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1. पहला अध्याय – तारकपुत्रों की तपस्या एवं वरदान प्राप्ति
2. दूसरा अध्याय – देवताओं की प्रार्थना
3. तीसरा अध्याय – भगवान शिव का देवताओं को विष्णु के पास भेजना
4. चौथा अध्याय – नास्तिक शास्त्र का प्रादुर्भाव
5. पांचवां अध्याय – नास्तिक मत से त्रिपुर का मोहित होना
6. छठवां अध्याय – त्रिपुर सहित उनके स्वामियों के वध की प्रार्थना
7. सातवां अध्याय – देवताओं द्वारा शिव-स्तवन
8. आठवां अध्याय – दिव्य रथ का निर्माण
9. नवां अध्याय – भगवान शिव की यात्रा
10. दसवां अध्याय – त्रिपुरासुर वध
11. ग्यारहवां अध्याय – भगवान शिव द्वारा देवताओं को वरदान
12. बारहवां अध्याय – वर पाकर मय दानव का वितल लोक जाना
13. तेरहवां अध्याय – इंद्र को जीवनदान व बृहस्पति को ‘जीव’ नाम देना
14. चौदहवां अध्याय – जलंधर की उत्पत्ति
15. पंद्रहवां अध्याय – देव-जलंधर युद्ध
16. सोलहवां अध्याय – श्रीविष्णु का लक्ष्मी को जलंधर का वध न करने का वचन देना
17. सत्रहवां अध्याय – श्रीविष्णु-जलंधर युद्ध
18. अठारहवां अध्याय – नारद जी का कपट जाल
19. उन्नीसवां अध्याय – दूत-संवाद
20. बीसवां अध्याय – शिवगणों का असुरों से युद्ध
21. इक्कीसवां अध्याय – द्वंद्व-युद्ध
22. बाईसवां अध्याय – शिव-जलंधर युद्ध
23. तेईसवां अध्याय – वृंदा का पतिव्रत भंग
24. चौबीसवां अध्याय – जलंधर का वध
25. पच्चीसवां अध्याय – देवताओं द्वारा शिव स्तुति
26. छब्बीसवां अध्याय – धात्री, मालती और तुलसी का आविर्भाव
27. सत्ताईसवां अध्याय – शंखचूर्ण की उत्पत्ति
28. अट्ठाईसवां अध्याय – शंखचूड़ का विवाह
29. उन्तीसवां अध्याय – शंखचूड़ के राज्य की प्रशंसा
30. तीसवां अध्याय – देवताओं का शिवजी के पास जाना
31. इकत्तीसवां अध्याय – शिवजी द्वारा देवताओं को आश्वासन
32. बत्तीसवां अध्याय – पुष्पदंत-शंखचूड़ वार्ता
33. तेंतीसवां अध्याय – भगवान शिव की युद्ध यात्रा
34. चौंतीसवां अध्याय – शंखचूड़ की युद्ध यात्रा
35. पैंतीसवां अध्याय – शंखचूड़ के दूत और शिवजी की वार्ता
36. छत्तीसवां अध्याय – देव-दानव युद्ध
37. सैंतीसवां अध्याय – शंखचूड़ युद्ध
38. अड़तीसवां अध्याय – भद्रकाली-शंखचूड़ युद्ध
39. उन्तालीसवां अध्याय – शंखचूड़ की सेना का संहार
40. चालीसवां अध्याय – शिवजी द्वारा शंखचूड़ वध
41. इकतालीसवां अध्याय – तुलसी द्वारा विष्णुजी को शाप
42. बयालीसवां अध्याय – हिरण्याक्ष-वध
43. तैंतालीसवां अध्याय – हिरण्यकशिपु की तपस्या और नृसिंह द्वारा उसका वध
44. चवालीसवां अध्याय – अंधक की अंधता
45. पैंतालीसवां अध्याय – युद्ध आरंभ
46. छियालीसवां अध्याय – युद्ध की समाप्ति
47. सैंतालीसवां अध्ब्याय – शिव द्वारा शुक्राचार्य को निगलना
48. अड़तालीसवां अध्याय – शुक्राचार्य की मुक्ति
49. उनचासवां अध्याय – अंधक को गणत्व की प्राप्ति
50. पचासवां अध्याय – शुक्राचार्य को मृत संजीवनी की प्राप्ति
51. इक्यावनवां अध्याय – बाणासुर आख्यान
52. बावनवां अध्याय – बाणासुर को शाप व उषा चरित्र
53. तिरेपनवां अध्याय – अनिरुद्ध को बाण द्वारा नागपाश में बांधना तथा दुर्गा की कृपा से उसका मुक्त होना
54. चौवनवां अध्याय – श्रीकृष्ण द्वारा राक्षस सेना का संहार
55. पचपनवां अध्याय – बाणासुर की भुजाओं का विध्वंस
56. छप्पनवां अध्याय – बाणासुर को गण पद की प्राप्ति
57. सत्तानवां अध्याय – गजासुर की तपस्या एवं वध
58. अट्ठावनवां अध्याय – दुंदुभिनिर्ह्राद का वध
59. उनसठवां अध्याय – विदल और उत्पल नामक दैत्यों का वध