“विद्येश्वर संहिता” भारत के प्रसिद्ध ग्रन्थ शिव पुराण या महाशिवपुराण का प्रथम भाग है।
1. पापनाशक साधनों के विषय में प्रश्न – पहला अध्याय
2. शिव पुराण का परिचय और महिमा – दूसरा अध्याय
3. श्रवण, कीर्तन और मनन साधनों की श्रेष्ठता – तीसरा अध्याय
4. सनत्कुमार-व्यास संवाद – चौथा अध्याय
5. शिवलिंग का रहस्य एवं महत्व – पांचवां अध्याय
6. ब्रह्मा-विष्णुं युद्ध – छठा अध्याय
7. शिव निर्णय – सातवां अध्याय
8. आठवां अध्याय ब्रह्मा का अभिमान भंग
9. लिंग पूजन का महत्व – नवां अध्याय
10. प्रणव एवं पंचाक्षर मंत्र की महत्ता – दसवां अध्याय
11. शिवलिंग की स्थापना और पूजन विधि का वर्णन – ग्यारहवां अध्याय
12. मोक्षदायक पुण्य क्षेत्रों का वर्णन – बारहवां अध्याय
13. सदाचार, संध्यावंदन, प्रणव, गायत्री जाप एवं अग्निहोत्र की विधि तथा महिमा – तेरहवां अध्याय
14. अग्नियज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ का वर्णन – चौदहवां अध्याय
15. देश, काल, पात्र और दान का विचार – पंद्रहवां अध्याय
16. देव प्रतिमा का पूजन तथा शिवलिंग के वैज्ञानिक स्वरूप का विवेचन – सोलहवां अध्याय
17. प्रणव का माहात्म्य व शिवलोक के वैभव का वर्णन – सत्रहवां अध्याय
18. बंधन और मोक्ष का विवेचन – शिव के भस्मधारण का रहस्य – अठारहवां अध्याय
19. पूजा का भेद – उन्नीसवां अध्याय
20. पार्थिव लिंग पूजन की विधि – बीसवां अध्याय
21. शिवलिंग की संख्या – इक्कीसवां अध्याय
22. शिव नैवेद्य और बिल्व माहात्म्य – बाईसवां अध्याय
23. शिव नाम की महिमा – तेईसवां अध्याय
24. भस्मधारण की महिमा – चौबीसवां अध्याय
25. रुद्राक्ष माहात्म्य – पच्चीसवां अध्याय

रुद्राक्ष माहात्म्य – पच्चीसवां अध्याय

सूत जी कहते हैं - महाज्ञानी शिवस्वरूप शौनक ! भगवान शंकर के प्रिय रुद्राक्ष का माहात्म्य मैं तुम्हें सुना रहा हूं। यह रुद्राक्ष परम पावन है। इसके दर्शन, स्पर्श एवं…

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भस्मधारण की महिमा – चौबीसवां अध्याय

सूत जी ने कहा- हे ऋषियो ! अब मैं तुम्हारे लिए समस्त वस्तुओं को पावन करने वाले भस्म का माहात्म्य सुनाता हूं। भस्म दो प्रकार की होती है - एक…

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शिव नाम की महिमा – तेईसवां अध्याय

ऋषि बोले- हे व्यास शिष्य सूत जी ! आपको नमस्कार है। हम पर कृपा कर हमें परम उत्तम 'रुद्राक्ष' तथा शिव नाम की महिमा का माहात्म्य सुनाइए । सूत जी…

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शिव नैवेद्य और बिल्व माहात्म्य – बाईसवां अध्याय

ऋषि बोले - हे सूत जी ! हमने पूर्व में सुना है कि शिव का नैवेद्य ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस संबंध में शास्त्र क्या कहते हैं? इसके बारे में…

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शिवलिंग की संख्या – इक्कीसवां अध्याय

सूत जी बोले - महर्षियो ! पार्थिव लिंगों की पूजा करोड़ों यज्ञों का फल देने वाली है। कलियुग में शिवलिंग पूजन मनुष्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ है। यह भोग और मोक्ष…

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पार्थिव लिंग पूजन की विधि – बीसवां अध्याय

पार्थिव लिंग की श्रेष्ठता तथा महिमा का वर्णन करते हुए सूत जी ने कहा- हे श्रेष्ठ महर्षियो ! वैदिक कर्मों के प्रति श्रद्धाभक्ति रखने वाले मनुष्यों के लिए पार्थिव लिंग…

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पूजा का भेद – उन्नीसवां अध्याय

ऋषि बोले- हे सूत जी ! आप हम पर कृपा करके पार्थिव महेश्वर की महिमा का वर्णन, जो आपने वेद-व्यास जी से सुना है, सुनाइए । सूत जी बोले- हे…

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बंधन और मोक्ष का विवेचन शिव के भस्मधारण का रहस्य – अठारहवां अध्याय

ऋषि बोले- सर्वज्ञों में श्रेष्ठ सूत जी ! बंधन और मोक्ष क्या है ? कृपया हम पर कृपा कर हमें बताएं? सूत जी ने कहा- महर्षियो ! मैं बंधन और…

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प्रणव का माहात्म्य व शिवलोक के वैभव का वर्णन – सत्रहवां अध्याय

ऋषि बोले- महामुनि ! आप हमें 'प्रणव मंत्र' का माहात्म्य तथा 'शिव' की भक्ति-पूजा का विधान सुनाइए। प्रणव का माहात्म्य सूत जी ने कहा – महर्षियो ! आप लोग तपस्या…

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देव प्रतिमा का पूजन तथा शिवलिंग के वैज्ञानिक स्वरूप का विवेचन – सोलहवां अध्याय

ऋषियों ने कहा - साधु शिरोमणि सूत जी ! हमें देव प्रतिमा के पूजन की विधि बताइए, जिससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। सूत जी बोले – हे महर्षियो…

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देश, काल, पात्र और दान का विचार – पंद्रहवां अध्याय

ऋषियों ने कहा – समस्त पदार्थों के ज्ञाताओं में श्रेष्ठ सूत जी हमसे देश, काल और दान का वर्णन करें। देश का वर्णन सूत जी बोले- अपने घर में किया…

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अग्नियज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ का वर्णन – चौदहवां अध्याय

ऋषियों ने कहा - प्रभो ! अग्नियज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ का वर्णन करके हमें कृतार्थ करें। सूत जी बोले - महर्षियो ! गृहस्थ पुरुषों के लिए प्रातः और सायंकाल अग्नि…

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सदाचार, संध्यावंदन, प्रणव, गायत्री जाप एवं अग्निहोत्र की विधि तथा महिमा – तेरहवां अध्याय

ऋषियों ने कहा – सूत जी ! आप हमें वह सदाचार सुनाइए जिससे विद्वान पुरुष पुण्य लोकों पर विजय पाता है। स्वर्ग प्रदान करने वाले धर्ममय तथा नरक का कष्ट…

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मोक्षदायक पुण्य क्षेत्रों का वर्णन – बारहवां अध्याय

सूत जी बोले - हे विद्वान और बुद्धिमान महर्षियो ! मैं मोक्ष देने वाले शिवक्षेत्रों का वर्णन कर रहा हूं। पर्वत, वन और काननों सहित इस पृथ्वी का विस्तार पचास…

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शिवलिंग की स्थापना और पूजन विधि का वर्णन ग्यारहवां -अध्याय

ऋषियों ने पूछा- सूत जी ! शिवलिंग की स्थापना कैसे करनी चाहिए तथा उसकी पूजा कैसे, किस काल में तथा किस द्रव्य द्वारा करनी चाहिए? सूत जी ने कहा- महर्षियो…

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प्रणव एवं पंचाक्षर मंत्र की महत्ता – दसवां अध्याय

ब्रह्मा और विष्णु ने पूछा - प्रभु! सृष्टि आदि पांच कृत्यों के लक्षण क्या हैं? यह हम दोनों को बताइए | भगवान शिव बोले- मेरे कर्तव्यों को समझना अत्यंत गहन…

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