सृष्टि का वर्णन – पंद्रहवां अध्याय

नारद जी ने पूछा— हे पितामह! आपने बहुत सी ज्ञान बढ़ाने वाली उत्तम बातों को सुनाया। कृपया इसके अलावा और भी जो आप सृष्टि एवं उससे संबंधित लोगों के बारे में जानते हैं, हमें बताने की कृपा करें।
ब्रह्माजी बोले- मुने! हमें आदेश देकर जब महादेव जी अंतर्धान हो गए तो मैं उनकी आज्ञा का पालन करते हुए ध्यानमग्न होकर अपने कर्तव्यों के विषय में सोचने लगा। उस समय भगवान श्रीहरि विष्णु से ज्ञान प्राप्त कर मैंने सृष्टि की रचना करने का निश्चय किया । भगवान विष्णु मुझे आवश्यक उपदेश देकर वहां से चले गए। भगवान शिव की कृपा से ब्रह्माण्ड से बाहर बैकुण्ठ धाम में जा पहुंचे और वहीं निवास करने लगे। सृष्टि की रचना करने के उद्देश्य से मैंने भगवान शिव और विष्णु का स्मरण करके, जल को हाथ में लेकर ऊपर की ओर उछाला। इससे वहां एक अण्ड प्रकट हुआ, जो चौबीस तत्वों का समूह कहा जाता है। वह विराट आकार वाला अण्ड जड़ रूप में था । उसे चेतनता प्रदान करने हेतु मैं कठोर तप करने लगा और बारह वर्षों तक तप करता रहा। तब श्रीहरि विष्णु स्वयं प्रकट हुए और प्रसन्नतापूर्वक बोले।
श्रीविष्णु ने कहा – ब्रह्मन् ! मैं तुम पर प्रसन्न हूं। जो इच्छा हो वह वर मांग लो। भगवान शिव की कृपा से मैं सबकुछ देने में समर्थ हूं।
ब्रह्मा बोले – महाभाग ! आपने मुझ पर बड़ी कृपा की है। भगवान शंकर ने मुझे आपके हाथों में सौंप दिया है। आपको मैं नमस्कार करता हूं। कृपा कर इस विराट चौबीस तत्वों से बने अण्ड को चेतना प्रदान कीजिए। मेरे ऐसा कहने पर श्रीविष्णु ने अनंतरूप धारण कर अण्ड में प्रवेश किया। उस समय उनके सहस्रों मस्तक, सहस्र आंखें और सहस्र पैर थे। उनके अण्ड में प्रवेश करते ही वह चेतन हो गया । पाताल से सत्य लोक तक अण्ड के रूप में वहां विष्णु भगवान विराजने लगे । अण्ड में विराजमान होने के कारण विष्णुजी ‘वैराज पुरुष’ कहलाए। पंचमुख महादेव ने अपने निवास हेतु कैलाश नगर का निर्माण किया। देवर्षि ! संपूर्ण ब्रह्माण्ड का नाश होने पर भी बैकुण्ठ और कैलाश अमर रहेंगे अर्थात इनका नाश नहीं हो सकता । महादेव की आज्ञा से ही मुझमें सृष्टि की रचना करने की इच्छा उत्पन्न हुई है।
अनजाने में ही मुझसे तमोगुणी सृष्टि की उत्पत्ति हुई, जिसे अविद्या पंचक कहते हैं। उसके पश्चात भगवान शिव की आज्ञा से स्थावरसंज्ञक वृक्ष, जिसे पहला सर्ग कहते हैं, का निर्माण हुआ परंतु पुरुषार्थ का साधक नहीं था । अतः दूसरा सर्ग ‘तिर्यक्स्रोता’ प्रकट हुआ। यह दुखों से भरा हुआ था। तब ब्रह्माजी द्वारा ‘ऊर्ध्वस्रोता’ नामक तीसरे सर्ग की रचना की गई। यह सात्विक सर्ग देव सर्ग के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह सर्ग सत्यवादी तथा परम सुखदायक है। इसकी रचना के उपरांत मैंने पुनः शिव चिंतन आरंभ कर दिया। तब एक रजोगुणी सृष्टि का
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आरंभ हुआ जो ‘अर्वाकस्रोता’ नाम से विख्यात हुआ। इसके बाद मैंने पांच विकृत सृष्टि और तीन प्राकृत सर्गों को जन्म दिया। पहला ‘महत्तत्व’, दूसरा ‘भूतो’ और तीसरा ‘वैकारिक’ सर्ग है। इसके अलावा पांच विकृत सर्ग हैं। दोनों को मिलाकर कुल आठ सर्ग होते हैं। नवां ‘कौमार’ सर्ग है जिससे सनत सनंदन कुमारों की रचना हुई है। सनत आदि मेरे चार मानस पुत्र हैं, जो ब्रह्मा के समान हैं। वे महान व्रत का पालन करने वाले हैं। वे संसार से विमुख एवं ज्ञानी हैं। उनका मन शिव चिंतन में लगा रहता है। मुनि नारद! मेरी आज्ञा पाकर भी उन्होंने सृष्टि के कार्य में मन नहीं लगाया। इससे मुझमें क्रोध प्रवेश कर गया। तब भगवान विष्णु ने मुझे समझाया और भगवान शिव की तपस्या करने के लिए कहा। मेरी घोर तपस्या से मेरी भौंहों और नाक के मध्य भाग से महेश्वर की तीन मूर्तियां प्रकट हुईं, जो पूर्णांश, सर्वेश्वर एवं दया सागर थीं और भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप प्रकट हुआ।
जन्म-मरण से रहित, परम तेजस्वी, सर्वज्ञ, नीलकंठ, साक्षात उमावल्लभ भगवान महादेव के साक्षात दर्शन कर मैं धन्य हो गया। मैंने भक्तिभाव से उन्हें प्रणाम किया और उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनकी स्तुति करने लगा। तब मैंने उनसे जीवों की रचना करने की प्रार्थना की। मेरी प्रार्थना स्वीकारते हुए देवाधिदेव भगवान शिव ने रुद्र गणों की रचना की। तब मैंने उनसे पुनः कहा- देवेश्वर शिव शंकर ! अब आप संसार की मोह-माया में लिप्त ऐसे जीवों की रचना करें, जो मृत्यु और जन्म के बंधन में बंधे हों। यह सुनकर महादेव जी हंसते हुए कहने लगे।
शिवजी ने कहा – हे ब्रह्मा ! मैं जन्म और मृत्यु के भय में लिप्त जीवों की रचना नहीं करूंगा क्योंकि वे जीव संसार रूपी बंधन में बंधे होने के कारण दुखों से युक्त होंगे। मैं सिर्फ उनका उद्धार करूंगा। उन्हें परम ज्ञान प्रदान कर उनके ज्ञान का विकास करूंगा । हे प्रजापते! इन जीवों की रचना आप करें। मोह-माया के बंधनों में बंधे इस प्रकार के जीवों की सृष्टि करने पर भी आप इस माया में नहीं बंधेंगे। मुझसे इस प्रकार कहकर महादेव शिव शंकर अपने पार्षदों के साथ वहां से अंतर्धान हो गए।