कामदेव का शिव को मोहने के लिए प्रस्थान – सत्रहवां अध्याय

्रह्माजी बोले ;- नारद! स्वर्ग में सब देवता मिलकर सलाह करने लगे कि किस प्रकार से भगवान रुद्र काम से सम्मोहित हो सकते हैं? शिवजी किस प्रकार पार्वती जी का पाणिग्रहण करेंगे? यह सब सोचकर देवराज इंद्र ने कामदेव को याद किया। कामदेव तुरंत ही वहां पहुंच गए। तब इंद्र ने कामदेव से कहा- हे मित्र ! मुझ पर बहुत बड़ा दुख आ गया है। उस दुख का निवारण सिर्फ तुम्हीं कर सकते हो। हे काम। जिस प्रकार वीर की परीक्षा रणभूमि में, स्त्रियों के कुल की परीक्षा पति के असमर्थ हो जाने पर होती है, उसी प्रकार सच्चे मित्र की परीक्षा विपत्ति काल में ही होती है। इस समय मैं भी बहुत बड़ी मुसीबत में फंसा हुआ हूं और इस विपत्ति से आप ही मुझे बचा सकते हैं। यह कार्य देव हित के लिए है। इसमें कोई संशय नहीं है।

देवराज इंद्र की बातें सुनकर कामदेव मुस्कुराए और बोले ;- हे देवराज! इस संसार में कौन मित्र है और कौन शत्रु, यह तो वाकई देखने की वस्तु है । इसे कहकर कोई लाभ नहीं है। देवराज, मैं आपका मित्र हूं और आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश अवश्य ही करूंगा। इंद्रदेव, जिसने आपके पद और राज्य को छीनकर आपको परेशान किया है मैं उसे दण्ड देने के लिए आपकी हर संभव मदद अवश्य करूंगा। अतः जो कार्य मेरे योग्य है, मुझे अवश्य बताइए।

कामदेव के इस कथन को सुनकर इंद्रदेव बड़े प्रसन्न हुए और उनसे बोले ;- हे तात! मैं जो कार्य करना चाहता हूं उसे सिर्फ आप ही पूरा कर सकते हैं। आपके अतिरिक्त कोई भी उस कार्य को करने के विषय में सोच भी नहीं सकता। तारक नाम का एक प्रसिद्ध दैत्य है। तारक ने ब्रह्माजी की घोर तपस्या करके वरदान प्राप्त किया है। तारक अजेय हो गया है। अब वह पूर्णतः निश्चिंत होकर पूरे संसार को कष्ट दे रहा है। वह धर्म का नाश करने को आतुर है। उसने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों को दुखी कर रखा है। हम देवताओं ने उससे युद्ध किया परंतु उस पर अस्त्र-शस्त्रों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यही नहीं, स्वयं श्रीहरि का सुदर्शन चक्र भी तारक का कुछ नहीं बिगाड़ सका। मित्र, भगवान शिव के वीर्य से उत्पन्न हुआ बालक ही तारकासुर का वध कर सकता है। अतः तुम्हें भगवान शिव के हृदय में आसक्ति पैदा करनी है।

भगवान शंकर इस समय हिमालय पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं और देवी पार्वती अपनी सखियों के साथ मिलकर महादेव जी की सेवा कर रही हैं। ऐसा करने के पीछे देवी पार्वती का उद्देश्य प्रभु शिव को पति रूप में प्राप्त करना है परंतु भगवान शिव तो परम योगी हैं। उनका मन सदैव ही उनके वश में है। हे कामदेव! आप कुछ ऐसा उपाय करें कि भगवान शंकर के हृदय में पार्वती का निवास हो जाए और वे उन्हें अपनी प्राणवल्लभा बना उनका पाणिग्रहण कर लें। आप कुछ ऐसा कार्य करें जिससे देवताओं के सभी कष्ट दूर हो जाएं और हम सभी को तारकासुर नामक दैत्य से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए। यदि कामदेव आप ऐसा करने में सफल हो जाएंगे तो हम सभी आपके सदैव आभारी रहेंगे।

ब्रह्माजी बोले ;- नारद! देवराज इंद्र के कथन को सुनकर कामदेव का मुख प्रसन्नता से खिल गया। तब कामदेव देवराज से कहने लगे कि मैं इस कार्य को अवश्य करूंगा। इंद्रदेव को कार्य करने का आश्वासन देकर कामदेव अपनी पत्नी रति और वसंत को अपने साथ लेकर हिमालय पर्वत पर चल दिए, जहां शिवजी तपस्या कर रहे थे।

कामदेव का शिवजी के पास जाने का संकल्प

ब्रह्माजी ने कहा, “नारद! स्वर्ग में सभी देवता मिलकर एकजुट हुए और विचार करने लगे कि किस प्रकार भगवान शिव को पार्वती के प्रति आकर्षित किया जाए ताकि वे उनका पाणिग्रहण करें। इस पर देवराज इंद्र ने कामदेव को याद किया। कामदेव तुरंत वहां पहुंचे।”

इंद्र का कामदेव से निवेदन

“इंद्र ने कामदेव से कहा, ‘हे मित्र! मुझे बहुत बड़ा दुख आ गया है और इस दुख का समाधान केवल आप ही कर सकते हैं। जिस प्रकार वीर की परीक्षा रणभूमि में होती है, उसी प्रकार सच्चे मित्र की परीक्षा विपत्ति में होती है। मैं इस समय बहुत बड़ी मुसीबत में हूं और केवल आप ही मुझे इस से उबार सकते हैं। यह कार्य देवताओं के हित में है।’

कामदेव ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘हे देवराज! इस संसार में कौन मित्र है और कौन शत्रु, यह समय ही बताता है। मैं आपका मित्र हूं और आपकी सहायता करने के लिए पूरी तरह तैयार हूं। मैं उस दैत्य को दंड देने के लिए पूरी मदद करूंगा, जिसने आपके राज्य को छीना और आपको परेशान किया है। मुझे बताइए, वह कार्य क्या है, जिसे मैं पूरा कर सकता हूं।'”

इंद्र का कामदेव से तारकासुर की समस्या पर चर्चा

“कामदेव की बातों से इंद्र ने राहत महसूस की और कहा, ‘हे तात! एक अत्यंत शक्तिशाली दैत्य है, जिसका नाम तारक है। उसने ब्रह्माजी की घोर तपस्या करके वरदान प्राप्त किया है और अब वह अजेय हो चुका है। वह पूरी दुनिया को कष्ट दे रहा है और धर्म का नाश करने की चेष्टा कर रहा है। हमने उससे युद्ध किया, लेकिन अस्त्र-शस्त्रों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यहां तक कि भगवान श्रीविष्णु का सुदर्शन चक्र भी उसे पराजित नहीं कर सका।’

‘मित्र, भगवान शिव के वीर्य से उत्पन्न बालक ही तारकासुर का वध कर सकता है। इसलिए, मुझे चाहिए कि आप भगवान शिव के हृदय में देवी पार्वती के प्रति आसक्ति उत्पन्न करें, ताकि वे उन्हें अपनी प्राणवल्लभा बना लें और उनका विवाह कर लें। देवताओं का यही मार्गदर्शन है।’

कामदेव का उत्तर

“ब्रह्माजी ने कहा, ‘देवराज इंद्र की बातों को सुनकर कामदेव का चेहरा खुशी से खिल उठा। उन्होंने कहा, ‘आपका विश्वास मुझ पर है, और मैं इस कार्य को अवश्य करूंगा।’ इसके बाद कामदेव ने अपनी पत्नी रति और वसंत को साथ लिया और हिमालय पर्वत की ओर चल पड़े, जहां भगवान शिव तपस्या में लीन थे।'”

निष्कर्ष

कामदेव ने इंद्र की सहायता का आश्वासन दिया और भगवान शिव के हृदय में पार्वती के प्रति प्रेम उत्पन्न करने के लिए हिमालय पर्वत की ओर प्रस्थान किया। यह घटना देवताओं की चिंता और पार्वती-शिव विवाह के मार्ग के प्रति आशावाद को दर्शाती है।