देवताओं का शिवजी के पास जाना – बाईसवां अध्याय

रह्माजी कहते हैं ;— मुनिश्वर! भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती को तपस्या करते-करते अनेक वर्ष बीत गए। परंतु भगवान शिव ने उन्हें वरदान तो दूर अपने दर्शन तक न दिए। तब पार्वती के पिता हिमाचल, उनकी माता मैना और मेरु एवं मंदराचल ने आकर पार्वती को बहुत समझाया तथा उनसे वापस घर लौट चलने का अनुरोध किया।

तब उन सबकी बात सुनकर देवी पार्वती ने विनम्रतापूर्वक कहा ;- हे पिताजी और माताजी! क्या आप लोगों ने मेरे द्वारा की गई प्रतिज्ञा को भुला दिया है? मैं भगवान शिव को अवश्य ही अपनी तपस्या द्वारा प्राप्त करूंगी। आप निश्चिंत होकर अपने घर लौट जाएं। इसी स्थान पर महादेव जी ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया था और वनों को अपनी क्रोधाग्नि में भस्म कर दिया था। उन त्रिलोकीनाथ भगवान शंकर को मैं अपनी तपस्या द्वारा यहां बुलाऊंगी। आप सभी यह जानते हैं कि भक्तवत्सल भगवान शिव को केवल भक्ति से ही वश में किया जा सकता है। अपने पिता, माता और भाइयों से ये वचन कहकर देवी पार्वती चुप हो गईं। उन्हें समझाने आए उनके सभी परिजन उनकी प्रशंसा करते हुए वापस अपने घर लौट गए। अपने माता-पिता के लौटने के पश्चात देवी पार्वती दुगुने उत्साह के साथ पुनः तपस्या करने में लीन हो गईं। उनकी अद्भुत तपस्या को देखकर सभी देवता, असुर, मनुष्य, मुनि आदि सभी चराचर प्राणियों सहित पूरा त्रिलोक संतृप्त हो उठा।

देवता समझ नहीं पा रहे थे कि पूरी प्रकृति क्यों उद्विग्न और अशांत है। यह जानने के लिए इंद्र व सब देवता गुरु बृहस्पति के पास गए। तत्पश्चात वे सभी मुझ विधाता की शरण में सुमेरु पर्वत पर पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने मुझे हाथ जोड़कर प्रणाम किया तथा मेरी स्तुति की। तब वे मुझसे पूछने लगे कि प्रभु! इस जगत के संतृप्त होने का क्या कारण है? उनका यह प्रश्न सुनकर मैंने त्रिलोकीनाथ भगवान शिव के चरणों का ध्यान करते हुए यह जान लिया कि जगत में उत्पन्न हुआ दाह देवी पार्वती द्वारा की गई तपस्या का ही परिणाम है। अतः सबकुछ जान लेने के उपरांत मैं इस बात को श्रीहरि विष्णु को बताने के लिए देवताओं के साथ क्षीरसागर को गया । वहां श्रीहरि सुखद आसन पर विराजमान थे। मुझ सहित सभी देवताओं ने विष्णुजी को प्रणाम कर उनकी स्तुति करना आरंभ कर दिया। तत्पश्चात मैंने श्रीहरि से कहा- हे हरि! देवी पार्वती के उग्र तप से संतृप्त होकर हम सभी आपकी शरण में आए हैं। हम सबकी रक्षा कीजिए। भगवन् हमें बचाइए।

हमारी करुण पुकार सुनकर शेषशय्या पर बैठे श्रीहरि बोले ;- आज मैंने देवी पार्वती की इस घोर तपस्या का रहस्य जान लिया है परंतु उनकी इच्छा को पूरा करना हमारे वश की बात नहीं है। अतः हम सब मिलकर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव के पास चलते हैं। केवल वे ही हैं जो हमें इस विकट स्थिति से उबार सकते हैं। देवी पार्वती तपस्या के माध्यम से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करना चाहती हैं। इसलिए भगवान शिव से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि वे देवी पार्वती से विधिवत विवाह कर लें। हम सभी को इस विश्व का कल्याण करने के लिए भगवान शिव से पार्वती का पाणिग्रहण करने का अनुरोध करना चाहिए।

भगवान विष्णु की बात सुनकर सभी देवता भयभीत होते हुए बोले ;- भगवन्! भगवान शिव बहुत क्रोधी और हठी हैं। उनके नेत्र काल की अग्नि के समान दीप्त हैं। हम भूलकर भी भगवान शंकर के पास नहीं जाएंगे। उनका क्रोध सहा नहीं जाएगा। उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया था। हमें डर है कि कहीं क्रोध में वे हमें भी भस्म न कर दें।

हे नारद! इंद्रादि देवताओं की बात सुनकर लक्ष्मीपति श्रीहरि बोले ;- तुम सब मेरी बातों को ध्यानपूर्वक सुनो! भगवान शिव समस्त देवताओं के स्वामी और भयों का नाश करने वाले हैं। तुम सबको मिलकर कल्याणकारी भगवान शिव की शरण में जाना चाहिए। भगवान शंकर पुराण पुरुष, सर्वेश्वर और परम तपस्वी हैं। हमें उनकी शरण में जाना ही चाहिए। भगवान विष्णु के इन वचनों को सुनकर सब देवता त्रिलोकीनाथ भगवान शिव का दर्शन करने के लिए उस स्थान की ओर चल पड़े, जहां महादेव जी तपस्या कर रहे थे।

उस मार्ग में ही देवी पार्वती उत्तम तपस्या में लीन थीं। उनके तप को देखकर सभी देवताओं ने प्रसन्नतापूर्वक उन्हें दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया। तत्पश्चात उनके तप की प्रशंसा करते हुए मैं, श्रीहरि विष्णु और अन्य देवता भगवान शिव के दर्शनार्थ चल दिए। वहां पहुंचकर हम सभी देवता कुछ दूरी पर खड़े हो गए और हमने तुम्हें भगवान शिव के करीब यह देखने के लिए भेजा कि वे कुपित हैं या प्रसन्न । नारद! तुम भगवान शिव के परमभक्त हो तथा उनकी कृपा से सदा निर्भय रहते हो। इसलिए तुम भगवान शिव के निकट गए तथा तुमने उन्हें प्रसन्न देखा । फिर तुम वापस लौटकर हम सभी के पास आए तथा उनकी प्रसन्नता के बारे में हमें बताया। तब हम सब भगवान शिव के करीब गए। भगवान शिव सुखपूर्वक प्रसन्न मुद्रा में बैठे हुए थे। भक्तवत्सल भगवान शिव चारों ओर से अपने गणों से घिरे हुए थे और तपस्वी का रूप धारण करके योगपट्ट पर आसीन थे। मैंने, श्रीहरि और अन्य देवताओं ने भगवान शिव शंकर को प्रणाम करके वेदों और उपनिषदों द्वारा ज्ञात विधि से उनकी स्तुति की।

भगवान शिव और देवी पार्वती के तपस्या की अद्भुत कथा

ब्रह्माजी ने नारद जी से कहा कि देवी पार्वती की कठोर तपस्या को वर्षों बीत गए, लेकिन भगवान शिव ने न तो दर्शन दिए, न ही कोई वरदान। इस पर उनके पिता हिमालय, माता मैना, और अन्य परिजन उन्हें समझाने और वापस घर लाने के लिए आए।

पार्वती का अडिग निश्चय

सभी परिजनों के आग्रह पर देवी पार्वती ने विनम्रतापूर्वक कहा, “हे पिताजी और माताजी! क्या आप मेरी प्रतिज्ञा भूल गए हैं? मैं भगवान शिव को अपनी तपस्या से अवश्य प्रसन्न करूंगी। यह वही स्थान है जहां महादेव ने कामदेव को भस्म किया था। उन्हीं त्रिलोकीनाथ शिव को मैं अपनी भक्ति से वश में करूंगी। आप निश्चिंत होकर घर लौट जाएं।”

परिजनों ने पार्वती के अडिग निश्चय की सराहना की और वापस लौट गए। इसके बाद देवी पार्वती ने दुगुने उत्साह और भक्ति के साथ तपस्या आरंभ कर दी।

तपस्या का प्रभाव और देवताओं की चिंता

पार्वती की तपस्या के प्रभाव से संपूर्ण त्रिलोक संतृप्त हो उठा। प्रकृति अशांत हो गई, और देवता इस स्थिति का कारण समझ नहीं पा रहे थे। सभी देवताओं ने इंद्र के नेतृत्व में गुरु बृहस्पति और फिर ब्रह्माजी की शरण ली। ब्रह्माजी ने ध्यान करके जाना कि यह संतृप्ति देवी पार्वती की तपस्या का परिणाम है। उन्होंने देवताओं को लेकर क्षीरसागर में भगवान विष्णु के पास जाने का सुझाव दिया।

विष्णुजी की सलाह

क्षीरसागर में विष्णुजी ने देवताओं की करुण पुकार सुनी और कहा, “देवी पार्वती घोर तपस्या कर रही हैं ताकि भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर सकें। उनकी इच्छा पूरी करना हमारे वश की बात नहीं है। हमें त्रिलोकीनाथ शिव के पास जाकर उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि वे पार्वती से विवाह करें।”

देवताओं का भय

विष्णुजी की बात सुनकर देवता भयभीत हो गए। उन्होंने कहा, “भगवान शिव अत्यंत क्रोधी हैं। उनके नेत्र कालाग्नि के समान हैं। उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया था। यदि वे क्रोधित हुए, तो हमें भी भस्म कर सकते हैं।”

विष्णुजी का मार्गदर्शन

विष्णुजी ने देवताओं को समझाते हुए कहा, “भगवान शिव भयों का नाश करने वाले और समस्त देवताओं के स्वामी हैं। वे परम तपस्वी और भक्तवत्सल हैं। हमें निडर होकर उनकी शरण में जाना चाहिए।” विष्णुजी के मार्गदर्शन पर देवता भगवान शिव के पास जाने को तैयार हुए।

शिवजी के पास देवताओं का आगमन

देवताओं के मार्ग में तपस्या में लीन देवी पार्वती को देखकर उन्होंने उनकी तपस्या की प्रशंसा की और प्रणाम किया। इसके बाद ब्रह्माजी, विष्णुजी, और अन्य देवता भगवान शिव के दर्शनार्थ आगे बढ़े।

भगवान शिव की प्रसन्नता

देवता कुछ दूरी पर ठहर गए और नारदजी को शिवजी की प्रसन्नता का पता लगाने भेजा। नारदजी ने देखा कि भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा में हैं। यह जानकर वे लौटे और देवताओं को यह शुभ समाचार दिया। तब सभी देवता शिवजी के पास पहुंचे।

शिवजी की स्तुति

भगवान शिव योग मुद्रा में अपने गणों से घिरे हुए सुखपूर्वक विराजमान थे। ब्रह्माजी, विष्णुजी और अन्य देवताओं ने वेदों और उपनिषदों के ज्ञात विधि से भगवान शिव की स्तुति की।

निष्कर्ष

देवताओं और त्रिलोक के कल्याण के लिए भगवान विष्णु, ब्रह्माजी, और सभी देवताओं ने शिवजी से देवी पार्वती से विवाह करने का अनुरोध किया। यह कथा शिव और शक्ति के पवित्र मिलन की ओर अग्रसर होती है, जो संसार की भलाई और संतुलन का प्रतीक है।