शिव भक्तों के लिए मोक्ष प्राप्ति के लिए पंच कैलाश यात्रा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है, सभी 5 कैलाश हिमालय पर्वत श्रृंखला में स्थित हैं। अधिकांश यात्री पंच कैलाश यात्रा को सत्य की यात्रा और एक महान आध्यात्मिक अनुभव मानते हैं, आइए संक्षेप में पंच कैलाश यात्रा में शामिल कैलाश पर्वत के बारे में जानते हैं।
कैलाश मानसरोवर:
तिब्बत में औसत समुद्र तल से 21,778 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। पर्वत मानसरोवर झील और रक्षास्तल झील के पास स्थित है और लगभग सभी धर्मों और हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, चीनी और बॉन जैसे धर्मों द्वारा पूजनीय है। यह अद्भुत स्थान रहस्यों से भरा है। शिव पुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण आदि में कैलाश खंड नाम से अलग ही अध्याय है, जहां की महिमा का गुणगान किया गया है। कैलाश मानसरोवर को शिव- पार्वती का घर माना जाता है। सदियों से देवता, दानव, योगी,मुनि और सिद्ध महात्मा यहां तपस्या करते आए हैं। मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को छू लेता है वह ब्रह्मा के बनाए स्वर्ग में पहुंच जाता है और जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है उसे भगवान शिव के बनाए स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है।
आदि कैलाश:
चोटी को छोटा कैलाश भी कहा जाता है और यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में भारत-तिब्बत सीमा के पास औसत समुद्र तल से 15,510 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। आदि कैलाश (छोटा कैलाश) भारत तिब्बत सीमा के बिलकुल पास भारतीय सीमा क्षेत्र के अंदर स्थित है। यह क्षेत्र उत्तम प्राकृतिक सुंदरता, शांति और सम्प्रभुता से भरा पूरा है। यह क्षेत्र बहुत ही शांत है, शांति की तलाश कर रहे यात्रियों के लिए यह स्थान अति उत्तम साबित होता है ! बहुत से लोग एक सामान रूप के चलते आदि कैलाश और मुख्य कैलाश में भ्रमित हो जातें हैं। आदि कैलाश के समीप एक झील स्थित है जिसे “पार्वती ताल” कहा जाता है ।।
किन्नौर कैलाश:
इस पवित्र शिखर को स्थानीय लोग किन्नर कैलाश भी कहते हैं। यह हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में समुद्र तल से 6050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस चोटी को हिंदू और बौद्ध दोनों किन्नौरियों द्वारा पवित्र माना जाता है। गणेश पार्क से करीब 500 मीटर की दूरी पर पार्वती कुंड है इस कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें श्रद्धा से सिक्का डाला जाए तो मुराद पूरी होती है। भक्त इस कुंड में पवित्र स्नान करने के बाद करीब 24 घंटे की कठिन राह पारकर किन्नौर कैलाश दर्शन के लिए पहुंचते हैं। शिवलिंग की एक चमत्कारी बात यह है कि 1 दिन में कई बार रंग बदलता है सूर्योदय से पूर्व सफेद सूर्योदय होने पर पीला मध्यकाल में लाल और संध्याकाल में काला हो जाता है।
श्रीखंड महादेव कैलाश:
इस गंतव्य तक पहुंचने के लिए लगभग एक सप्ताह तक ग्लेशियरों पर एक कठिन और खतरनाक ट्रेक करना पड़ता है। यह हिमाचल प्रदेश में रामपुर (निकटतम मोटर योग्य गंतव्य) से लगभग 120 किमी दूर स्थित है। शिव लिंग समुद्र तल से 21,700 फीट की ऊंचाई पर एक ग्लेशियर खिंचाव के बीच से 80 फीट की सरासर चट्टान का चेहरा है। पास जुलाई (श्रावण मास) के महीने में केवल एक सप्ताह के लिए 16 से 24 तक खुलता है। इस लिंग में एक दरार है जो कि लिंग के मध्य भाग में तिरछी दिशा के संकेत के रूप में विराजमान है। इस दरार में श्रद्धालुओं द्वारा भेंट अर्पण की जाती है। श्रीखंड कैलाश के इतिहास को पांडवों से जोड़ा जाता है कहा जाता है हस्तिनापुर इंद्रप्रस्थ से 14 वर्ष के वनवास के दौरान पांडवों को हिमालय की घाटी व पहाड़ों की कंदराओं में समय गुजारना पड़ा था इसी दौरान माता कुंती ने पांडवों के साथ ही थी।
मणिमहेश कैलाश:
हिमालय की पीर पंजाल श्रेणी में 4080 मीटर की ऊँचाई पर स्थित, यह मणिमहेश गंगा के तट पर स्थित है, जो चोटी से निकलती है। मणिमहेश का मार्ग हिमाचल प्रदेश के चंबा से होकर जाता है। मोटर योग्य सड़क हडसर तक जाती है और बाकी का रास्ता पैदल तय करना पड़ता है, जो लगभग 13 किमी की खड़ी चढ़ाई है। मणिमहेश कैलाश के समीप मणिमहेश झील है जो कि मानसरोवर झील के समानान्तर ऊंचाई पर बहती है, आज तक के इतिहास के अनुसार आज तक कोई भी आगंतुक इस पर्वत की चढ़ाई को पूरा नहीं कर पाया है। 1968 में नंदिनी पटेल नाम की महिला ने इस पर्वत पर चढ़ाई की कोशिश की थी परन्तु उसे बीच में ही अभियान को रोकना पड़ा था, पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह के पूर्व इस पर्वत को बनाया था, ऐसा माना जाता है कि यह भगवान शिव के निवास स्थलों में से एक है और भगवान शिव अपनी पत्नी के साथ अक्सर यहाँ घूमते हैं