पार्वती जन्म – छठा अध्याय

ब्रह्माजी कहते हैं ;- हे नारद! तत्पश्चात हिमालय और मैना देवी भगवती और शिवजी के चिंतन में लीन रहने लगे। उसके बाद जगत की माता जगदंबिका अपना कथन सत्य करने के लिए अपने पूर्ण अंशों द्वारा पर्वतराज हिमालय के हृदय में आकर विराजमान हुई। उस समय उनके शरीर में अद्भुत एवं सुंदर प्रभा उतर आई। वे तेज से प्रकाशित हो गए और आनंद हो देवी का ध्यान करने लगे। तब उत्तम समय में गिरिराज हिमालय ने अपनी प्रिया मैना के गर्भ में उस अंश को स्थापित कर दिया। मैना ने हिमालय के हृदय में विराजमान देवी के अंश से गर्भ धारण किया। देवी जगदंबा के गर्भ में आने से मैना की शोभा व कांति निखर आई और वे तेज से संपन्न हो गईं। तब उन्हें देखकर हिमालय बहुत प्रसन्न रहने लगे। जब देवताओं सहित श्रीहरि और मुझे इस बात का ज्ञान हुआ तो हमने देवी जगदंबिका की बहुत स्तुति की और सभी अपने-अपने धाम को चले गए। धीरे-धीरे समय बीतता गया। दस माह पूरे हो जाने के पश्चात देवी शिवा ने मैना के गर्भ से जन्म ले लिया। जन्म लेने के पश्चात देवी शिवा ने मैना को अपने साक्षात रूप के दर्शन कराए। देवी के जन्म दिवस वाले दिन बसंत ऋतु के चैत्र माह की नवमी तिथि थी। उस समय आधी रात को मृगशिरा नक्षत्र था। देवी के जन्म से सारे संसार में प्रसन्नता छा गई। मंद-मंद हवा चलने लगी। सारा वातावरण सुगंधित हो गया। आकाश में बादल उमड़ आए और हल्की-हल्की फुहारों के साथ पुष्प वर्षा होने लगी। तब मां जगदंबा के दर्शन हेतु विष्णुजी और मेरे सहित सभी देवी-देवता गिरिराज हिमालय के घर पहुंचे। देवी के दर्शन कर सबने दिव्यरूपा महामाया मंगलमयी जगदंबिका माता की स्तुति की। तत्पश्चात सभी देवता अपने-अपने धाम को चले गए।

स्वयं माता जगदंबा को पुत्री रूप में पाकर हिमालय और मैना धन्य हो गए। वे अत्यंत आनंद का अनुभव करने लगे। देवी के दिव्य रूप के दर्शन से मैना को उत्तम ज्ञान की प्राप्ति हो गई। तब मैना देवी से बोली- हे जगदंबा! हे शिवा! हे महेश्वरी! आपने मुझ पर बड़ी कृपा की, जो अपने दिव्य स्वरूप के दर्शन मुझे दिए। हे माता! आप तो परम शक्ति हैं। आप तीनों लोकों की जननी हैं और देवताओं द्वारा आराध्य हैं। हे देवी! आप मेरी पुत्री रूप में आकर शिशु रूप धारण कर लीजिए।

मैना की बात सुनकर देवी मुस्कुराते हुए बोलीं-मैना! तुमने मेरी बड़ी सेवा की है। तुम्हारी भक्ति भावना से प्रसन्न होकर ही मैंने तुम्हें वर मांगने के लिए कहा था और तुमने मुझे अपनी पुत्री बनाने का वर मांग लिया था। तब मैंने ‘तथास्तु’ कहकर तुम्हें अभीष्ट फल प्रदान किया था। तत्पश्चात मैं अपने धाम चली गई थी। उस वरदान के अनुसार आज मैंने तुम्हारे गर्भ से जन्म ले लिया है। तुम्हारी इच्छा का सम्मान करते हुए मैंने तुम्हें अपने दिव्य रूप के दर्शन दिए। अब आप दोनों दंपति मुझे अपनी पुत्री मानकर मेरा लालन-पालन करो और मुझसे स्नेह रखो। मैं पृथ्वी पर अदभुत लीलाएं करूंगी तथा देवताओं के कार्यों को पूरा करूंगी। बड़ी होकर मैं भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर उनकी पत्नी बनकर इस जगत का उद्धार करूंगी।

ऐसा कहकर जगतमाता देवी जगदंबा चुप हो गईं। तब देखते ही देखते देवी भगवती नन्हे शिशु के रूप में परिवर्तित हो गईं।

देवी जगदंबा का गर्भ में प्रवेश और जन्म

जब देवी जगदंबा ने अपना कथन सत्य करने का निश्चय किया, तो वह पर्वतराज हिमालय के हृदय में अपने पूर्ण अंश के साथ आकर विराजमान हो गईं। इस दिव्य अंश के कारण हिमालय और मैना की स्थिति में अद्भुत रूप से परिवर्तन हुआ। उनके शरीर में तेज और प्रभा का संचार हुआ और उनकी आभा दोगुनी हो गई। इस दिव्य स्थिति को देखकर हिमालय अत्यंत प्रसन्न हुए और देवी के साथ उनका ध्यान करने लगे।

देवी का गर्भ में समायोजन: समय बीतने के साथ, गिरिराज हिमालय ने देवी के अंश को अपनी प्रिया मैना के गर्भ में प्रतिष्ठित किया। इसके परिणामस्वरूप मैना की शोभा और सौंदर्य में वृद्धि हुई, और वह दिव्य तेज से संपन्न हो गईं। हिमालय और मैना दोनों इस दिव्य स्थिति में मग्न थे। जब देवताओं, श्रीhari और ब्रह्माजी को इस अद्भुत घटना का ज्ञान हुआ, तो उन्होंने देवी जगदंबा की स्तुति की और अपने-अपने धाम को लौट गए।

देवी शिवा का जन्म: दस माह के बाद, मैना के गर्भ से देवी शिवा का जन्म हुआ। देवी शिवा का जन्म बसंत ऋतु के चैत्र माह की नवमी तिथि को हुआ, और यह समय मृगशिरा नक्षत्र का था। देवी के जन्म के साथ ही वातावरण में आनंद की लहर दौड़ गई। मंद हवा चलने लगी, आकाश में बादल उमड़े और पुष्प वर्षा शुरू हो गई। यह दिव्य वातावरण सभी को स्तब्ध और आनंदित कर देने वाला था।

देवी के दर्शन और आशीर्वाद: देवी शिवा के दिव्य रूप के दर्शन के बाद, श्रीhari विष्णु और अन्य देवता हिमालय के घर पहुंचे। सभी ने देवी जगदंबा के रूप में अपनी पुत्री को देखा और स्तुति की। फिर देवता अपने-अपने धाम लौट गए।

मैना का आशीर्वाद और देवी का वरदान: मैना, जो देवी के दर्शन से अत्यंत प्रसन्न और धन्य हो गई थीं, देवी से बोलीं—”हे जगदंबा! आपने मुझ पर बड़ी कृपा की और अपने दिव्य रूप से मुझे दर्शन दिए। आप परम शक्ति हैं। कृपया मुझे अपनी पुत्री रूप में स्वीकार करें।”

देवी मुस्कुराते हुए बोलीं—”मैना! तुमने मेरी भक्ति से मुझे प्रसन्न किया। तुम्हारी इच्छा के अनुसार मैंने तुम्हें पुत्री रूप में जन्म लिया है। तुम मुझे अपनी पुत्री मानकर लालन-पालन करो। मैं पृथ्वी पर अद्भुत लीलाएं करूंगी और भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर इस संसार का उद्धार करूंगी।”

देवी का शिशु रूप में रूपांतरण: इतना कहकर देवी जगदंबा ने तुरंत अपने रूप को नन्हे शिशु में बदल लिया। वह शिशु रूप में परिवर्तित हो गईं, और हिमालय तथा मैना के घर में उनकी उपस्थिति से जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ।

यह कहानी यह दर्शाती है कि देवी जगदंबा की कृपा और शक्ति से जीवन के हर पहलु में संतुलन और उद्धार संभव हो सकता है, और भक्ति से परम शक्ति की प्राप्ति होती है।