“शिव पुराण” का “श्री रुद्र संहिता – प्रथम खंड” इस महत्वपूर्ण ग्रंथ के पांच खंडों में से एक है। इसमें भगवान शिव की कथाओं और उनकी लीलाओं का वर्णन किया गया है। शिव पुराण भारतीय वैदिक साहित्य का एक प्रमुख अंग है और इसे हिन्दू धर्म में बहुत उच्च स्थान प्राप्त है।

प्रथम खंड में मुख्यतः भगवान शिव की उत्पत्ति, उनके विभिन्न रूपों, उनकी शक्तियों और उनके द्वारा किए गए विभिन्न लीलाओं का विस्तार से वर्णन होता है।

  1. पहला अध्याय- ऋषिगणों की वार्ता
  2. दूसरा अध्याय-नारद  जी की काम वासना
  3. तीसरा अध्याय- नारद जी का भगवान विष्णु से उनका रूप मांगना
  4. चौथा अध्याय- नारद जी का भगवान विष्णु को शाप देना
  5. पांचवां अध्याय- नारद जी का शिवतीर्थों में भ्रमण व ब्रह्माजी से प्रश्न
  6. छठा अध्याय- ब्रह्माजी द्वारा शिवतत्व का वर्णन
  7. सातवां अध्याय- विवादग्रस्त ब्रह्मा-विष्णु के मध्य अग्नि-स्तंभ का प्रकट होना
  8. आठवां अध्याय- ब्रह्मा-विष्णु को भगवान शिव के दर्शन
  9. नवां अध्याय- * देवी उमा एवं भगवान शिव का प्राकट्य एवं उपदेश देना
  10. दसवां अध्याय-श्रीहरि को सृष्टि की रक्षा का भार एवं त्रिदेव को आयुर्बल देना
  11. ग्यारहवां अध्याय- * शिव पूजन की विधि तथा फल प्राप्ति
  12. बारहवां अध्याय- * देवताओं को उपदेश देना
  13. तेरहवां अध्याय- * शिव पूजन की श्रेष्ठ विधि
  14. चौदहवां अध्याय – * पुष्पों द्वारा शिव पूजा का माहात्म्य
  15. पंद्रहवां अध्याय- * सृष्टि का वर्णन
  16. सोलहवां अध्याय * सृष्टि की उत्पत्ति
  17. सत्रहवां अध्याय- पापी गुणनिधि की कथा
  18. अठारहवां अध्याय- गुणनिधि को मोक्ष की प्राप्ति
  19. उन्नीसवां अध्याय- गुणनिधि को कुबेर पद की प्राप्ति
  20. बीसवां अध्याय- भगवान शिव का कैलाश पर्वत पर गमन

भगवान शिव का कैलाश पर्वत पर गमन – बीसवां अध्याय

ब्रह्माजी बोले- हे नारद मुनि! कुबेर के कैलाश पर्वत पर तप करने से वहां पर भगवान शिव का शुभ आगमन हुआ । कुबेर को वर देने वाले विश्वेश्वर शिव जब…

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गुणनिधि को कुबेर पद की प्राप्ति – उन्नीसवां अध्याय

नारद जी ने प्रश्न किया - हे ब्रह्माजी ! अब आप मुझे यह बताइए कि गुणनिधि जैसे महापापी मनुष्य को भगवान शिव द्वारा कुबेर पद क्यों और कैसे प्रदान किया…

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गुणनिधि को मोक्ष की प्राप्ति – अठारहवां अध्याय

ब्रह्माजी बोले- हे नारद! जब यह समाचार गुणनिधि को मिला तो उसे अपने भविष्य की चिंता हुई। वह कई दिनों तक भूखा-प्यासा भटकता रहा। एक दिन भूख-प्यास से व्याकुल वह…

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पापी गुणनिधि की कथा – सत्रहवां अध्याय

सूत जी कहते हैं - हे ऋषियो ! तत्पश्चात नारद जी ने विनयपूर्वक प्रणाम किया और उनसे पूछा— भगवन्! भगवान शंकर कैलाश पर कब गए और महात्मा कुबेर से उनकी…

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सृष्टि की उत्पत्ति – सोलहवां अध्याय

ब्रह्माजी बोले – नारद! शब्द आदि पंचभूतों द्वारा पंचकरण करके उनके स्थूल, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी, पर्वत, समुद्र, वृक्ष और कला आदि से युगों और कालों की मैंने…

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सृष्टि का वर्णन – पंद्रहवां अध्याय

नारद जी ने पूछा— हे पितामह! आपने बहुत सी ज्ञान बढ़ाने वाली उत्तम बातों को सुनाया। कृपया इसके अलावा और भी जो आप सृष्टि एवं उससे संबंधित लोगों के बारे…

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पुष्पों द्वारा शिव पूजा का माहात्म्य – चौदहवां अध्याय

ऋषियों ने पूछा- हे महाभाग ! अब आप यह बताइए कि भगवान शिवजी की किन - किन फूलों से पूजा करनी चाहिए? विभिन्न फूलों से पूजा करने पर क्या-क्या फल…

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शिव पूजन की श्रेष्ठ विधि – तेरहवां अध्याय

ब्रह्माजी कहते हैं - हे नारद! अब मैं शिव पूजन की सर्वोत्तम विधि बताता हूं। यह विधि समस्त अभीष्ट तथा सुखों को प्रदान करने वाली है। उपासक ब्रह्ममुहूर्त में उठकर…

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देवताओं को उपदेश देना – बारहवां अध्याय

नारद जी बोले- ब्रह्माजी ! आप धन्य हैं क्योंकि आपने अपनी बुद्धि को शिव चरणों में लगा रखा है। कृपा कर इस आनंदमय विषय का वर्णन सविस्तार पुनः कीजिए।  ब्रह्माजी…

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शिव पूजन की विधि तथा फल प्राप्ति – ग्यारहवां अध्याय

ऋषि बोले - हे सूत जी ! अब आप हम पर कृपा कर हमें ब्रह्माजी व नारद के संवादों के अनुसार शिव पूजन की विधि बताइए, जिससे भगवान शिव प्रसन्न…

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श्रीहरि को सृष्टि की रक्षा का भार एवं त्रिदेव को आयुर्बल देना – दसवां अध्याय

परमेश्वर शिव बोले- हे उत्तम व्रत का पालन करने वाले विष्णु ! तुम सर्वदा सब लोकों में पूजनीय और मान्य होगे । ब्रह्माजी के द्वारा रचे लोक में कोई दुख…

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देवी उमा एवं भगवान शिव का प्राकट्य एवं उपदेश देना – नवां अध्याय

ब्रह्माजी बोले - नारद! भगवान विष्णु द्वारा की गई अपनी स्तुति सुनकर कल्याणमयी शिव बहुत प्रसन्न हुए और देवी उमा सहित वहां प्रकट हो गए। भगवान शिव के पांच मुख…

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ब्रह्मा-विष्णु को भगवान शिव के दर्शन – आठवां अध्याय

ब्रह्माजी बोले- मुनिश्रेष्ठ नारद! हम दोनों देवता घमंड को भूलकर निरंतर भगवान शिव का स्मरण करने लगे। हमारे मन में ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट परमेश्वर के वास्तविक रूप का…

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विवादग्रस्त ब्रह्मा-विष्णु के मध्य अग्नि-स्तंभ का प्रकट होना – सातवां अध्याय

ब्रह्माजी कहते हैं - हे देवर्षि ! जब नारायण जल में शयन करने लगे, तब शिवजी की इच्छा से विष्णुजी की नाभि से एक बहुत बड़ा कमल प्रकट हुआ ।…

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ब्रह्माजी द्वारा शिवतत्व का वर्णन – छठा अध्याय

ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! तुम सदैव जगत के उपकार में लगे रहते हो। तुमने जगत के लोगों के हित के लिए बहुत उत्तम बात पूछी है। जिसके सुनने से…

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नारद जी का शिवतीर्थों में भ्रमण व ब्रह्माजी से प्रश्न  – पांचवां अध्याय 

सूत जी बोले- महर्षियो ! भगवान श्रीहरि के अंतर्धान हो जाने पर मुनिश्रेष्ठ नारद शिवलिंगों का भक्तिपूर्वक दर्शन करने के लिए निकल गए। इस प्रकार भक्ति-मुक्ति देने वाले अनेक शिवलिंगों…

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