ब्रह्माजी बोले ;- हे मुनिश्रेष्ठ नारद! मैना के सामने जब देवी जगदंबिका ने शिशु रूप धारण किया तो वे सामान्य बच्चे की भांति रोने लगीं। उनका रोना सुनकर सभी स्त्रियां और पुरुष, जो उस समय वहां उपस्थित थे, प्रसन्न हो गए। उस श्यामकांति वाली नीलकमल के समान शोभित उस परम तेजस्वी सुंदर कन्या को देखकर गिरिराज हिमालय बहुत प्रसन्न हुए। तब शुभ मुहूर्त में हिमालय ने अपनी पुत्री का नाम रखने के बारे में सोचा। उस समय मैना और हिमालय बहुत प्रसन्न । तब देवी के गुणों और सुशीलता को देखकर उनका नाम ‘पार्वती’ रखा गया। चंद्रमा की कला की तरह हिमालय पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। उसके अंग प्रत्यंग चंद्रमा की कला एवं बिंब के समान अत्यंत शोभायमान होने लगे। गिरिजा अपनी सहेलियों के साथ खेलती थीं। पार्वती अपनी सखियों के साथ कभी गंगा की रेत से घर बनातीं तो कभी कंदुक क्रीड़ा करतीं। खेलती-खेलती वे बड़ी होने लगीं। जब वे शिक्षा के योग्य हो गईं, तो आचार्यों ने उन्हें विभिन्न धर्मशास्त्रों का उपदेश देना प्रारंभ किया। उससे उन्हें अपने पूर्व जन्म की सभी बातें स्मरण हो आईं। मुने! इस प्रकार मैंने शिवा की लीला का वर्णन तुमसे किया है।
एक समय की बात है तुम शिवलीला से प्रेरित होकर हिमालय के घर गए ।
हे नारद! तुम शिवतत्व के ज्ञाता हो और उनकी विभिन्न लीलाओं को समझते हो। तुम्हें आया हुआ देखकर हिमालय-मैना ने तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक नमस्कार किया तथा खूब आदर-सत्कार किया। तत्पश्चात हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती को बुलाया और उससे तुम्हारे चरणों में प्रणाम कराया। फिर स्वयं भी बार-बार नमस्कार करने लगे और बोले- हे मुनियों में श्रेष्ठ नारद । हे ब्रह्मा पुत्र नारद! आप परम ज्ञानी हैं। आप सदैव सबका उपकार करते हैं। आप भूत, भविष्य और वर्तमान जानते हैं। आप परोपकारी और दयालु हैं। कृपया मेरी कन्या का भाग्य बताएं और मुझे यह भी बताएं कि मेरी बेटी किसकी सौभाग्यवती पत्नी होगी?
नारद! हिमालय के ऐसे प्रश्न सुनकर तुमने पार्वती का हाथ देखा और उसके मुख मंडल को देखकर कहना शुरू किया। हे गिरिराज और मैना! आपकी यह पुत्री चंद्रमा की कला की तरह शोभित हो रही है। यह समस्त शुभ लक्षणों से युक्त है। इसका भाग्य बड़ा प्रबल है। यह अपने पति के लिए सुखदायिनी होगी। साथ ही अपने माता-पिता के यश और कीर्ति को बढ़ाएगी। यह परम साध्वी और संसार की स्त्रियों में सर्वश्रेष्ठ होगी। इसका पति योगी, नग्न, निर्गुण, कामवासना से रहित, माता-पिता हीन, अभिमान से रहित, पवित्र एवं साधु वेषधारी होगा। इस बात को सुनकर मैना और हिमालय दोनों दुखी हो गए। पार्वती देवी सोचने लगीं कि मुनि नारद की बात हमेशा सत्य होती है। जो लक्षण नारद जी ने बताए हैं वे सभी तो शिवजी में विद्यमान हैं। भगवान शिव को अपना भावी पति मानकर पार्वती मन ही मन हर्ष से खिल उठी और शिवजी के चरणों का चिंतन करने लगीं। तब हिमालय बड़े दुखी स्वर से बोले कि हे नारद। अपनी पुत्री के भावी पति के विषय में जानकर मैं बहुत दुखी हूं। आप कृपया मेरी पुत्री को बचाने का कोई मार्ग सुझाए ।
गिरिराज हिमालय के ये वचन सुनकर हे नारद तुमने कहा- गिरिराज, मेरी कही बात सर्वथा सच होगी क्योंकि हाथ की रेखाएं ब्रह्माजी द्वारा लिखी जाती हैं और कभी भी झूठ नहीं हो सकतीं। इस रेखा का फल तो अवश्य मिलेगा किंतु ऐसा होने पर भी पार्वती सुखपूर्वक रहे इस हेतु पार्वती का विवाह भगवान शिव से कर दें। भगवान शिव में ये सभी गुण हैं। महादेव जी में ये अशुभ लक्षण भी शुभ हो जाते हैं। इसलिए गिरिराज, तुम बिना विचार किए अपनी कन्या का विवाह भगवान शिव से कर दो। वे सबके ईश्वर हैं तथा निर्विकार, सामर्थ्यवान और अविनाशी हैं किंतु ऐसा होना इतना सरल नहीं है। पार्वती शिव विवाह तभी संभव हो सकता है, जब किसी तरह भगवान शिव प्रसन्न हो जाएं। भगवान शंकर को प्रसन्न करने और वश में करने का सबसे सरल और उत्तम साधन है यदि आपकी पुत्री भगवान शिव की अनन्य भक्ति भाव से तपस्या करे तो सब ठीक हो जाएगा। पार्वती भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करेंगी। वे सदैव भगवान शिव के अनुसार ही कार्य करेंगी क्योंकि वे उत्तम व्रत का पालन करने वाली महासाध्वी हैं। वे अपने माता-पिता के सुख को बढ़ाने वाली हैं।
गिरिराज हिमालय! भगवान शिव और शिवा का प्रेम तो अलौकिक है। ऐसा प्रेम न तो किसी का हुआ है और ना ही होगा। भगवान शिव इनके अलावा और किसी स्त्री को अपनी पत्नी नहीं बनाएंगे। हिमालय ! शिव-शिवा को एकाकार होकर देवताओं की सिद्धि के लिए अनेक कार्य करने हैं। आपकी पुत्री को पत्नी रूप में प्राप्त करके ही भगवान अर्द्धनारीश्वर होंगे। आपकी पुत्री पार्वती भगवान शिव की तपस्या से उन्हें संतुष्ट कर उनकी अर्द्धांगिनी बन जाएंगी।
मुनि नारद ! तुम्हारे इन वचनों को सुनकर हिमालय बोले- हे मुनिश्रेष्ठ नारद! भगवान शिव सभी प्रकार की इच्छाओं का त्याग करके अपने मन को संयम में रखकर नित्य तपस्या करते हैं। उनका ध्यान सदैव परमब्रह्म में लगा रहता है। भला वे अपने मन को कैसे योग से हटाकर मोह-माया के बंधनों में फंसने हेतु विवाह करेंगे। जो भगवान शिव अविनाशी, प्रकृति से परे, निर्गुण, निराकार और दीपक की लौ की तरह प्रकाशित हैं और सदैव परमब्रह्म के प्रकाशपुंज को तलाशते हैं, वे कैसे मेरी पुत्री से विवाह करने पर राजी होंगे। मेरी जानकारी के अनुसार भगवान शिव ने बहुत पहले अपनी पत्नी सती के सामने यह प्रतिज्ञा की थी कि वे उनके अलावा किसी और को पत्नी रूप में कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। अब जब सती ने अपने शरीर को त्याग दिया है, तो वे किसी और स्त्री को कैसे ग्रहण करेंगे? यह सुनकर आपने कहा, गिरिराज! आपको इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। तुम्हारी कन्या ही पूर्व जन्म में दक्ष की पुत्री सती थी और शिवजी की प्राणप्रिया थी। अपने पिता दक्ष द्वारा अपने पति का अनादर देखकर लज्जित होकर सती ने योगाग्नि में अपने को भस्म कर दिया था। अब वही देवी जगदंबा, जो पहले सती के रूप में अवतरित हुई थीं, अब पार्वती के रूप में तुम्हारी पुत्री बनी हैं। इसलिए तुम्हें पार्वती के विषय में चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। देवी पार्वती ही भगवान शिव की पत्नी होंगी।
तुम्हारी बातें सुनकर गिरिराज हिमालय और उनकी पत्नी मैना व उनके पुत्रों को बहुत संतोष हुआ और उनके सभी संदेह और शंकाएं पूर्णतः दूर हो गए। पास ही बैठी पार्वती ने भी अपने पूर्व जन्म की कथा के विषय में सुना। भगवान शिव को अपना पति जानकर देवी पार्वती लज्जा से सिर झुकाकर बैठ गईं। मैना और हिमालय ने उनके सिर पर हाथ फेरकर उन्हें अनेक आशीर्वाद दिए। तत्पश्चात पार्वती को तपस्या के विषय में बताकर नारद आप वहां से अंतर्धान हो गए। आपके जाने के बाद मैना और हिमालय बहुत प्रसन्न हुए।
पार्वती का नामकरण और शिव से विवाह का मार्गदर्शन
जब देवी जगदंबा ने शिशु रूप धारण किया, तो उनका रोना सुनकर हिमालय और मैना के साथ वहां उपस्थित सभी लोग प्रसन्न हो गए। पार्वती की श्यामकांति और नीलकमल की तरह सुंदरता देखकर हिमालय ने अपनी पुत्री का नामकरण किया। उसने अपनी पुत्री का नाम ‘पार्वती’ रखा, जो चंद्रमा की कला की तरह शोभित और सुंदर थी। पार्वती धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और उसके अंग अत्यधिक सुंदर और ललित हो गए। वह अपनी सहेलियों के साथ खेलती और शिक्षा प्राप्त करने लगी, जिससे उसे अपने पूर्व जन्म के बारे में स्मरण हो आया।
नारद का आगमन और भविष्यवाणी
एक दिन नारद मुनि हिमालय के घर पहुंचे। हिमालय और मैना ने उन्हें आदरपूर्वक स्वागत किया और उनकी कृपा प्राप्त की। हिमालय ने नारद से अपनी पुत्री पार्वती का भाग्य पूछा और यह जानने की कोशिश की कि उनकी पुत्री का सौभाग्यवती पति कौन होगा। नारद ने पार्वती के शारीरिक लक्षणों और सौंदर्य का निरीक्षण करते हुए कहा कि पार्वती का भाग्य अत्यंत बलशाली है और वह अपने पति के लिए सुखदायिनी होगी। उन्होंने यह भी बताया कि पार्वती का पति एक योगी, निर्गुण, पवित्र और साधु वेषधारी होगा। यह सुनकर हिमालय और मैना बहुत दुखी हो गए, क्योंकि वे यह जानते थे कि शिवजी के बारे में यह लक्षण सही हैं और पार्वती को भगवान शिव से विवाह करना होगा।
पार्वती के लिए मार्गदर्शन
नारद मुनि ने हिमालय को समझाया कि यह भाग्य और हाथ की रेखाएं कभी झूठ नहीं हो सकतीं, लेकिन भगवान शिव के अशुभ लक्षण भी शुभ में बदल सकते हैं। उन्होंने हिमालय से कहा कि वह बिना किसी संकोच के अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव से कर दें, क्योंकि पार्वती का विवाह शिव से ही होगा। नारद ने यह भी बताया कि पार्वती यदि भगवान शिव की अनन्य भक्ति और तपस्या करेंगी तो शिवजी को प्रसन्न किया जा सकता है, और फिर वह पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे।
शिव और पार्वती का अलौकिक प्रेम
नारद ने हिमालय को बताया कि भगवान शिव और पार्वती का प्रेम अलौकिक है। शिवजी ने पहले अपनी पत्नी सती को खो दिया था, और अब वह पार्वती के रूप में अपनी पत्नी को प्राप्त करेंगे। पार्वती पूर्व जन्म में सती थीं, जो भगवान शिव की प्राणप्रिय थीं। यही कारण था कि भगवान शिव पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे।
हिमालय और पार्वती का संतोष
नारद मुनि के वचनों को सुनकर हिमालय और मैना को संतोष हुआ और उनके सभी संदेह दूर हो गए। पार्वती ने भी अपनी पूर्व जन्म की कथा सुनी और भगवान शिव को अपना पति मानते हुए लज्जा से सिर झुका लिया। हिमालय और मैना ने पार्वती को आशीर्वाद दिया और नारद मुनि ने पार्वती को तपस्या के विषय में मार्गदर्शन दिया।
नारद का अंतर्धान और पार्वती का तपस्या की ओर अग्रसर होना
नारद मुनि के जाने के बाद हिमालय और मैना अत्यंत प्रसन्न हुए। वे जानते थे कि अब पार्वती का विवाह भगवान शिव से निश्चित है और उनका जीवन आदर्श और दिव्य प्रेम से भर जाएगा। पार्वती अब भगवान शिव के तपस्या करने की दिशा में अग्रसर हो गईं, और यह प्रेम और समर्पण की एक नई शुरुआत थी।