्रह्माजी कहते हैं ;— नारद! जब भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर उसकी अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया तब मैंने उस क्रोधाग्नि से भयभीत देवताओं सहित सभी प्राणियों को भय से मुक्त कराने के लिए उस अग्नि को शिव की आज्ञा से पकड़ लिया और उसे लेकर मैं समुद्र तट की ओर चल पड़ा। समुद्र को उस क्रोधाग्नि को सौंपकर मैं वापस अपने धाम लौट गया। तब पूरा जगत भयमुक्त होकर पहले की भांति प्रसन्न हो गया। नारद जी ने ब्रह्माजी से पूछा- हे दयानिधे! आप मुझे यह बताइए कि कामदेव के भस्म हो जाने पर पार्वती देवी ने क्या किया? वे अपनी सखियों के साथ कहां गईं? हे प्रभु! कृपया मुझे इस बारे में भी बताइए।
नारद जी के यह वचन सुनकर ब्रह्माजी बोले ;- भगवान शंकर के तीसरे नेत्र से उत्पन्न अग्नि ने जब कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया तब पूरा आकाश गूंजने लगा। यह दृश्य देखकर देवी पार्वती और उनकी सखियां डरकर अपने घर को चली गईं। वहां पहुंचकर पार्वती जी ने सारा हाल अपने माता-पिता को बताया, जिसे सुनकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। अपनी पुत्री को विह्वल देखकर हिमालय को बहुत दुख हुआ। हिमालय ने पार्वती के आंसुओं को पोछकर कहा- पार्वती! डरो मत और रोओ मत। तब हिमालय ने अपनी पुत्री को अनेकों प्रकार से सांत्वना दी।
कामदेव को भस्म करने के उपरांत शिवजी वहां से अंतर्धान हो गए। तब शिवजी को वहां न पाकर पार्वती अत्यंत व्याकुल हो गईं। उनकी नींद और चैन जाते रहे। वे दुखी और बेचैन रहने लगीं। उन्हें कहीं भी सुख-शांति का अनुभव नहीं होता था। तब उन्हें अपने रूप के प्रति भी शंका होती थी। पार्वती सोचतीं कि क्यों मैंने अपनी सखियों द्वारा समझाने पर भी कभी ध्यान नहीं दिया। देवी पार्वती सोते-जागते, खाते-पीते, नहाते-धोते, चलते-फिरते और अपनी सखियों के साथ होते हुए भी सिर्फ महादेव जी का ही ध्यान और चिंतन करती थीं। इस प्रकार उनका मन शिवजी के बिछोह की वेदना सहन नहीं कर पा रहा था। वे शारीरिक रूप से अपने पिता के घर और हृदय से भगवान शंकर के पास रहती थीं। शोक में डूबी पार्वती बार-बार मूर्च्छित हो जातीं थीं। इससे गिरिराज हिमालय और उनकी पत्नी मैना बहुत दुखी रहती थीं। वे पार्वती को समझाने की बहुत कोशिश करते थे परंतु पार्वती का ध्यान शिवजी की ओर से जरा भी नहीं हटता था
हे देवर्षि नारद! एक दिन देवराज इंद्र की इच्छा से आप घूमते हुए हिमालय पर्वत पर आए। तब शैलराज हिमालय ने आपका बहुत आदर-सत्कार किया और आपका कुशल मंगल पूछा। आपको उत्तम आसन पर बिठाकर हिमालय ने सारा वृत्तांत सुनाया। हिमालय ने बताया कि किस प्रकार पार्वती जी ने महादेवजी की सेवा आरंभ की। इसके बाद अपनी पुत्री के शिव पूजन से लेकर कामदेव के भस्म होने तक की सारी कथा आपको सुनाई। यह सब सुनकर आपने गिरिराज हिमालय से कहा कि आप भगवान शिव का भजन करें। तत्पश्चात हिमालय से विदा लेकर आप एकांत में गुम सुम बैठी देवी पार्वती के पास आ गए। तब उनका हित करने की इच्छा से आपने उन्हें इस प्रकार सत्य वचन कहे।
आपने कहा ;- हे पार्वती! तुम मेरी बातें ध्यानपूर्वक सुनो। तुम्हारी यह दशा देखकर ही में तुमसे यह बात कह रहा हूं। तुमने हिमालय पर्वत पर पधारे महादेवजी की सेवा की, परंतु तुम्हारे मन में कहीं न कहीं अहंकार का वास हो गया था। शिव भक्तवत्सल हैं। वे अपने भक्तों पर सदैव अपनी कृपादृष्टि बनाए रखते हैं। वे विरक्त और महायोगी हैं। तुम्हारे अंदर उत्पन्न हुए अभिमान को तोड़ने के लिए ही सदाशिव ने ऐसा किया है। अतः तुम उन्हें तपस्या द्वारा प्रसन्न करने का प्रयत्न करो। तुम चिरकाल तक उत्तम भक्ति भाव से उनकी तपस्या करो। तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेवजी निश्चय ही तुम्हें अपनी सहधर्मिणी बनाना स्वीकार करेंगे यही शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने का एकमात्र साधन है।
हे नारद! आपकी यह बात सुनकर देवी शिवा हर्षित होते हुए इस प्रकार बोली- हे मुनिश्रेष्ठ! आप सबकुछ जानने वाले तथा इस जगत का उपकार करने वाले हैं। अतः आप शिवजी की आराधना के लिए मुझे कोई मंत्र प्रदान करें। तब आपने पार्वती को पंचाक्षर शिव मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का विधिपूर्वक उपदेश दिया। इसके प्रभाव का वर्णन करते हुए आपने कहा – यह मंत्र सब मंत्रों का राजा है और सभी कामनाओं को पूरा करने वाला है। यह मंत्र भगवान शिव को बहुत प्रिय है। यह साधक को भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला है। इस पंचाक्षर मंत्र का विधिपूर्वक व नियमपूर्वक जाप करने से शिवजी के साक्षात दर्शन होते हैं। देवी! इस मंत्र का विधिपूर्वक जाप करने से तुम्हारे आराध्य देव करुणानिधान भगवान शिव शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रकट हो जाएंगे। अतः तुम शुद्ध हृदय से शिवजी के चरणों का चिंतन करती हुई इस महामंत्र का जाप करो। इससे तुम्हारे आराध्य देव संतुष्ट होकर तुम्हें दर्शन देंगे। अब देवी पार्वती तुम इस मंत्र को जपते हुए शिवजी की तपस्या करो। इससे महादेव जी वश में हो जाते हैं। उत्तम भाव से की गई तपस्या से ही मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
ब्रह्माजी बोले ;- नारद! तुम भगवान शिव के प्रिय भक्त हो। तुम अपनी इच्छानुसार जगत में भ्रमण करते हो। तुमने देवी पार्वती को सभी कुछ समझाकर देवताओं के हित का कार्य किया। तत्पश्चात तुम स्वर्गलोक को चले गए। तुम्हारी बात सुनकर देवी पार्वती बहुत प्रसन्न हुई।
पार्वती जी का शोक और नारद जी की सलाह
जब भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया, देवी पार्वती और उनकी सखियां अत्यधिक भयभीत हो गईं और वे घर लौट गईं। पार्वती ने अपने माता-पिता से वह पूरा घटना सुनाई, जिससे हिमालय और उनकी पत्नी मैना दोनों अत्यधिक दुखी हो गए। हिमालय ने पार्वती को सांत्वना दी और कहा, “पार्वती, तुम चिंता मत करो।” लेकिन पार्वती का मन शिवजी से बिछड़ने की वेदना से घिरा हुआ था, और वह मानसिक रूप से बहुत परेशान हो गईं।
हिमालय से बातचीत के बाद नारद जी का आगमन
कुछ समय बाद नारद जी भगवान इंद्र की इच्छा से हिमालय पर्वत पर आए। हिमालय ने उनका आदर किया और पार्वती की स्थिति के बारे में उन्हें बताया। नारद जी ने हिमालय से कहा कि भगवान शिव का ध्यान करना सर्वोत्तम उपाय है। बाद में नारद जी पार्वती के पास गए और उनकी स्थिति देखकर उन्हें उपदेश दिया:
नारद जी का उपदेश
नारद जी ने पार्वती से कहा, “हे पार्वती! तुम्हारी अवस्था देखकर मैं तुमसे यह बात कह रहा हूं। तुमने महादेव की सेवा की, परंतु कहीं न कहीं तुम्हारे मन में अहंकार भी था। भगवान शिव अपने भक्तों पर सदैव कृपा करते हैं, और तुम्हारे अभिमान को तोड़ने के लिए ही शिवजी ने यह किया। तुम तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करो। यह ही तुम्हें शिवजी के पास पहुंचने का एकमात्र मार्ग है।”
पंचाक्षर मंत्र का उपदेश
पार्वती ने नारद जी से शिवजी की आराधना का तरीका पूछा, तब नारद जी ने उन्हें ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का उपदेश दिया। उन्होंने कहा, “यह मंत्र सभी मंत्रों का राजा है और भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इसका जाप करने से शिवजी शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्ति भाव से तुम उन्हें प्राप्त कर सकती हो।”
पार्वती की तपस्या और शिवजी की कृपा
नारद जी के उपदेश से पार्वती बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने विधिपूर्वक इस मंत्र का जाप करना शुरू किया। नारद जी ने पार्वती को बताया कि इस मंत्र के जाप से शिवजी शीघ्र प्रसन्न होते हैं और तपस्या के द्वारा ही वे अपने भक्तों को वरदान देते हैं।
निष्कर्ष
इस प्रकार नारद जी के मार्गदर्शन और पंचाक्षर मंत्र के माध्यम से पार्वती ने भगवान शिव की आराधना की। पार्वती की भक्ति से भगवान शिव जल्द ही उन्हें दर्शन देंगे, और वे महादेव की सहधर्मिणी बनने का अपना उद्देश्य पूरा करेंगी।