हो यानी समय से पहले ही प्राणी समाप्त न हो जाएं। इस प्रकार अगर भगवान शंकर संहार करना बंद कर दें, तो प्राणी अमर हो जाएंगे और जब कोई मरेगा नहीं, तो ब्रह्माजी को अपनी सृष्टि की रचना के लिए जगह की तंगी हो जाएगी। साथ ही साथ विष्णुजी भी पालन-पोषण करने में असमर्थ हो जाएंगे।

देवों के देव महादेव भगवान शिव हैं अद्वितीय

अतः भगवान शिव को सर्वश्रेष्ठ, सर्वशक्तिमान व देवों के देव महादेव कहा गया है। इससे सिद्ध हो जाता है कि जो पैदा हुआ है, उसे एक न एक दिन इस दुनिया को छोडना ही पडेगा, चाहे वे भगवान के अवतार ही क्यों न हों? शास्त्रों में कहा गया है कि आत्मा अमर-अविनाशी है। यह चौरासी लाख योनियों में बाहरी जिस्म का परित्याग कर भटकती रहती है। इस जीने-मरने से मुक्ति पाने का एकमात्र मार्ग है, भक्ति। जो शिव-शक्ति की कृपा से ही प्राप्त होती है। सीधे अर्थों में हम भगवान शिवजी को ही शिव के रूप में लेते हैं।

भगवान शिवजी और शिव में क्या अंतर है? कर्तव्य के पथ पर सत्य ही शिव है। लोकमंगल ही शिव है। शिवजी के गले में विषैला सर्प है। वे अपने गले में विष धारण करते हैं। वे सुंदर हैं और माथे पर चंद्रमा और पावन गंगा को धारण किए हुए हैं। अमंगल को सुंदर और शुभ बना देना ही शिवत्व है। समुद्र मंथन में एरावत हाथी, अमृत व हलाहल आदि चौदह रत्न निकले थे। हलाहल को छोड बाकी तेरह रत्नों को सुरों व असुरों ने आपस में बांट लिया था। हलाहल का पान स्वयं भगवान शंकर ने किया। उन्होंने विष को गले में ही रहने दिया, इसलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है। जहर के असर को कम करने के लिए अपने सिर पर चंद्रमा को धारण कर लिया। भगवान शिव ने अपने भक्तों की भलाई के लिए विष का पान किया।

शिव कल्याण स्वरूप हैं। सुखदाता हैं। दुख दूर करने वाले हैं। भक्तों को प्राप्त होने वाले हैं। श्रेष्ठ आचरण वाले हैं। संहारकारी हैं। कल्याण के निकेतन हैं। वे प्रकृति और पुरुष के नियंत्रक हैं ।

The post देवों के देव महादेव भगवान शिव हैं अद्वितीय appeared first on मणिमहेश.

]]>