वज्रांग का जन्म एवं पुत्र प्राप्ति का वर मांगना – चौदहवां अध्याय
नारद जी कहने लगे ;- ब्रह्माजी! तारकासुर कौन था? जिसने देवताओं को भी पीड़ित किया। उन्हें स्वर्ग से निष्कासित कर दिया और स्वर्ग पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया। कृपया…
1. पहला अध्याय – * हिमालय विवाह
2. दूसरा अध्याय – * पूर्व कथा
3. तीसरा अध्याय – * देवताओं का हिमालय के पास जाना
4. चौथा अध्याय – देवी जगदंबा के दिव्य स्वरूप का दर्शन
5. पांचवां अध्याय – मैना – हिमालय का तप व वरदान प्राप्ति
6. छठा अध्याय – * पार्वती जन्म
7. सातवां अध्याय – * पार्वती का नामकरण
8. आठवां अध्याय – मैना और हिमालय की बातचीत
9. नवां अध्याय – ॐ पार्वती का स्वप्न
10. दसवां अध्याय – * भौम-जन्म
11. ग्यारहवां अध्याय – भगवान शिव की गंगावतरण तीर्थ में तपस्या
12. बारहवां अध्याय – पार्वती को सेवा में रखने के लिए हिमालय का शिव को मनाना
13. तेरहवां अध्याय – पार्वती – शिव का दार्शनिक संवाद
14. चौदहवां अध्याय – वज्रांग का जन्म एवं पुत्र प्राप्ति का वर मांगना
15. पंद्रहवां अध्याय – * तारकासुर का जन्म व उसका तप
16. सोलहवां अध्याय – * तारक का स्वर्ग त्याग
17. सत्रहवां अध्याय – कामदेव का शिव को मोहने के लिए प्रस्थान
18. अठारहवां अध्याय – * कामदेव का भस्म होना
19. उन्नीसवां अध्याय – ॐ शिव क्रोधाग्नि की शांति
20. बीसवां अध्याय – शिवजी के बिछोह से पार्वती का शोक
21. इक्कीसवां अध्याय – * पार्वती की तपस्या
22. बाईसवां अध्याय – देवताओं का शिवजी के पास जाना
23. तेईसवां अध्याय – * शिव से विवाह करने का अनुरोध
24. चौबीसवां अध्याय – * सप्तऋषियों द्वारा पार्वती की परीक्षा
25. पच्चीसवां अध्याय – शिवजी द्वारा पार्वती जी की तपस्या की परीक्षा करना
26. छब्बीसवां अध्याय – पार्वती को शिवजी से दूर रहने का आदेश
27. सत्ताईसवां अध्याय – * पार्वती जी का क्रोध से ब्राह्मण को फटकारना
28. अट्ठाईसवां अध्याय – शिव-पार्वती संवाद
29. उनतीसवां अध्याय – * शिवजी द्वारा हिमालय से पार्वती को मांगना
30. तीसवां अध्याय – बाह्मण वेष में पार्वती के घर जाना
31. इकत्तीसवां अध्याय – सप्तऋषियों का आगमन और हिमालय को समझाना
32. बत्तीसवां अध्याय – * वशिष्ठ मुनि का उपदेश
33. तेंतीसवां अध्याय – अनरण्य राजा की कथा
34. चौंतीसवां अध्याय – पद्मा पिप्पलाद की कथा
35. पैंतीसवां अध्याय – हिमालय का शिवजी के साथ पार्वती के विवाह का निश्चय करना
36. छत्तीसवां अध्याय – सप्तऋषियों का शिव के पास आगमन
37. सैंतीसवां अध्याय – हिमालय का लग्न पत्रिका भेजना
38. अड़तीसवां अध्याय – विश्वकर्मा द्वारा दिव्य मंडप की रचना
39. उन्तालीसवां अध्याय – शिवजी का देवताओं को निमंत्रण
40. चालीसवां अध्याय – भगवान शिव की बारात का हिमालयपुरी की ओर प्रस्थान
41. इकतालीसवां अध्याय – मंडप वर्णन व देवताओं का भय
42. बयालीसवां अध्याय – * बारात की अगवानी और अभिनंदन
43. तेंतालीसवां अध्याय – * शिवजी की अनुपम लीला
44. चवालीसवां अध्याय – * मैना का विलाप एवं हठ
45. पैंतालीसवां अध्याय – शिव का सुंदर व दिव्य स्वरूप दर्शन
46. छियालीसवां अध्याय – * शिव का परिछन व पार्वती का सुंदर रूप देख प्रसन्न होना
47. सैंतालीसवां अध्याय – वर-वधू द्वारा एक-दूसरे का पूजन
48. अड़तालीसवां अध्याय – * शिव-पार्वती का विवाह आरंभ
49. उनचासवां अध्याय – ब्रह्माजी का मोहित होना
50. पचासवां अध्याय – * विवाह संपन्न और शिवजी से विनोद
51. इक्यानवां अध्याय – रति की प्रार्थना पर कामदेव को जीवनदान
52. बावनवां अध्याय – * भगवान शिव का आवासगृह में शयन
53. तिरेपनवां अध्याय – बारात का ठहरना और हिमालय का बारात को विदा करना
54. चौवनवां अध्याय – पार्वती को पतिव्रत धर्म का उपदेश
55. पचपनवां अध्याय – बारात का विदा होना तथा शिव-पार्वती का कैलाश पर निवास
नारद जी कहने लगे ;- ब्रह्माजी! तारकासुर कौन था? जिसने देवताओं को भी पीड़ित किया। उन्हें स्वर्ग से निष्कासित कर दिया और स्वर्ग पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया। कृपया…
भगवान शंकर के वचन सुनकर पार्वती जी बोलीं ;- योगीराज ! आपने जो कुछ भी मेरे पिताश्री गिरिराज हिमालय से कहा उसका उत्तर मैं देती हूं। अंतर्यामी । आपने महान…
ब्रह्माजी बोले ;– हे मुनि नारद! तत्पश्चात हिमालय अपनी पुत्री पार्वती को साथ लेकर शिवजी के पास गए। वहां जाकर उन्होंने योग साधना में डूबे त्रिलोकीनाथ भगवान शिव को दोनों…
ब्रह्माजी बोले ;– नारद! गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती, जो साक्षात जगदंबा का अवतार थीं, जब आठ वर्ष की हो गईं तब भगवान शिव को उनके जन्म का समाचार मिला।…
ब्रह्माजी बोले ;-- नारद! भगवान शिव का यश परम पावन, मंगलकारी, भक्तिवर्द्धक और उत्तम है। दक्ष-यज्ञ से वे अपने निवास कैलाश पर्वत पर वापस आ गए थे। वहां आकर भगवान…
ब्रह्माजी बोले ;– हे मुनिश्रेष्ठ नारद! जब मैना पार्वती के पास पहुंची तो उन्हें देखकर सोचने लगीं कि मेरी पुत्री तो कोमल और नाजुक है। यह सदैव राजसी ठाठ-बाट में…
ब्रह्माजी बोले ;– हे नारद! तुम्हारे स्वर्गलोक जाने के पश्चात कुछ समय तक सबकुछ ऐसे ही चलता रहा। एक दिन मैना अपने पति हिमालय के पास गई और उन्हें प्रणाम…
ब्रह्माजी बोले ;- हे मुनिश्रेष्ठ नारद! मैना के सामने जब देवी जगदंबिका ने शिशु रूप धारण किया तो वे सामान्य बच्चे की भांति रोने लगीं। उनका रोना सुनकर सभी स्त्रियां…
ब्रह्माजी कहते हैं ;- हे नारद! तत्पश्चात हिमालय और मैना देवी भगवती और शिवजी के चिंतन में लीन रहने लगे। उसके बाद जगत की माता जगदंबिका अपना कथन सत्य करने…
नारद जी ने पूछा ;- हे विधाता! देवी के अंतर्धान होने के बाद जब सभी देवता अपने अपने धाम को चले गए तब आगे क्या हुआ? हे भगवन्! कृपा करके…
ब्रह्माजी बोले ;- हे नारद! देवताओं के द्वारा की गई स्तुति से प्रसन्न होकर दुखों का नाश करने वाली जगदंबा देवी दुर्गा उनके सामने प्रकट हो गईं। वे अपने दिव्य…
नारद जी बोले ;- हे ब्रह्माजी! हे महामते! आपने अपने श्रीमुख से मैना के पूर्व जन्म की कथा कही, जो कि अद्भुत व अलौकिक थी। भगवन्! अब आप मुझे यह…
नारद जी बोले ;- हे पितामह ! अब आप मैना की उत्पत्ति के बारे में बताइए। साथ ही कन्याओं को दिए शाप के बारे में मुझे बताकर, मेरी शंका का…
नारद जी ने पूछा ;- हे पितामह ! अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपने शरीर का त्याग करने के बाद जगदंबा सती देवी कैसे हिमालय की पुत्री के रूप…