ब्राह्मण वेष में पार्वती के घर जाना – तीसवां अध्याय
्रह्माजी बोले ;- हे नारद! गिरिराज हिमालय और देवी मैना के मन में भगवान शिव के प्रति भक्ति भाव देखकर सभी देवता आपस में विचार-विमर्श करने लगे। तब देवताओं के…
1. पहला अध्याय – * हिमालय विवाह
2. दूसरा अध्याय – * पूर्व कथा
3. तीसरा अध्याय – * देवताओं का हिमालय के पास जाना
4. चौथा अध्याय – देवी जगदंबा के दिव्य स्वरूप का दर्शन
5. पांचवां अध्याय – मैना – हिमालय का तप व वरदान प्राप्ति
6. छठा अध्याय – * पार्वती जन्म
7. सातवां अध्याय – * पार्वती का नामकरण
8. आठवां अध्याय – मैना और हिमालय की बातचीत
9. नवां अध्याय – ॐ पार्वती का स्वप्न
10. दसवां अध्याय – * भौम-जन्म
11. ग्यारहवां अध्याय – भगवान शिव की गंगावतरण तीर्थ में तपस्या
12. बारहवां अध्याय – पार्वती को सेवा में रखने के लिए हिमालय का शिव को मनाना
13. तेरहवां अध्याय – पार्वती – शिव का दार्शनिक संवाद
14. चौदहवां अध्याय – वज्रांग का जन्म एवं पुत्र प्राप्ति का वर मांगना
15. पंद्रहवां अध्याय – * तारकासुर का जन्म व उसका तप
16. सोलहवां अध्याय – * तारक का स्वर्ग त्याग
17. सत्रहवां अध्याय – कामदेव का शिव को मोहने के लिए प्रस्थान
18. अठारहवां अध्याय – * कामदेव का भस्म होना
19. उन्नीसवां अध्याय – ॐ शिव क्रोधाग्नि की शांति
20. बीसवां अध्याय – शिवजी के बिछोह से पार्वती का शोक
21. इक्कीसवां अध्याय – * पार्वती की तपस्या
22. बाईसवां अध्याय – देवताओं का शिवजी के पास जाना
23. तेईसवां अध्याय – * शिव से विवाह करने का अनुरोध
24. चौबीसवां अध्याय – * सप्तऋषियों द्वारा पार्वती की परीक्षा
25. पच्चीसवां अध्याय – शिवजी द्वारा पार्वती जी की तपस्या की परीक्षा करना
26. छब्बीसवां अध्याय – पार्वती को शिवजी से दूर रहने का आदेश
27. सत्ताईसवां अध्याय – * पार्वती जी का क्रोध से ब्राह्मण को फटकारना
28. अट्ठाईसवां अध्याय – शिव-पार्वती संवाद
29. उनतीसवां अध्याय – * शिवजी द्वारा हिमालय से पार्वती को मांगना
30. तीसवां अध्याय – बाह्मण वेष में पार्वती के घर जाना
31. इकत्तीसवां अध्याय – सप्तऋषियों का आगमन और हिमालय को समझाना
32. बत्तीसवां अध्याय – * वशिष्ठ मुनि का उपदेश
33. तेंतीसवां अध्याय – अनरण्य राजा की कथा
34. चौंतीसवां अध्याय – पद्मा पिप्पलाद की कथा
35. पैंतीसवां अध्याय – हिमालय का शिवजी के साथ पार्वती के विवाह का निश्चय करना
36. छत्तीसवां अध्याय – सप्तऋषियों का शिव के पास आगमन
37. सैंतीसवां अध्याय – हिमालय का लग्न पत्रिका भेजना
38. अड़तीसवां अध्याय – विश्वकर्मा द्वारा दिव्य मंडप की रचना
39. उन्तालीसवां अध्याय – शिवजी का देवताओं को निमंत्रण
40. चालीसवां अध्याय – भगवान शिव की बारात का हिमालयपुरी की ओर प्रस्थान
41. इकतालीसवां अध्याय – मंडप वर्णन व देवताओं का भय
42. बयालीसवां अध्याय – * बारात की अगवानी और अभिनंदन
43. तेंतालीसवां अध्याय – * शिवजी की अनुपम लीला
44. चवालीसवां अध्याय – * मैना का विलाप एवं हठ
45. पैंतालीसवां अध्याय – शिव का सुंदर व दिव्य स्वरूप दर्शन
46. छियालीसवां अध्याय – * शिव का परिछन व पार्वती का सुंदर रूप देख प्रसन्न होना
47. सैंतालीसवां अध्याय – वर-वधू द्वारा एक-दूसरे का पूजन
48. अड़तालीसवां अध्याय – * शिव-पार्वती का विवाह आरंभ
49. उनचासवां अध्याय – ब्रह्माजी का मोहित होना
50. पचासवां अध्याय – * विवाह संपन्न और शिवजी से विनोद
51. इक्यानवां अध्याय – रति की प्रार्थना पर कामदेव को जीवनदान
52. बावनवां अध्याय – * भगवान शिव का आवासगृह में शयन
53. तिरेपनवां अध्याय – बारात का ठहरना और हिमालय का बारात को विदा करना
54. चौवनवां अध्याय – पार्वती को पतिव्रत धर्म का उपदेश
55. पचपनवां अध्याय – बारात का विदा होना तथा शिव-पार्वती का कैलाश पर निवास
्रह्माजी बोले ;- हे नारद! गिरिराज हिमालय और देवी मैना के मन में भगवान शिव के प्रति भक्ति भाव देखकर सभी देवता आपस में विचार-विमर्श करने लगे। तब देवताओं के…
ब्रह्माजी बोले ;- हे महामुनि नारद! भगवान शिव के वहां से अंतर्धान हो जाने के उपरांत देवी पार्वती भी अपनी सखियों के साथ प्रसन्नतापूर्वक अपने पिता के घर की ओर…
ब्रह्माजी कहते हैं ;— नारद! परमेश्वर भगवान शिव की बातें सुनकर और उनके साक्षात स्वरूप का दर्शन पाकर देवी पार्वती को बहुत हर्ष हुआ। उनका मुख मंडल प्रसन्नता के कारण…
पार्वती बोलीं ;- हे ब्राह्मण देवता! मैं तो आपको परमज्ञानी महात्मा समझ रही थी परंतु आपका भेद मेरे सामने पूर्णतः खुल चुका है। आपने शिवजी के विषय में मुझे जो…
पार्वती बोलीं ;- हे जटाधारी मुनि! मेरी सखी ने जो कुछ भी आपको बताया है, वह बिलकुल सत्य है। मैंने मन, वाणी और क्रिया से भगवान शिव को ही पति…
्रह्माजी बोले ;- हे मुनिश्रेष्ठ नारद! सप्तऋषियों ने पार्वती जी के आश्रम से आकर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव को वहां का सारा वृत्तांत सुनाया। सप्तऋषियों के अपने लोक चले जाने के…
ब्रह्माजी कहते हैं ;— देवताओं के अपने-अपने निवास पर लौट जाने के उपरांत भगवान शिव पार्वती की तपस्या की परीक्षा लेने के विषय में सोचने लगे। वे अपने परात्पर, माया…
ब्रह्माजी कहते हैं ;— हे नारद! देवताओं ने वहां पहुंचकर भगवान शिव को प्रणाम करके उनकी स्तुति की। वहां उपस्थित नंदीश्वर भगवान शिव से बोले ;- प्रभु! देवता और मुनि…
रह्माजी कहते हैं ;— मुनिश्वर! भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती को तपस्या करते-करते अनेक वर्ष बीत गए। परंतु भगवान शिव ने उन्हें वरदान तो…
्रह्माजी बोले ;- हे देवर्षि नारद! जब तुम पंचाक्षर मंत्र का उपदेश देकर उनके घर से चले आए तो देवी पार्वती मन ही मन बहुत प्रसन्न हुईं क्योंकि उन्हें महादेव…
्रह्माजी कहते हैं ;— नारद! जब भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर उसकी अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया तब मैंने उस क्रोधाग्नि से भयभीत देवताओं सहित सभी…
्रह्माजी बोले ;– हे नारद जी ! जब भगवान शंकर ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर उसकी अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया तो इस त्रिलोक के सभी चराचर जीव…
रह्माजी बोले ;– हे मुनि नारद! कामदेव अपनी पत्नी रति और वसंत ऋतु को अपने साथ लेकर हिमालय पर्वत पर पहुंचे जहां त्रिलोकीनाथ भगवान शिव शंकर तपस्या में मग्न बैठे…
्रह्माजी बोले ;- नारद! स्वर्ग में सब देवता मिलकर सलाह करने लगे कि किस प्रकार से भगवान रुद्र काम से सम्मोहित हो सकते हैं? शिवजी किस प्रकार पार्वती जी का…
ब्रह्माजी बोले ;- नारद जी ! सभी देवता तारकासुर के डर के कारण मारे-मारे इधर-उधर भटक रहे थे। इंद्र ने सभी देवताओं को मेरे पास आने की सलाह दी। सभी…
ब्रह्माजी बोले ;- हे मुनिश्रेष्ठ नारद! कुछ समय बाद वज्रांग की पत्नी गर्भवती हो गई। समय पूर्ण होने पर उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। वह बालक बहुत…