Gayatri Sharma, Author at मणिमहेश https://manimahesh.in/author/gayatri/ भगवान् शिव का निवास Sat, 11 Feb 2023 10:38:45 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.6.1 https://manimahesh.in/wp-content/uploads/2022/01/cropped-om-icon-32x32.png Gayatri Sharma, Author at मणिमहेश https://manimahesh.in/author/gayatri/ 32 32 ‘ॐ’ के जाप से ही प्रभु हो जाते हैं प्रसन्न, जानिए इसका पौराणिक महत्व https://manimahesh.in/%e0%a5%90-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%aa-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%b9%e0%a5%80-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ad%e0%a5%81-%e0%a4%b9%e0%a5%8b-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a5%87-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%82-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b8%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a8-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%87%e0%a4%b8%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%aa%e0%a5%8c%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%a3%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b5/ Sat, 17 Dec 2022 16:56:55 +0000 https://manimahesh.in/?p=600 ‘ॐ’ के जाप से ही प्रभु हो जाते हैं प्रसन्न, जानिए इसका पौराणिक महत्व। हिंदू धर्म में ॐ को बहुत ही पवित्र शब्द माना गया है। हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग ॐ का जाप भी खूब करते हैं। बता दें कि ॐ के जाप के ढेरों फायदे भी बताए गए हैं। जीवन में […]

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‘ॐ’ के जाप से ही प्रभु हो जाते हैं प्रसन्न, जानिए इसका पौराणिक महत्व। हिंदू धर्म में ॐ को बहुत ही पवित्र शब्द माना गया है। हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग ॐ का जाप भी खूब करते हैं। बता दें कि ॐ के जाप के ढेरों फायदे भी बताए गए हैं।

जीवन में जब भी कोई कष्ट हमको घेरता है, तो सबसे पहले हम ईश्वर को ही याद करते हैं। हर कोई अपने-अपने तरीके से प्रभु की पूरा आराधना करता है। जब भी हम पूजा करते हैं तो कई मंत्रों का जाप करते हैं। दरअसल  हिंदू धर्म में मंत्रोच्चारण का एक विशेष  महत्व है और सभी मन्त्रों का उच्चारण ॐ से ही शुरु होता है। सनातन धर्म की परंपराओं के अनुसार, एक शब्द नहीं है बल्कि इसमें पूरा संसार  व्याप्त है।

सदियों से हमारे ऋषि मुनि केवल ॐ का उच्चारण करके ही कठिन तप योग और साधना करके प्रभु की साक्षात दर्शन करते थे। यह किसी चमत्कारी शब्द से कम नहीं है, जिसमें कई तरह की शक्ति हैं। मान्यता है कि केवल ॐ के जाप से ही ईश्वर को पाया जा सकता है। तो आइए जानते हैं ॐ की कल्याणकारी शक्तियों के बारे में और ‘ॐ’ का उच्चारण कैसे करना चाहिए।

‘ॐ’ के जाप से ही प्रभु हो जाते हैं प्रसन्न, जानिए इसका पौराणिक महत्व

ॐ का पौराणिक महत्व

सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार ॐ के उच्चारण में संपूर्ण ब्रह्मांड का ज्ञान छिपा हुआ है। केवल ओम के जाप से ही परमपिता परमेश्वर प्रसन्न होते हैं और जीवन के हर एक कष्ट को दूर करते हैं। पैराणिक महत्व के अनुसार ॐ ईश्वर के सभी रूपों का संयुक्त रूप है। इस शब्द से ही पूरा ब्रह्मांड टिका हुआ है। ॐ के उच्चारण से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है। ये ध्वनि इंसान की सुनने की क्षमता से बहुत ऊपर है। माना जाता है कि संसार के अस्तित्व में आने से पहले जिस प्राकृतिक ध्वनि की गूंज हुई थी वह ॐ की ही थी। यही कारण है कि इसको ब्रह्मांड की आवाज भी कहा गया है।
बता दें कि ‘ॐ’ का उच्चारण करते समय जब ‘म’ की ध्वनि मुख से निकलती है तो इससे हमारे मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती है और इससे व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का विकास होता है। ॐ के जाप से अशांत मन भी शांत और स्थिर होता है। केवल ओम के पूरे दिन जाप करने से आप अपने ईष्ट देव की कृपा पा सकते हैं।

ॐ का उच्चारण करते समय रखें इन बातों का ध्यान

ॐ का उच्चारण हमेशा  ही आपको स्वच्छ और खुले वातावरण में ही करना चाहिए। ॐ का उच्चारण करने से सांसे तेज हो जाती हैं, ऐसे में खुले स्थान पर इसका उच्चारण करने सकारात्मकता प्राप्त होती है। ॐ का उच्चारण सुखासन, पद्मासन, वज्रासन आदि मुद्रा में बैठ कर कर सकते हैं। इसके अलावा 5,7,11 या 21 बार ॐ का उच्चारण करना उपयोगी माना गया है। आप पूजा के वक्त विशेष रूप से ॐ का जाप अपने हिसाब से करें और भगवान की कृपा पाएं।

तो आइये जानते है क्या फायदे है ॐ जाप के –

ॐ जाप से गले में कंपन व तरंगे उत्त्पन होती है, जिसका शरीर के आंतरिक अंगों और थायराइड पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और शरीर आंतरिक रूप से मजबूत होने लगता है।

2. ॐ जाप से जो ध्वनि और तरंगे उत्पन्न होती है, जिससे रक्त का प्रवाह शरीर के हर भाग में संतुलित तरीके से होता है।

3. ॐ के उच्चारण से पाचन तंत्र में जो तरंगे पहुंचती है, वह पाचन तंत्र को क्रियाशील और स्वास्थ्य बनाती है।

4. ॐ शरीर को थकान मुक्त कर स्फूर्ति से भरता है, जिससे शरीर, मन व हृदय को अंदर से शक्ति मिलती है।

5. ॐ मन को मानसिक तनाव और बुरे विचार से मुक्त करता है, जिससे मन मजबूत होने लगता है और इच्छाओं पर नियंत्रण रहने लगता है।

6. ॐ की कंपन व तरंग फेफड़ों को स्वास्थ्य और मजबूत बनाती है और रोग मुक्त रखती है।

7. ॐ उच्चारण करते ही हमे सही स्थिति और आसन में बैठने के संकेत दिमाग में जाता है।

8. ॐ हमारी कल्पना शक्ति को वास्तविक रूप देता है।

9. आसन अवस्था में ॐ जाप करने से सारी हड्डियाँ एक विशेष अवस्था में स्थिर हो जाती है हड्डियों को मजबूती मिलती है।

10.ॐ शरीर को आंतरिक रूप से इतना मजबूत कर देता है कि हम हर भय से मुक्त हो जाते है।

11. ॐ का उच्चारण हमारी ज्ञानेन्द्रियों को इतना मजबूत कर देता है कि आत्मा शरीर से अलग होकर जीते जी ब्रम्हाण में विलीन होने लगाती है।

12. ॐ जाप शरीर को मजबूत, हल्का, ऊर्जावान, स्वास्थ्य, रोगमुक्त करता है। उसके साथ साथ दिमाग को विकसित, ज्ञानवान, तनावमुक्त, स्थिर, एकाग्र करता है. ह्रदय को प्रसन्न, उत्साहित, स्वास्थ्य और एहसास मुक्त करता है – जिसके कारण हम दुनिया की तकलीफ, बेकार की परेशानी और समस्याओं में नहीं उलझते ।

जानिए महामृत्युंजय मंत्र व इसका महत्व

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दारिद्रयदहन शिव स्तोत्रम्‌ https://manimahesh.in/%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%af%e0%a4%a6%e0%a4%b9%e0%a4%a8-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a5%8b%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae/ Sat, 17 Dec 2022 15:56:53 +0000 https://manimahesh.in/?p=653 दारिद्रयदहन शिव स्तोत्रम्‌ : प्रतिदिन भगवान शंकर का पूजन करके दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्‌ का पाठ करना चाहिए। इससे शिव की कृपा प्राप्ति होकर दारिद्रय का नाश होता है तथा अथाह धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है। इसे पूरे श्रावण मास में सिर्फ पढ़ने से बेशुमार धन संपदा मिलने के योग बनते हैं। व्यक्ति घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे […]

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दारिद्रयदहन शिव स्तोत्रम्‌ : प्रतिदिन भगवान शंकर का पूजन करके दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्‌ का पाठ करना चाहिए। इससे शिव की कृपा प्राप्ति होकर दारिद्रय का नाश होता है तथा अथाह धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है। इसे पूरे श्रावण मास में सिर्फ पढ़ने से बेशुमार धन संपदा मिलने के योग बनते हैं। व्यक्ति घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे हों, कर्ज में डूबे हों, व्यापार व्यवसाय की पूंजी बार-बार फंस जाती हो उन्हें दारिद्रय दहन स्तोत्र से शिवजी की आराधना करनी चाहिए। महर्षि वशिष्ठ द्वारा रचित यह स्तोत्र बहुत असरदायक है। यदि संकट बहुत ज्यादा है तो शिवमंदिर में या शिव की प्रतिमा के सामने प्रतिदिन तीन बार इसका पाठ करें तो विशेष लाभ होगा। जो व्यक्ति कष्ट में हैं अगर वह स्वयं पाठ करें तो सर्वोत्तम फलदायी होता है लेकिन परिजन जैसे पत्नी या माता-पिता भी उसके बदले पाठ करें तो लाभ होता है।

दारिद्रयदहन शिव स्तोत्रम्‌ के श्लोक

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय

कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय।

कर्पूरकांतिधवलाय जटाधराय

दारिद्रयदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥1॥

गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय

कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय।

गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय ॥दारिद्रय. ॥2॥

भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय

उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय।

ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय ॥ दारिद्रय. ॥3॥

चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय

भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय।

मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय ॥ दारिद्रय. ॥4॥

पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय

हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय।

आनंतभूमिवरदाय तमोमयाय ॥दारिद्रय. ॥5॥

भानुप्रियाय भवसागरतारणाय

कालान्तकाय कमलासनपूजिताय।

नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय ॥दारिद्रय. ॥6॥

रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय

नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।

पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय ॥ दारिद्रय. ॥7॥

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय

गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय।

मातङग्‌चर्मवसनाय महेश्वराय ॥ दारिद्रय. ॥8॥

वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम्‌।

सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्‌।

त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्‌ ॥9॥\

दारिद्रयदहन शिव स्तोत्रम्‌

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क्या विज्ञान है शिव पुराण कथा के पीछे? https://manimahesh.in/%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%9c%e0%a5%8d%e0%a4%9e%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5-%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%a3-%e0%a4%95%e0%a4%a5%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a5%80%e0%a4%9b%e0%a5%87/ Fri, 16 Dec 2022 15:50:53 +0000 https://manimahesh.in/?p=605 शिव पुराण के पीछे यह विज्ञान है कि अगर आप शिव पुराण की कथाओं की तरफ ध्यान दें, तो आप देखेंगे कि इनमें मूल विचार के सिद्धांत, प्रमात्रा यांत्रिकी के सिद्धांत व समस्त आधुनिक भौतिकी को बहुत खूबसूरती से कथाओं के माध्यम, से अभिव्यक्त किया गया है। यह एक तार्किक संस्कृति का उदाहरण है जहां […]

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शिव पुराण के पीछे यह विज्ञान है कि अगर आप शिव पुराण की कथाओं की तरफ ध्यान दें, तो आप देखेंगे कि इनमें मूल विचार के सिद्धांत, प्रमात्रा यांत्रिकी के सिद्धांत व समस्त आधुनिक भौतिकी को बहुत खूबसूरती से कथाओं के माध्यम, से अभिव्यक्त किया गया है।

यह एक तार्किक संस्कृति का उदाहरण है जहां विज्ञान को कथाओं के जरिये प्रस्तुत किया गया था। हर चीज को साकार रूप दिया गया था। परंतु बाद में जाकर लोगों ने विज्ञान को ही छोड़ दिया और बस कहानियों को बोलते रहे। उन कहानियों का पीढ़ी दर पीढ़ी इस तरह व्याख्यान किया जाता रहा, कि वे पूरी तरह विश्वसनीय नहीं लगने लगीं। अगर हम उन कथाओं में से विज्ञान का अध्ययन करें, तो यह विज्ञान को अभिव्यक्त करने का एक खूबसूरत तरीका बन सकता है।

शिव पुराण मानव प्रकृति को चेतना के चरम तक ले जाने का सर्वोच्च विज्ञान है, जिसका वर्णन अत्यंत ही खूबसूरत तरीके से कहानियों द्वारा किया गया है। योग को एक विज्ञान के रूप में व्यक्त किया गया है, जिसमें कहानियां नहीं हैं, लेकिन अगर आप गहन अर्थों में उस पर ध्यान दें, तो योग और शिव पुराण को अलग नहीं किया जा सकता। एक उनके लिए है, जो कहानियां पसंद करते हैं तो दूसरा उनके लिए है, जो हर चीज को विज्ञान की नजर से देखना चाहते हैं, मगर दोनों के लिए मूलभूत तत्व एक ही हैं।

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित शिवपुराण ( Shiv Puran ) में भगवान शिव (Lord Shiva ) के विविध रूपों, अवतारों और ज्योतिलिंर्गों के महत्व का वर्णन किया गया है। इसमें इन्हें पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर माना गया है।

 क्या विज्ञान है शिव पुराण कथा के पीछे?

आजकल वैज्ञानिक आधुनिक शिक्षा के माध्यमों पर बहुत ज्यादा शोध कर रहे हैं। इस चीज पर बहुत ध्यान दिया जा रहा कि अगर कोई बच्चा कई सालों की औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद व्यावहारिक दुनिया में प्रवेश करता है, तो उसकी समझ का एक काफी बड़ा हिस्सा नष्ट हो जाता है तथा जिसे वापस ठीक नहीं कर सकते। इसका तात्पर्य यह हुआ कि इतना ज्ञान प्राप्त करने वाला बहुत बड़े ज्ञानी की जगह नासमझ में बदल जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि शिक्षा देने का एक सबसे बेहतर तरीका यह है कि उसे कहानियों या नाटक के रूप में प्रदान करना। इस दिशा में थोड़ी-बहुत कोशिश की गई है, मगर दुनिया में ज्यादातर शिक्षा काफी हद तक नकारात्मक ही रही है। जानकारी का विशाल भंडार आपकी बुद्धि को दबा देता है, जब तक कि वह एक खास रूप में आपको न दिया जाए। इतने शोधों के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि कहानी के रूप में शिक्षा प्रदान करना एक बेहतरीन तरीका साबित होगा। हिन्दू संस्कृति के शिव पुराण में यही किया गया था। विज्ञान के सर्वोच्च आयामों को बहुत बढ़िया कहानियों के रूप में दूसरे लोगों को सौंपा गया था ।

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देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर को भगवान शिव का वरदान https://manimahesh.in/%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b5%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%93%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%8b%e0%a4%b7%e0%a4%be%e0%a4%a7%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7-%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%ad%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b5%e0%a4%b0%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%a8/ Sat, 10 Dec 2022 03:25:36 +0000 https://manimahesh.in/?p=569 शिव पुराण में बताया गया है देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर को भगवान शिव का वरदान कि वह यक्षों के स्वामी और देवताओं का कोषाध्यक्ष बनेंगे। कुबेर महाराज पूर्व जन्म में गुणनिधि नामक ब्राह्मण थे। बचपन में कुछ दिनों तक इन्होंने धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया लेकिन बाद में कुसंगति में पड़कर जुआ खेलने लगे। धीरे-धीरे चोरी और दूसरे गलत काम भी करने लगे। […]

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शिव पुराण में बताया गया है देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर को भगवान शिव का वरदान कि वह यक्षों के स्वामी और देवताओं का कोषाध्यक्ष बनेंगे। कुबेर महाराज पूर्व जन्म में गुणनिधि नामक ब्राह्मण थे। बचपन में कुछ दिनों तक इन्होंने धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया लेकिन बाद में कुसंगति में पड़कर जुआ खेलने लगे। धीरे-धीरे चोरी और दूसरे गलत काम भी करने लगे।

एक दिन दुःखी होकर गुणनिधि के पिता यज्ञदत्त ने इन्हें घर से निकाल दिया। भटकते हुए गणनिधि एक वन में पहुंचा। भूख प्यास से बुरा हाल हो रहा था। तभी इसने देखा कि कुछ लोग भोग समाग्री लेकर जा रहे हैं।

भोजन को देखकर गुणनिधि की भूख और बढ़ गई। वह लोगों के पीछे-पीछे चल पड़ा। इसने देखा कि लोग शिवालय में जाकर भगवान शिव की पूजा कर रहे हैं। सभी भोग सामग्री शिव जी को अर्पित करके लोग भजन कीर्तन करने लगे।

गुणनिधि मौके की तलाश में था कि कब वह भगवान पर चढ़ाए गए भोग पदार्थों को चुरा ले। रात में जब सभी लोग सो गए तो गुणनिधि दबे पांव मंदिर में जाकर भोग सामग्री चुराकर वापस चल पड़ा। लेकिन एक व्यक्ति को गुणनिधि का पांव लग गया और वह चोर-चोर चिल्लाने लगा।

गुणनिधि जान बचाकर भागा लेकिन नगर रक्षक के तीर का निशान बन गया। गुणनिधि की मृत्यु हो गई।

लेकिन भगवान शिव की कृपा से उसे अनजाने में ही शिवरात्रि व्रत करने का फल प्राप्त हो गया और कुबेर को भगवान शिव का वरदान मिलने का मौका मिला। इसके प्रभाव से अगले जन्म में गुणनिधि कलिंग देश का राजा हुआ। इस जन्म में गुणनिधि शिव का परम भक्त था। इसके पुण्य से भगवान शिव ने कुबेर को यक्षों का स्वामी और देवताओं का कोषाध्यक्ष बना दिया

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भगवान शिव को शंख से जल चढ़ाना है मना https://manimahesh.in/%e0%a4%ad%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%b6%e0%a4%82%e0%a4%96-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%9c%e0%a4%b2-%e0%a4%9a%e0%a4%a2%e0%a4%bc%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a4%be/ Fri, 09 Dec 2022 17:41:30 +0000 https://manimahesh.in/?p=564 भगवान शिव को शंख से जल चढ़ाना मना किया गया है। हिंदू धर्म वैसे तो शंख को एक पवित्र वस्‍तु के रूप में पूजा जाता है और सभी देवी देवताओं के ऊपर शंख से जल चढ़ाने की परंपरा है। भगवान विष्‍णु को यह बहुत पसंद है लेकिन भगवान शिव को शंख से जल नहीं चढ़ाया […]

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भगवान शिव को शंख से जल चढ़ाना मना किया गया है। हिंदू धर्म वैसे तो शंख को एक पवित्र वस्‍तु के रूप में पूजा जाता है और सभी देवी देवताओं के ऊपर शंख से जल चढ़ाने की परंपरा है। भगवान विष्‍णु को यह बहुत पसंद है लेकिन भगवान शिव को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है। ऐसा क्‍यों है इसके पीछे शिवपुराण में एक कथा का वर्णन है। जिसके अनुसार शंखचूड नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ करता था जो शंखचूड दैत्यराम दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ को लंबे समय तक संतान सुख की प्राप्‍ती नहीं हुई थी तो उसने भगवान विष्णु की घोर तपस्‍या की जिससे वह प्रसन्‍न हो गए और दंभ ने उनसे तीनों लोको के लिए अजेय एक महापराक्रमी पुत्र का वर प्राप्‍त कर लिया।

इसके बाद दंभ के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया। शंखचुड ने भी ब्रह्माजी के घोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न कर वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रह्माजी ने इसके लिए उसे श्रीकृष्णकवच दिया और कहां कि तुम धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह कर लो इसके बाद तुम्‍हें कोई परास्‍त नहीं कर पाएगा।

ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड के बीच विवाह संपन्‍न हो गया। ब्रह्मा के वरदान के बाद शंखचूड ने तीनों लोकों पर अधिकार प्राप्‍त कर लिया है। देवताओं ने परेशान होकर विष्णु भगवान से मदद की गुहार लगाई परंतु उन्होंने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था। अत: उन्होंने देवताओं से शिव भगवान की शरण में जाने के लिए कहा तब भगवान शिव ने देवताओं के दुख दूर करने का निर्णय लिया। लेकिन यह इतना आसान नहीं था क्‍योंकि श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पातिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे। इन परिस्थितियों में विष्णु भगवान ने ब्राह्मण रूप धारण कर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्णकवच दान में ले लिया। इसके बाद शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया।

इसके बाद शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया था और उसकी हड्डियों राख से ही शंख का निर्माण हुआ। चूंकि शंखचूड़ विष्णु भक्त था अत: लक्ष्मी-विष्णु को शंख का जल अर्पित करने पर वह बहुत प्रसन्‍न होते हैं। परंतु शिव ने चूंकि उसका वध किया था अत: शंख का जल शिव को चढ़ाने के लिए मना किया गया है। इसी वजह से भगवान शिव को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है।

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शिव ने किया माता पार्वती का त्याग https://manimahesh.in/%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%a4%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%97/ Sat, 03 Dec 2022 21:53:53 +0000 https://manimahesh.in/?p=526 झूठ बोलने वाले लोग शिव को प्रिय नहीं हैं। इसी कारण भोलेनाथ ने माता पार्वती का त्याग कर दिया था। क्योंकि उन्होंने भगवान राम से सीता रूप में मिलने के बाद भोलेनाथ से झूठ बोला था। शिव महापुराण के अनुसार जब माता पार्वती और शिव अगस्त मुनि से कथा सुनकर कर लौट रहे थे। उसी दौरान भोलेनाथ ने देखा कि उनके आराध्यदेव भगवान राम […]

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झूठ बोलने वाले लोग शिव को प्रिय नहीं हैं। इसी कारण भोलेनाथ ने माता पार्वती का त्याग कर दिया था। क्योंकि उन्होंने भगवान राम से सीता रूप में मिलने के बाद भोलेनाथ से झूठ बोला था।

शिव महापुराण के अनुसार जब माता पार्वती और शिव अगस्त मुनि से कथा सुनकर कर लौट रहे थे। उसी दौरान भोलेनाथ ने देखा कि उनके आराध्यदेव भगवान राम माता सीता के वियोग में भटक रहे हैं। उन्हें देखने के बाद शिव ने उन्हें प्रणाम किया, मगर माता पार्वती के मन में राम की परीक्षा लेने का विचार आया।

भोलेनाथ से आग्रह कर वे प्रभु राम की परीक्षा लेने पहुंचीं। लेकिन पार्वती को देखते ही भगवान राम ने पार्वती को माता का संबोधन देते हुए कहा कि आप यहां, भोलेनाथ कहां हैं?

वहीं भगवान द्वारा पहचाने जाने और माता शब्द के संबोधन को छिपाते हुए पार्वती ने शिव से झूठ का सहारा लिया। पार्वती ने कहा कि भगवान राम ने नहीं पहचाना। तत्पश्चात ध्यान करने पर जब शिव को पता चला कि राम ने उन्हें माता से संबोधित किया है तो उन्होंने पार्वती का त्याग कर दिया।

पार्वती के त्याग का एक कारण यह भी रहा कि राम ने पार्वती को माता कहा था, इसलिए उन्होंने अपने आराध्य देव की माता को पत्नी रूप से त्याग कर दिया।

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महादेव का अनोखा संकल्प https://manimahesh.in/%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b5-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%85%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%96%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%95%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%aa/ Sat, 03 Dec 2022 21:43:18 +0000 https://manimahesh.in/?p=520 एक बार भगवान महादेव ने बहुत क्रोध कर के एक अनोखा संकल्प लिया । उन्होंने माता पार्वती को साक्षी बनाकर यह संकल्प लिया कि जब तक यह दुष्ट दुनिया सुधरेगी नहीं, तब तक वह शंख नहीं बजाएंगे। शंकर भगवान शंख बजाएं तो बरसात हो। बरसात रुक गई। अकाल-दर-अकाल पड़े। पानी की बूंद तक नहीं बरसी। न किसी राजा के क्लेश […]

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एक बार भगवान महादेव ने बहुत क्रोध कर के एक अनोखा संकल्प लिया । उन्होंने माता पार्वती को साक्षी बनाकर यह संकल्प लिया कि जब तक यह दुष्ट दुनिया सुधरेगी नहीं, तब तक वह शंख नहीं बजाएंगे। शंकर भगवान शंख बजाएं तो बरसात हो। बरसात रुक गई। अकाल-दर-अकाल पड़े। पानी की बूंद तक नहीं बरसी। न किसी राजा के क्लेश व सन्ताप की सीमा रही और न किसी रंक की। दुनिया में त्राहिमाम-त्राहिमाम मच गया। लोगों ने मुंह में तिनका दबाकर खूब ही प्रायश्चित किया। पर महादेव अपने प्रण से तनिक भी नहीं डिगे।

एक बार ऐसे संयोग की बात बनी कि भगवान शंकर व माता पार्वती आकाश में उड़ते जा रहे थे तो उन्होंने एक अजीब ही दृश्य देखा कि एक किसान भरी दोपहरी जलती धूप में खेत की जुताई कर रहा है। पसीने में सराबोर, मगर अपनी धुन में मगन। जमीन पत्थर की तरह सख्त हो गयी थी, फिर भी वह जी-जोड़ मेहनत कर रहा था, जैसे कल-परसों ही बारिश हुई हो। उसकी आंखों और उसके पसीने की बूंदों से ऐसी ही आशा चू रही थी।

भोले शंकर को बड़ा आश्चर्य हुआ कि पानी बरसे तो बरस बीते। तब यह मूर्ख क्या पागलपन कर रहा है। शंकर पार्वती आकाश से नीचे उतरे। उससे पूछा

“अरे बावले! क्यों बेकार कष्ट उठा रहा है? सूखी धरती में केवल पसीने बहाने से ही खेती नहीं होती। बरसात का तो अब सपना भी दूभर है।”

किसान ने एक बार आंख उठा कर उनकी ओर देखा और फिर हल चलाते-चलाते ही जवाब दिया, “हां, बिलकुल ठीक कह रहे हैं आप। मगर हल चलने का हुनर भूल न जाऊं, इसलिए मैं हर साल इसी तरह पूरी लगन के साथ जुताई करता हूं। जुताई करना भूल गया तो केवल वर्षा से ही गरज सरेगी क्या। मेरी मेहनत का अपना आनंद भी तो है। केवल लोभ की खातिर ही मैं खेती नहीं करता।”

महादेव का संकल्प

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शिवालय में पूजा के लिए कहां बैठें https://manimahesh.in/%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a4%af-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%9c%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%82-%e0%a4%ac%e0%a5%88%e0%a4%a0%e0%a5%87%e0%a4%82/ Sat, 03 Dec 2022 21:40:57 +0000 https://manimahesh.in/?p=518 सामान्यतः शिवजी के मंदिर में पूजा एवं साधना करनेवाले श्रद्धालुगण शिवजी की तरंगों को सीधे अपने शरीर पर नहीं लेते; क्योंकि इससे उन्हें कष्ट होता है । शिवजी के मंदिर में अरघा के स्रोत के ठीक सामने न बैठकर आगे दी गई आकृति में दिखाए अनुसार एक ओर बैठते हैं । ऐसा इसलिए क्योंकि शिवजी […]

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सामान्यतः शिवजी के मंदिर में पूजा एवं साधना करनेवाले श्रद्धालुगण शिवजी की तरंगों को सीधे अपने शरीर पर नहीं लेते; क्योंकि इससे उन्हें कष्ट होता है । शिवजी के मंदिर में अरघा के स्रोत के ठीक सामने न बैठकर आगे दी गई आकृति में दिखाए अनुसार एक ओर बैठते हैं । ऐसा इसलिए क्योंकि शिवजी की तरंगें सामने की ओर से न निकलकर, अरघा के स्रोत से बाहर निकलती हैं ।

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शिव उपासनांतर्गत पिंडी की पूजा https://manimahesh.in/%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5-%e0%a4%89%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%82%e0%a4%a4%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%97%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%9c%e0%a4%be/ Sat, 03 Dec 2022 21:37:06 +0000 https://manimahesh.in/?p=515 स्नान शंकरजी की पिंडी को ठंडे जल, दूध एवं पंचामृत से स्नान कराते हैं । (चौदहवीं शताब्दी से पूर्व शंकरजी की पिंडी को केवल जल से स्नान करवाया जाता था; दूध एवं पंचामृत से नहीं । दूध एवं घी ‘स्थिति’के प्रतीक हैं, इसलिए ‘लय’ के देवता शंकरजी की पूजा में उनका उपयोग नहीं किया जाता […]

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स्नान

शंकरजी की पिंडी को ठंडे जल, दूध एवं पंचामृत से स्नान कराते हैं । (चौदहवीं शताब्दी से पूर्व शंकरजी की पिंडी को केवल जल से स्नान करवाया जाता था; दूध एवं पंचामृत से नहीं । दूध एवं घी ‘स्थिति’के प्रतीक हैं, इसलिए ‘लय’ के देवता शंकरजी की पूजा में उनका उपयोग नहीं किया जाता था । चौदहवीं शताब्दी में दूध को शक्ति का प्रतीक मानकर शैवों ने भी वैष्णव उपासना में प्रचलित पंचामृतस्नान, दुग्धस्नान इत्यादि अपनाए ।)

हलदी एवं कुमकुम निषिद्ध

पिंडी पर हलदी एवं कुमकुम न चढाने का कारण आगे दिए अनुसार है । हलदी मिट्टी में उपजती है एवं उर्वर धरती अर्थात उत्पत्ति का वह प्रतीक है । कुमकुम भी हलदी से ही बनता है, इसलिए वह भी उत्पत्ति का ही प्रतीक है । चूंकि शिवजी ‘लय ’के देवता हैं, इसीलिए ‘उत्पत्ति’ के प्रतीक हलदी-कुमकुम का प्रयोग शिवपूजन में नहीं किया जाता । भस्म इसलिए लगाते हैं, क्योंकि वह लय का द्योतक है ।

भस्म

पिंडी के दर्शनीय ओर से भस्म की तीन समानांतर धारियां बनाते हैं अथवा फिर समांतर धारियां खींचकर उन पर मध्य में एक वृत्त बनाते हैं, जिसे शिवाक्ष कहते हैं 

अक्षत

पिंडी का पूजन करते समय श्वेत अक्षत का प्रयोग आगे दिए गए कारणों से उचित होता है । श्वेत अक्षत वैराग्य के, अर्थात निष्काम साधना के द्योतक हैं । श्वेत अक्षत की ओर निर्गुण से संबंधित मूल उच्च देवताओं की तरंगें आकर्षित होती हैं । शंकर एक उच्च देवता हैं और वह अधिकाधिक निर्गुण से संबंधित हैं, इसलिए श्वेत अक्षत पिंडी के पूजन में प्रयुक्त होने से शिवतत्त्व का अधिक लाभ मिलता है ।

पुष्प

धतूरा, श्वेत कमल, श्वेत कनेर, चमेली, मदार, नागचंपा, पुंनाग, नागकेसर, रजनीगंधा, जाही, जूही, मोगरा तथा श्वेत पुष्प शिवजी को चढाएं । (शिवजी को केतकी, केवडा वर्जित हैं, इसलिए न चढाएं । केवल महाशिवरात्रि के दिन चढाएं ।)

बेल

बिल्वपत्र को औंधे रख और उसके डंठल को अपनी ओर कर पिंडी पर चढाते हैं ।

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रंच त्रयायुधम् ।
त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।

बिल्वाष्टक, श्लोक १

अर्थ : त्रिदल (तीन पत्र) युक्त, त्रिगुण के समान, तीन नेत्रों के समान, तीन आयुधों के समान एवं तीन जन्मों के पाप नष्ट करनेवाला यह बिल्वपत्र, मैं शंकरजी को अर्पित करता हूं ।

जल की धारा

पिंडी में शिव-शक्ति एकत्रित होने के कारण प्रचंड ऊर्जा उत्पन्न होती है । इस ऊर्जा का पिंडी के कणों पर एवं दर्शनार्थियों पर कोई प्रतिकूल परिणाम न हो, इसलिए पिंडी पर निरंतर पानी की धारा पडती रहनी चाहिए । पानी की इस धारा से खर्ज स्वर में सूक्ष्म ओंकार (, निर्गुण ब्रह्म का वाचक) उत्पन्न होता है । वैसे ही मंत्र की निरंतर धार पडते रहने से कालपिंड खुल जाता है, अर्थात जीव निर्गुण ब्रह्मतक पहुंच जाता है ।

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जानिए शिवलिंग पर क्या चढ़ाने से क्या फल मिलता है ? https://manimahesh.in/%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%9a%e0%a4%a2%e0%a4%bc%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%ab%e0%a4%b2-%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%b2%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a5%88/ Sat, 03 Dec 2022 21:22:26 +0000 https://manimahesh.in/?p=510 The post जानिए शिवलिंग पर क्या चढ़ाने से क्या फल मिलता है ? appeared first on मणिमहेश.

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  • शिवलिंग पर दूध अर्पित करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है |
  • शिवलिंग पर दही अर्पित करने से हमें जीवन में हर्ष और उल्लास की प्राप्ति होती है ।
  • शिवलिंग पर शहद चडाने से रूप और सौंदर्य प्राप्त होता है , वाणी में मिठास रहती है, समाज में लोकप्रियता बढ़ती है ।
  • शिवलिंग पर घी चढ़ाने से हमें तेज की प्राप्ति होती है।
  • शिवलिंग पर शकर चढ़ाने से सुख – समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
  • शिवलिंग पर ईत्र चढ़ाने से धर्म की प्राप्ति होती हैं।
  • शिवलिंग पर सुगंधित तेल चढ़ाने से धन धान्य की वृद्धि होती है, जीवन में सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है ।
  • शिवलिंग पर चंदन चढ़ाने से समाज में यश और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
  • शिवलिंग पर केशर अर्पित करने से दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है , विवाह में आने वाली समस्त अड़चने दूर होती है, मनचाहा जीवन साथी प्राप्त होता है विवाह के योग शीघ्र बनते है ।
  • शिवलिंग पर भांग चढ़ाने से हमारे समस्त पाप समस्त बुराइयां दूर होती हैं।
  • शिवलिंग पर आँवला अथवा आँवले का ऱस चढ़ाने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है ।
  • शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाने से समस्त पारिवारिक सुखो की प्राप्ति होती है , परिवार के सदस्यों के मध्य में प्रेम बना रहता है ।
  • शिवलिंग पर गेहूं चढ़ाने से वंश वृद्धि होती है, योग्य संतान की प्राप्ति होती है, संतान आज्ञाकारी होती है ।
  • शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से धन और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  • शिवलिंग पर तिल चढ़ाने से पापों समस्त रोगो का नाश होता है।
  • शिवलिंग पर जौ अर्पित करने से सांसारिक सुखो की प्राप्ति होती है ।
  • भगवान भोलेनाथ की बेलपत्र से पूजा करने से सभी संकट दूर होते है ।
  • भगवान भोलेनाथ की दूर्वा से पूजन करने दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है।
  • भगवान भोलेनाथ की हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर जीवन में सुख-संपत्ति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
  • भगवान भोलेनाथ पर चमेली के फूल चढ़ाने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है।
  • भगवान भोलेनाथ की धतूरे से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।
  • भगवान भोलेनाथ की आंकड़े के फूल से पूजन, श्रंगार करने से जीवन के सभी सुख मिलते है, पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • भगवान भोलेनाथ की अलसी के फूलों से पूजन करने से मनुष्य सभी देवताओं का प्रिय हो जाता है।
  • भगवान भोलेनाथ की बेला के फूल से पूजन करने पर मनचाहा, सुंदर जीवनसाथी मिलता है।
  • भगवान भोलेनाथ की जूही के फूल से पूजन करने से घर कारोबार में धन धान्य की कोई भी कमी नहीं होती है।

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