देवी जगदंबा के दिव्य स्वरूप का दर्शन – चौथा अध्याय

ब्रह्माजी बोले ;- हे नारद! देवताओं के द्वारा की गई स्तुति से प्रसन्न होकर दुखों का नाश करने वाली जगदंबा देवी दुर्गा उनके सामने प्रकट हो गईं। वे अपने दिव्य रत्नजड़ित रथ पर • बैठी हुई थीं। उनका मुख करोड़ों सूर्य के तेज के समान चमक रहा था। उनका गौर वर्ण दूध के समान उज्ज्वल था। उनका रूप अतुल्य था। रूप में उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती थी। वे सभी गुणों से युक्त थीं। दुष्टों का संहार करने के कारण वे ही चण्डी कहलाती हैं। वे अपने भक्तों के सभी दुखों और पीड़ाओं का निवारण करती हैं। देवी जगदंबा पूरे संसार की माता हैं। वे ही प्रलयकाल में समस्त दुष्टों को उनके बंधु-बांधवों सहित घोर निद्रा में सुला देती हैं। वही देवी उमा इस संसार का उद्धार करती हैं। उनके मुखमण्डल का तेज अद्भुत है। इस तेज के कारण उनकी ओर देख पाना भी संभव नहीं है। तब उनके अमृत दर्शनों की इच्छा लेकर श्रीहरि सहित सभी ने स्तुति की। तब उनके अमृतमय स्वरूप को देखा।

उनके अद्भुत स्वरूप के दर्शनों से सभी देवता आनंदित होकर बोले- हे महादेवी! हे जगदंबा! हम आपके दास हैं। आपकी शरण में हम बहुत आशा से आए हैं। कृपा करके हमारे आने के उद्देश्य को समझकर हमारे मनोरथ को पूर्ण कीजिए। हे देवी! पहले आप प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में प्रकट होकर रुद्रदेव की पत्नी बनीं और ब्रह्माजी व अन्य देवताओं के दुखों को दूर किया। अपने पिता के यज्ञ में अपने पति का अपमान देखकर स्वेच्छा से अपने शरीर का त्याग कर दिया। इससे रुद्रदेव बड़े दुखी हैं। वे अत्यंत शोकाकुल हो गए हैं। साथ ही आपके यहां चले आने से देवताओं की जो इच्छा थी वह भी अधूरी रह गई है। इसलिए हे जगदंबिके! आप पृथ्वीलोक पर पुनः अवतार लेकर रुद्रदेव को पति रूप में पाइए ताकि इस लोक का कल्याण हो सके और सनत्कुमार मुनि का कथन भी पूर्ण हो सके। हे भगवती! आप हम सब पर ऐसी ही कृपा करें ताकि हम सभी प्रसन्न हो जाएं तथा महादेव जी भी पुनः सुखी हो जाएं, क्योंकि आपसे वियोग होने के कारण वे अत्यंत दुखी हैं। कृपा करके हमारे सभी कष्टों और दुखों को दूर करें।

हे नारद! ऐसा कहकर सभी देवता पुनः भगवती की आराधना करने लगे । तत्पश्चात हाथ जोड़कर चुपचाप खड़े हो गए। तब उनकी अनन्य स्तुति से देवी उमा को बहुत प्रसन्नता हुई। तब देवी शिवजी का स्मरण करते हुए बोलीं- हे हरे! हे ब्रह्माजी ! तथा समस्त देवताओ और ऋषि-मुनियो! मैं तुम्हारी आराधना से बहुत प्रसन्न हूं। अब तुम सभी अपने-अपने निवास स्थानों पर जाओ और सुखपूर्वक वहां पर निवास करो। मैं निश्चय ही अवतार लेकर हिमालय मैना की पुत्री के रूप में प्रकट होऊंगी, क्योंकि मैं अच्छे से जानती हूं कि जब से मैंने दक्ष के यज्ञ की अग्नि में अपना शरीर त्यागा है तब से मेरे पति त्रिलोकीनाथ महादेव जी भी निरंतर कालाग्नि में जल रहे हैं। उन्हें हर समय मेरी ही चिंता रहती है। वे हर समय यह सोचते हैं कि उनके क्रोध के कारण ही मैं उनका अपमान देखकर वापिस नहीं आई और मैंने वहीं अपना शरीर त्याग दिया। यही कारण है कि उन्होंने अलौकिक वेश धारण कर लिया है और सदैव योग में ही लीन रहते हैं। अपनी प्राणप्रिया का वियोग वे सहन नहीं कर सके हैं। इसलिए उनकी भी यही इच्छा है कि मैं पुनः पृथ्वी पर अवतीर्ण हो जाऊं ताकि हमारा मिलन पुनः संभव हो सके। महादेव जी की इच्छा मेरे लिए सदैव सर्वोपरि है। अतः मैं अवश्य ही हिमालय-मैना की पुत्री के रूप में अवतार लूंगी।

इस प्रकार देवताओं को बहुत आश्वासन देकर देवी जगदंबा वहां से अंतर्धान हो गईं। तत्पश्चात श्रीहरि व अन्य देवताओं का मन प्रसन्नता और हर्ष से खिल उठा। वे उस स्थान को, जहां देवी ने दर्शन दिए थे, अनेकों बार नमस्कार कर अपने-अपने धाम को चले गए।

देवी जगदंबा का प्रकट होना और पुनः पृथ्वी पर अवतार लेना

ब्रह्माजी ने नारद जी से कहा कि देवी जगदंबा के दर्शन से देवता अत्यधिक प्रसन्न हुए और उनके सामने देवी दुर्गा प्रकट हुईं। वे दिव्य रत्नजड़ित रथ पर सवार थीं, उनका रूप अद्भुत था, और उनका तेज करोड़ों सूर्य के समान चमक रहा था। देवी जगदंबा का गौर वर्ण दूध के समान उज्ज्वल था और उनका रूप सभी गुणों से युक्त था। उन्हें चण्डी के रूप में जाना जाता है, जो दुष्टों का संहार करने वाली और अपने भक्तों के दुखों का निवारण करने वाली हैं।

देवताओं की प्रार्थना: देवताओं ने देवी जगदंबा के अद्भुत रूप को देखकर उनके दर्शन की कामना की और उनके समक्ष अपनी प्रार्थना रखी। उन्होंने कहा, “हे महादेवी! आप पहले प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुईं और रुद्रदेव के साथ विवाह करके देवताओं के दुखों को समाप्त किया। लेकिन आपके त्याग के बाद रुद्रदेव शोकाकुल हो गए हैं और देवताओं की इच्छाएं अधूरी रह गई हैं। आप पुनः पृथ्वी पर अवतार लेकर महादेव के साथ पुनः मिलन करें ताकि उनका दुख समाप्त हो और इस लोक का कल्याण हो।”

देवी का प्रतिज्ञा: देवी जगदंबा ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर उन्हें आश्वासन दिया कि वह हिमालय और मैना की पुत्री के रूप में पुनः पृथ्वी पर अवतार लेंगी। उन्होंने कहा, “महादेव का दुख मेरे लिए सर्वोपरि है। जब से मैंने दक्ष के यज्ञ में अपना शरीर त्यागा, तब से महादेव निरंतर दुखी हैं। उनका वियोग वे सहन नहीं कर पा रहे हैं। मैं उनकी इच्छा के अनुसार पुनः पृथ्वी पर अवतार लूंगी ताकि हमारा मिलन संभव हो सके।”

देवी का अंतर्धान और देवताओं का हर्ष: देवी जगदंबा ने देवताओं को आश्वस्त करके वहां से अंतर्धान हो गईं। देवता उनकी उपस्थिति और आशीर्वाद से अत्यंत प्रसन्न हुए और उस स्थान को बार-बार प्रणाम करके अपने-अपने धाम को लौट गए।

निष्कर्ष: यह कथा देवी जगदंबा के महान तेज, शक्ति और उनके दिव्य कार्यों को दर्शाती है। उनके वचन और उनके पुनः अवतार की प्रतिज्ञा से यह स्पष्ट होता है कि देवी जगदंबा और महादेव का मिलन परम उद्देश्य है, जो संसार के कल्याण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।