शिव पुराण में बताया गया है देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर को भगवान शिव का वरदान कि वह यक्षों के स्वामी और देवताओं का कोषाध्यक्ष बनेंगे। कुबेर महाराज पूर्व जन्म में गुणनिधि नामक ब्राह्मण थे। बचपन में कुछ दिनों तक इन्होंने धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया लेकिन बाद में कुसंगति में पड़कर जुआ खेलने लगे। धीरे-धीरे चोरी और दूसरे गलत काम भी करने लगे।
एक दिन दुःखी होकर गुणनिधि के पिता यज्ञदत्त ने इन्हें घर से निकाल दिया। भटकते हुए गणनिधि एक वन में पहुंचा। भूख प्यास से बुरा हाल हो रहा था। तभी इसने देखा कि कुछ लोग भोग समाग्री लेकर जा रहे हैं।
भोजन को देखकर गुणनिधि की भूख और बढ़ गई। वह लोगों के पीछे-पीछे चल पड़ा। इसने देखा कि लोग शिवालय में जाकर भगवान शिव की पूजा कर रहे हैं। सभी भोग सामग्री शिव जी को अर्पित करके लोग भजन कीर्तन करने लगे।
गुणनिधि मौके की तलाश में था कि कब वह भगवान पर चढ़ाए गए भोग पदार्थों को चुरा ले। रात में जब सभी लोग सो गए तो गुणनिधि दबे पांव मंदिर में जाकर भोग सामग्री चुराकर वापस चल पड़ा। लेकिन एक व्यक्ति को गुणनिधि का पांव लग गया और वह चोर-चोर चिल्लाने लगा।
गुणनिधि जान बचाकर भागा लेकिन नगर रक्षक के तीर का निशान बन गया। गुणनिधि की मृत्यु हो गई।
लेकिन भगवान शिव की कृपा से उसे अनजाने में ही शिवरात्रि व्रत करने का फल प्राप्त हो गया और कुबेर को भगवान शिव का वरदान मिलने का मौका मिला। इसके प्रभाव से अगले जन्म में गुणनिधि कलिंग देश का राजा हुआ। इस जन्म में गुणनिधि शिव का परम भक्त था। इसके पुण्य से भगवान शिव ने कुबेर को यक्षों का स्वामी और देवताओं का कोषाध्यक्ष बना दिया।