श्री शौनक जी ने पूछा – महाज्ञानी सूत जी, आप संपूर्ण सिद्धांतों के ज्ञाता हैं। कृपया मुझसे पुराणों के सार का वर्णन करें। ज्ञान और वैराग्य सहित भक्ति से प्राप्त विवेक की वृद्धि कैसे होती है? तथा साधु पुरुष कैसे अपने काम, क्रोध आदि विकारों का निवारण करते हैं? इस कलियुग में सभी जीव असुरी स्वभाव के हो गए हैं। अतः कृपा करके मुझे ऐसा साधन बताइए, जो कल्याणकारी एवं मंगलकारी हो तथा पवित्रता लिए हो।
प्रभु, वह ऐसा साधन हो, जिससे मनुष्य की शुद्धि हो जाए और उस निर्मल हृदय वाले पुरुष को सदैव के लिए ‘शिव’ की प्राप्ति हो जाए।
श्री सूत जी ने उत्तर दिया – शौनक जी आप धन्य हैं, क्योंकि आपके मन में पुराण-कथा को सुनने के लिए अपार प्रेम व लालसा है। इसलिए मैं तुम्हें परम उत्तम शास्त्र की कथा सुनाता हूं । वत्स ! संपूर्ण सिद्धांत से संपन्न भक्ति को बढ़ाने वाला तथा शिवजी को संतुष्ट करने वाला अमृत के समान दिव्य शास्त्र है— ‘शिव पुराण’। इसका पूर्व काल में शिवजी ने ही प्रवचन किया था। गुरुदेव व्यास ने सनत्कुमार मुनि का उपदेश पाकर आदरपूर्वक इस पुराण की रचना की है। यह पुराण कलियुग में मनुष्यों के हित का परम साधन है।
‘शिव पुराण’ परम उत्तम शास्त्र है। इस पृथ्वी लोक में सभी मनुष्यों को भगवान शिव के विशाल स्वरूप को समझना चाहिए। इसे पढ़ना एवं सुनना सर्व साधन है। यह मनोवांछित फलों को देने वाला है। इससे मनुष्य निष्पाप हो जाता है तथा इस लोक में सभी सुखों का उपभोग करके अंत में शिव लोक को प्राप्त करता है।
‘शिव पुराण’ में चौबीस हजार श्लोक हैं, जिसमें सात संहिताएं हैं। शिव पुराण परब्रह्म परमात्मा के समान गति प्रदान करने वाला है। मनुष्य को पूरी भक्ति एवं संयमपूर्वक इसे सुनना चाहिए। जो मनुष्य प्रेमपूर्वक नित्य इसको बांचता है या इसका पाठ करता है, वह निःसंदेह पुण्यात्मा है।
भगवान शिव उस विद्वान पुरुष पर प्रसन्न होकर उसे अपना धाम प्रदान करते हैं। प्रतिदिन आदरपूर्वक शिव पुराण का पूजन करने वाले मनुष्य संसार में संपूर्ण भोगों को भोगकर भगवान शिव के पद को प्राप्त करते हैं। वे सदा सुखी रहते हैं।
शिव पुराण में भगवान शिव का सर्वस्व है। इस लोक और परलोक में सुख की प्राप्ति के लिए आदरपूर्वक इसका सेवन करना चाहिए। यह निर्मल शिव पुराण धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। अतः सदा प्रेम पूर्वक इसे सुनना एवं पढ़ना चाहिए।

शिव पुराण का महत्व और सिद्धांत:
- शिव पुराण का सार:
- शिव पुराण परम उत्तम शास्त्र है, जिसे शिवजी ने पहले प्रवचन किया था और गुरुदेव व्यास ने इसे सनत्कुमार मुनि से प्राप्त उपदेश पर रचा। यह पुराण विशेष रूप से कलियुग में मनुष्यों के कल्याण का साधन है, क्योंकि इसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—ये चारों पुरुषार्थ मिलते हैं।
- इस पुराण में कुल चौबीस हजार श्लोक होते हैं, और इसे सात संहिताओं में विभाजित किया गया है। यह शास्त्र परब्रह्म परमात्मा के समान गति देने वाला है, यानी इसका श्रवण और पाठ करने से व्यक्ति की आत्मा की शुद्धि होती है और वह भगवान शिव के पद को प्राप्त करता है।
- ज्ञान, वैराग्य और भक्ति से विवेक की वृद्धि:
- ज्ञान व्यक्ति को आत्मा की पहचान कराता है, और यह उसे संसार की असारता का बोध कराता है। यह बोध ही वैराग्य का कारण बनता है, जिससे व्यक्ति संसार के भौतिक सुखों से दूर होकर आत्मिक सुखों की ओर अग्रसर होता है।
- भक्ति से विवेक की वृद्धि होती है, क्योंकि भक्ति के माध्यम से व्यक्ति भगवान से जुड़ता है और वह अपनी आत्मा की सच्चाई को समझता है। शिव पुराण का अध्ययन और श्रवण व्यक्ति की भक्ति को सशक्त करता है और उसे शिव के दिव्य स्वरूप के प्रति प्रेम और श्रद्धा में वृद्धि होती है।
- साधु पुरुषों का विकारों का निवारण:
- साधु पुरुष काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे विकारों से मुक्त रहते हैं। वे इन विकारों का निवारण ध्यान, साधना और स्वयं के अस्तित्व के प्रति जागरूकता के माध्यम से करते हैं।
- साधु व्यक्ति प्रतिदिन भगवान शिव का ध्यान करते हैं और जीवन में संयम और शुद्धता बनाए रखते हैं। वे मौन, साधना और सेवा के माध्यम से अपने मन को नियंत्रित करते हैं और विकारों से बचते हैं।
- शिव पुराण का नियमित पाठ, शिव की पूजा और उनकी कथा सुनने से मनुष्य के अज्ञान और विकार दूर होते हैं, और वह अपने जीवन में शांति और संतुलन प्राप्त करता है। इसके अलावा, आध्यात्मिक साधना और ईश्वर के प्रति निष्ठा भी विकारों के निवारण में सहायक होती है।
- कलियुग में शुद्धि का साधन:
- इस कलियुग में लोग असुरी स्वभाव के हो गए हैं, इसलिए उन्हें शिव पुराण जैसा पवित्र शास्त्र सुनने और समझने की आवश्यकता है। यह शास्त्र एक ऐसा साधन है, जो पवित्रता, शुद्धता और आत्मज्ञान प्रदान करता है।
- शिव पुराण का अध्ययन और श्रवण करके, मनुष्य अपने जीवन में धर्म की स्थापना करता है, संसारिक बंधनों से मुक्त होता है, और अंततः शिव लोक की प्राप्ति करता है।
- शिव के प्रति प्रेम और भक्ति का महत्व:
- जो व्यक्ति प्रेमपूर्वक और नित्य शिव पुराण का पाठ करता है, वह निश्चित रूप से पुण्यात्मा होता है और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करता है।
- भगवान शिव की भक्ति और शिव पुराण का श्रवण ही मनुष्य को सभी सुखों का अनुभव कराता है और उसे अंतिम मुक्ति, यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष:
शिव पुराण का श्रवण और अध्ययन मनुष्य के जीवन को पवित्र करता है और उसे शुद्ध करता है। यह शास्त्र न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह व्यक्ति को मानसिक, आत्मिक और शारीरिक शुद्धता प्रदान करता है। भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से भरे इस शास्त्र को नियमित रूप से सुनना और समझना, मनुष्य की शुद्धि और शिव लोक की प्राप्ति का सबसे उत्तम साधन है।