You are currently viewing लिंग पूजन का महत्व – नवां अध्याय

लिंग पूजन का महत्व – नवां अध्याय

नंदिकेश्वर कहते हैं – ब्रह्मा और विष्णु भगवान शिव को प्रणाम कर चुपचाप उनके दाएं- बाएं भाग में खड़े हो गए। उन्होंने पूजनीय महादेव जी को श्रेष्ठ आसन पर बैठाकर पवित्र वस्तुओं से उनका पूजन किया। दीर्घकाल तक स्थिर रहने वाली वस्तुओं को ‘पुष्प वस्तु’ तथा अल्पकाल तक टिकने वाली वस्तुओं को ‘प्राकृत वस्तु’ कहते हैं। हार, नूपुर, कियूर, किरीट, मणिमय कुंडल, यज्ञोपवीत, उत्तरीय वस्त्र, पुष्पमाला, रेशमी वस्त्र, हार, मुद्रिका, पुष्प, तांबूल, कपूर, चंदन एवं अगरु का अनुलेप, धूप, दीप, श्वेत छत्र, व्यंजन, ध्वजा, चंवर तथा अनेक दिव्य उपहारों द्वारा, जिनका वैभव वाणी और मन की पहुंच से परे था, जो केवल परमात्मा के योग्य थे, उनसे ब्रह्मा और विष्णु ने अपने स्वामी महेश्वर का पूजन किया। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दोनों देवताओं से मुस्कराकर कहा-

पुत्रो ! आज तुम्हारे द्वारा की गई पूजा से मैं बहुत प्रसन्न हूं। इसी कारण यह दिन परम पवित्र और महान होगा। यह तिथि ‘शिवरात्रि’ के नाम से प्रसिद्ध होगी और मुझे परम प्रिय होगी। इस दिन जो मनुष्य मेरे लिंग अर्थात निराकार रूप की या मेरी मूर्ति अर्थात साकार रूप की दिन-रात निराहार रहकर अपनी शक्ति के अनुसार निश्चल भाव से यथोचित पूजा करेगा, वह मेरा परम प्रिय भक्त होगा। पूरे वर्ष भर निरंतर मेरी पूजा करने पर जो फल मिलता है, वह फल शिवरात्रि को मेरा पूजन करके मनुष्य तत्काल प्राप्त कर लेता है। जैसे पूर्ण चंद्रमा का उदय समुद्र की वृद्धि का अवसर है, उसी प्रकार शिवरात्रि की तिथि मेरे धर्म की वृद्धि का समय है। इस तिथि को मेरी स्थापना का मंगलमय उत्सव होना चाहिए। मैं मार्गशीर्ष मास में आर्द्रा नक्षत्र से युक्त पूर्णमासी या प्रतिपदा को ज्योतिर्मय स्तंभ के रूप में प्रकट हुआ था। इस दिन जो भी मनुष्य पार्वती सहित मेरा दर्शन करता है अथवा मेरी मूर्ति या लिंग की झांकी निकालता है, वह मेरे लिए कार्तिकेय से भी अधिक प्रिय है। इस शुभ दिन मेरे दर्शन मात्र से पूरा फल प्राप्त होता है। यदि दर्शन के साथ मेरा पूजन भी किया जाए तो इतना अधिक फल प्राप्त होता है कि वाणी द्वारा उसका वर्णन नहीं किया जा सकता ।

लिंग रूप में प्रकट होकर मैं बहुत बड़ा हो गया था । अतः लिंग के कारण यह भूतल ‘लिंग स्थान’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । जगत के लोग इसका दर्शन और पूजन कर सकें, इसके लिए यह अनादि और अनंत ज्योति स्तंभ अथवा ज्योतिर्मय लिंग अत्यंत छोटा हो जाएगा। यह लिंग सब प्रकार के भोग सुलभ कराने वाला तथा भोग और मोक्ष का एकमात्र साधन है। इसका दर्शन, स्पर्श और ध्यान प्राणियों को जन्म और मृत्यु के कष्ट से छुड़ाने वाला है। शिवलिंग के यहां प्रकट होने के कारण यह स्थान ‘अरुणाचल’ नाम से प्रसिद्ध होगा तथा यहां बड़े-बड़े तीर्थ प्रकट होंगे। इस स्थान पर रहने या मरने से जीवों को मोक्ष प्राप्त होगा।

मेरे दो रूप हैं – साकार और निराकार। पहले मैं स्तंभ रूप में प्रकट हुआ। फिर अपने

साक्षात रूप में। ‘ब्रह्मभाव’ मेरा निराकार रूप है तथा ‘महेश्वरभाव’ मेरा साक्षात रूप है। ये दोनों ही मेरे सिद्ध रूप हैं। मैं ही परब्रह्म परमात्मा हूं। जीवों पर अनुग्रह करना मेरा कार्य है। मैं जगत की वृद्धि करने वाला होने के कारण ‘ब्रह्म’ कहलाता हूं। सर्वत्र स्थित होने के कारण मैं ही सबकी आत्मा हूं। सर्ग से लेकर अनुग्रह तक जो जगत संबंधी पांच कृत्य हैं, वे सदा ही मेरे हैं।

मेरी ब्रह्मरूपता का बोध कराने के लिए पहले लिंग प्रकट हुआ। फिर अज्ञात ईश्वरत्व का साक्षात्कार कराने के लिए मैं जगदीश्वर रूप में प्रकट हो गया। मेरा सकल रूप मेरे ईशत्व का और निष्कल रूप मेरे ब्रह्मस्वरूप का बोध कराता है। मेरा लिंग मेरा स्वरूप है और मेरे सामीप्य की प्राप्ति कराने वाला है।

मेरे लिंग की स्थापना करने वाले मेरे उपासक को मेरी समानता की प्राप्ति हो जाती है तथा मेरे साथ एकत्व का अनुभव करता हुआ संसार सागर से मुक्त हो जाता है। वह जीते जी परमानंद की अनुभूति करता हुआ, शरीर का त्याग कर शिवलोक को प्राप्त होता है अर्थात मेरा ही स्वरूप हो जाता है । मूर्ति की स्थापना लिंग की अपेक्षा गौण है। यह उन भक्तों के लिए है, जो शिवतत्व के अनुशीलन में सक्षम नहीं हैं।