वज्रांग का जन्म एवं पुत्र प्राप्ति का वर मांगना – चौदहवां अध्याय

नारद जी कहने लगे ;- ब्रह्माजी! तारकासुर कौन था? जिसने देवताओं को भी पीड़ित किया। उन्हें स्वर्ग से निष्कासित कर दिया और स्वर्ग पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया। कृपया मुझे इसके विषय में बताइए ।

ब्रह्माजी बोले ;- हे मुनि नारद! मरीचि के पुत्र कश्यप मुनि थे। उनकी तेरह स्त्रियां थीं, जिसमें सबसे बड़ी दिति थीं। उससे हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र हुए। हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष को श्रीहरि विष्णु ने वाराह तथा नृसिंह का रूप धारण करके मार दिया था। तब अपने पुत्रों के मर जाने से दुखी होकर दिति ने कश्यप से प्रार्थना की तथा उनकी बहुत सेवा की। उनकी कृपा से दिति पुनः गर्भवती हुई। जब इंद्र को इस बात का पता • चला तो उन्होंने दिति के गर्भ में ही उनके बच्चे के छोटे-छोटे टुकड़े कर दिए परंतु दिति के व्रत एवं अन्य भक्तिभाव से बालक को मारने में वे सफल न हुए। समय पूरा होने पर उसके गर्भ से उनचास बालक उत्पन्न हुए। ये सभी भगवान शिव के गण हुए तथा शीघ्र ही स्वर्ग में चले गए। तत्पश्चात दिति पुनः अपने पति कश्यप मुनि के पास गई और उनसे पुनः मां बनने के विषय में कहने लगीं। तब कश्यप मुनि ने कहा- हे प्रिय दिति! अपना तन-मन शुद्ध कर भक्ति भाव से तपस्या करो। दस हजार वर्ष बीतने के पश्चात तुम्हें तुम्हारी इच्छा के अनुरूप पुत्र की प्राप्ति होगी। यह सुनकर दिति ने श्रद्धापूर्वक दस हजार वर्षों तक कठोर तपस्या की। तपस्या के उपरांत पुनः वे अपने घर लौट आईं। तब कश्यप मुनि की कृपा से दिति गर्भवती हुई। इस बार उन्होंने एक अत्यंत पराक्रमी और बलवान पुत्र को जन्म दिया। इस पुत्र का नाम वज्रांग था । वज्रांग दिति की इच्छा के अनुरूप ही था। दिति इंद्र द्वारा किए गए छल-कपट से बहुत दुखी थी और उनसे बदला लेने के लिए अपने पुत्र वज्रांग को देवताओं से युद्ध करने की आज्ञा दी।

वज्रांग और सभी देवताओं का बहुत भयानक युद्ध हुआ। तत्पश्चात वीर और पराक्रमी वज्रांग ने अपनी माता के आशीर्वाद से सभी देवताओं को परास्त कर दिया और स्वर्ग का राज्य हथिया कर वहां का राजा बन गया। सभी देवता उसके अधीन हो गए। तब यह देखकर दिति को बहुत प्रसन्नता हुई। एक दिन कश्यप मुनि के साथ मैं स्वयं वज्रांग के पास गया। मैंने वज्रांग से अनुरोध किया कि वह देवताओं को इंद्र की गलती की सजा न दे तथा इंद्र सहित सभी देवताओं को क्षमा कर दे। मेरे इस प्रकार कहने पर वज्रांग बोला- हे ब्रह्मन्! मुझे राज्य का कोई लोभ नहीं है। मैंने इंद्र की दुष्टता के कारण ही ऐसा किया है। इंद्र ने मेरी माता के गर्भ में घुसकर मेरे भाइयों को मारने का प्रयत्न किया था। तभी मैंने इंद्र के राज्य को जीतकर उसे स्वर्ग से निष्कासित कर दिया है। भगवन्! मुझे भोग-विलास की भी कोई इच्छा नहीं है। इंद्र सहित सभी देवता अपने-अपने कर्मों का फल भोग चुके हैं। अब मैं स्वर्ग का राज्य इंद्र को वापस सौंप सकता हूं। मैंने अपनी माता की आज्ञा मानकर यह सब किया है। प्रभो! आप मुझे सार तत्व का उपदेश दें, जिससे मुझे सुख की प्राप्ति हो। वज्रांग के उद्देश्य को उत्तम जानकर मैंने उसे सात्विक तत्व के बारे में समझाया। फिर मैंने एक सुंदर व गुणी स्त्री उत्पन्न की और उसका विवाह वज्रांग से करा दिया। वज्रांग ने अपने सभी बुरे विचारों को त्याग दिया परंतु उसकी पत्नी के हृदय में बुरे विचारों का ही मानो साम्राज्य था। उसकी पत्नी ने उसकी बहुत सेवा की। तब प्रसन्न होकर वज्रांग ने कहा- हे प्राणप्रिया! तुम क्या चाहती हो? मुझे बताओ। मैं तुम्हारी इच्छाएं अवश्य पूरी करूंगा। यह सुनकर वह परम सुंदरी बोली- पतिदेव! यदि आप मेरी सेवा से प्रसन्न हैं तो कृपया मुझे इस त्रिलोकी को जीतने वाला महापराक्रमी और बलवान पुत्र प्रदान करिए। जो ऐसा बलवान हो कि समस्त देवता उससे भयभीत रहें। अपनी पत्नी के ऐसे वचन सुनकर वज्रांग सोच में डूब गया क्योंकि वह स्वयं देवताओं से किसी प्रकार का कोई बैर नहीं रखना चाहता था परंतु उसकी पत्नी देवताओं के साथ शत्रुता बढ़ाना चाहती थी। वज्रांग सोचने लगा कि यदि सिर्फ अपनी पत्नी की इच्छा को सर्वोपरि मानकर उसे पूरा कर दिया तो सारे संसार सहित देवताओं एवं मुनियों को दुख उठाना पड़ेगा और यदि पत्नी की इच्छा को पूरा नहीं किया तो मैं नरक का भागी बनूंगा। तब इस धर्म संकट में पड़ने के बाद उसने अपनी पत्नी की अभिलाषा को पूरा किया। अपनी पत्नी की इच्छानुसार पुत्र प्राप्त करने हेतु वज्रांग ने बहुत वर्षों तक कठोर तपस्या की। मुझसे वर प्राप्त कर अत्यंत हर्षित होता हुआ वज्रांग अपनी पत्नी को पुत्र प्रदान करने हेतु अपने लोक में चला गया।

तारकासुर का उत्पत्ति और युद्ध

नारद जी ने ब्रह्माजी से पूछा, “ब्रह्माजी! तारकासुर कौन था, जिसने देवताओं को पीड़ा दी और स्वर्ग पर अपना अधिकार स्थापित किया? कृपया मुझे इसके विषय में विस्तार से बताइए।”

ब्रह्माजी का उत्तर
ब्रह्माजी ने कहा, “हे मुनि नारद! मरीचि के पुत्र कश्यप मुनि थे, जिनकी तेरह पत्नियाँ थीं। इनमें से दिति सबसे बड़ी थीं। दिति से दो पुत्र हुए—हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष। विष्णु भगवान ने वाराह और नृसिंह रूप में अवतार लेकर इन्हें मारा। उनके मरने के बाद दिति बहुत दुखी हुईं और कश्यप से प्रार्थना करने लगीं। कश्यप मुनि ने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर दिति को पुनः गर्भवती होने का आशीर्वाद दिया। इस बार दिति ने एक अत्यंत बलवान पुत्र, वज्रांग, को जन्म दिया।”

वज्रांग का युद्ध और स्वर्ग का राज्य
“इंद्र ने पहले दिति के गर्भ में दुष्टता की थी, जिसके कारण दिति ने अपने पुत्र वज्रांग को देवताओं से युद्ध करने की आज्ञा दी। वज्रांग ने देवताओं को परास्त किया और स्वर्ग का राज्य हथिया लिया। स्वर्ग में वज्रांग का शासन स्थापित हो गया और सभी देवता उसके अधीन हो गए।”

वज्रांग का आंतरिक संघर्ष
“एक दिन ब्रह्माजी कश्यप मुनि के साथ वज्रांग के पास गए और उनसे अनुरोध किया कि वह देवताओं को क्षमा कर दे और स्वर्ग का राज्य इंद्र को वापस लौटा दे। वज्रांग ने कहा, ‘मुझे राज्य का कोई लोभ नहीं है, लेकिन इंद्र ने मेरी माता के गर्भ में मेरे भाइयों को मारने की कोशिश की थी, इसलिए मैंने स्वर्ग पर विजय प्राप्त की। अब मैं स्वर्ग का राज्य इंद्र को लौटाने को तैयार हूं।'”

वज्रांग का सुधार और पत्नी के प्रभाव में आना
“ब्रह्माजी ने वज्रांग को सात्विक तत्व का उपदेश दिया और एक सुंदर स्त्री उत्पन्न की, जिसका विवाह वज्रांग से कर दिया। वज्रांग ने अपने बुरे विचारों को छोड़ दिया, लेकिन उसकी पत्नी के हृदय में बुरे विचार समाए हुए थे। एक दिन वह बोली, ‘यदि आप मेरी सेवा से प्रसन्न हैं, तो मुझे एक महापराक्रमी पुत्र दें, जो समस्त त्रिलोकी को जीत सके और देवताओं से भयभीत हो।'”

“वज्रांग को यह सुनकर बहुत चिंता हुई, क्योंकि वह देवताओं से शत्रुता नहीं चाहता था। वह धर्म संकट में फंसा हुआ था। उसने सोचा कि यदि वह अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करता है, तो सभी देवता और मुनि दुखी होंगे। लेकिन यदि वह इसे न मानता, तो वह नरक का भागी बनेगा।”

वज्रांग की तपस्या
“अंततः वज्रांग ने अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए कठोर तपस्या की। ब्रह्माजी से वर प्राप्त कर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और अपनी पत्नी को महापराक्रमी पुत्र देने के लिए अपने लोक में चला गया।”

निष्कर्ष
यह कथा वज्रांग की आंतरिक उलझनों और निर्णयों को दर्शाती है, जिसमें वह अपनी पत्नी की इच्छा और धर्म के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। अंततः, वह अपनी पत्नी की इच्छाओं को पूरा करने के लिए तपस्या करता है, जो उसकी जीवन के धर्म के प्रति निष्ठा और संघर्ष को दर्शाता है।