शिवजी द्वारा पार्वती जी की तपस्या की परीक्षा करना – पच्चीसवां अध्याय

्रह्माजी बोले ;- हे मुनिश्रेष्ठ नारद! सप्तऋषियों ने पार्वती जी के आश्रम से आकर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव को वहां का सारा वृत्तांत सुनाया। सप्तऋषियों के अपने लोक चले जाने के पश्चात शिवजी ने देवी पार्वती की तपस्या की स्वयं परीक्षा लेने के बारे में सोचा। परीक्षा लेने के लिए महादेव जी ने एक तपस्वी का रूप धारण किया और उस स्थान की ओर चल दिए जहां पार्वती तपस्यारत थीं। आश्रम में पहुंचकर उन्होंने देखा देवी पार्वती वेदी पर बैठी हुई थीं और उनका मुखमंडल चंद्रमा की कला के समान तेजोद्दीप्त था। भगवान शिव ब्राह्मण देवता का रूप धारण करके उनके सम्मुख पहुंचे। ब्राह्मण देवता को आया देखकर पार्वती ने भक्तिपूर्वक उनका फल-फूलों से पूजन सत्कार किया। पूजन के बाद देवी पार्वती ने ब्राह्मण देवता से पूछा – हे ब्राह्मणदेव! आप कौन हैं और कहां से पधारे हैं? मुनिश्वर! आपके परम तेज से यह पूरा वन प्रकाशित हो रहा है। कृपा कर मुझे अपने यहां आने का कारण बताइए।

तब ब्राह्मण रूप धारण किए हुए महादेव जी बोले ;- मैं इच्छानुसार विचरने वाला ब्राह्मण हु । मेरा मन प्रभु के चरणों का ही ध्यान करता है। मेरी बुद्धि सदैव उन्हीं का स्मरण करती है। में दूसरो को सुखी करके खुश होता हूँ। देवी में एक तपस्वी हुं पर आप कोन है ? आप किसकी पुत्री हैं? और इस समय इस निर्जन वन में क्या कर रही हैं? हे देवी! आप इस दुर्लभ और कठिन तपस्या से किसे प्रसन्न करना चाहती हैं? तपस्या या तो ऋषि-मुनि करते हैं या फिर भगवान के चरणों में ध्यान लगाना वृद्धों का काम है। भला इस तरुणावस्था में आप क्यों घर के ऐशो आराम को त्यागकर ब्रह्मचर्य का पालन करती हुई तपस्विनी का जीवन जी रही हैं? आप किस तपस्वी की धर्मपत्नी हैं और पति के समान तप कर रही हैं? हे देवी! अपने बारे में मुझे जानकारी दीजिए कि आपका क्या नाम है? और आपके पिता का क्या नाम है ? किस प्रकार आप तप के प्रति आसक्त हो गईं? क्या आप वेदमाता गायत्री हैं? लक्ष्मी हैं अथवा सरस्वती हैं?

देवी पार्वती बोलीं ;- हे मुनिश्रेष्ठ! न तो मैं वेदमाता गायत्री हूं, न लक्ष्मी और न ही सरस्वती हूं। मैं गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती हूं। पूर्व जन्म में मैं प्रजापति दक्ष की पुत्री सती थी परंतु मेरे पिता दक्ष द्वारा मेरे पति भगवान शिव का अपमान देखकर मैंने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को जलाकर भस्म कर दिया था। इस जन्म में भी प्रभु शिवशंकर की सेवा करने का मुझे अवसर मिला था। मैं नियमपूर्वक उनकी सेवा में व्यस्त थी परंतु दुर्भाग्य से कामदेव के चलाए गए बाण के फलस्वरूप शिवजी को क्रोध आ गया और उन्होंने कामदेव को अपने क्रोध की अग्नि से भस्म कर दिया और वहां से उठकर चले गए। उनके इस प्रकार चले जाने से मैं पीड़ित होकर उनकी प्राप्ति का प्रयत्न करने हेतु तपस्या करने गंगा के तट पर चली आई हूं। यहां मैं बहुत लंबे समय से कठोर तपस्या कर रही हूं ताकि मैं शिवजी को पुनः पति रूप में प्राप्त कर सकूं परंतु मैं ऐसा करने में सफल नहीं हो सकी हूं। मैं अभी अग्नि में प्रवेश करने ही वाली थी कि आपको आया देखकर ठहर गई। अब आप जाइए, मैं अग्नि में प्रवेश करूंगी क्योंकि भगवान शिव ने मुझे स्वीकार नहीं किया है।

ऐसा कहकर देवी पार्वती उन ब्राह्मण देवता के सामने ही अग्नि में समा गई। ब्राह्मण देव ने उन्हें ऐसा करने से बहुत रोका परंतु देवी पार्वती ने उनकी एक भी बात नहीं सुनी और अग्नि में प्रवेश कर लिया परंतु देवी पार्वती की तपस्या के प्रभाव के फलस्वरूप वह धधकती हुई। अग्नि एकदम ठंडी हो गई। सहसा पार्वती आकाश में ऊपर की ओर उठने लगीं। तब ब्राह्मण रूप धारण किए हुए भगवान शिव हंसते हुए बोले-हे देवी! तुम्हारे शरीर पर अग्नि का कोई प्रभाव न पड़ना तुम्हारी तपस्या की सफलता का ही सूचक है। परंतु तुम्हारी मनोवांछित इच्छा का पूरा न होना तुम्हारी असफलता को दर्शाता है। अतः देवी तुम मुझ ब्राह्मण से अपनी तपस्या के मनोरथ को बताओ।

शिवजी के इस प्रकार पूछने पर उत्तम व्रत का पालन करने वाली देवी पार्वती ने अपनी सखी को उत्तर देने के लिए कहा।

उनकी सखी बोली ;- हे साधु महाराज! मेरी सखी गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। पार्वती का अभी तक विवाह नहीं हुआ है। ये भगवान शिव को ही पति रूप में प्राप्त करना चाहती हैं। इसी के लिए वे तीन हजार वर्षों से कठोर तपस्या कर रही हैं। मेरी सखी पार्वती ब्रह्मा, विष्णु और देवराज इंद्र को छोड़कर पिनाकपाणि भगवान शंकर को ही पति रूप में प्राप्त करना चाहती हैं। इसलिए ये मुनि नारद की आज्ञानुसार कठोर तपस्या कर रही हैं।

देवी पार्वती की सखी की बातें सुनकर जटाधारी तपस्वी का वेष धारण किए हुए भगवान शिव हंसते हुए बोले- देवी! आपकी सखी ने जो कुछ मुझे बताया है, मुझे परिहास जैसा लगता है। यदि फिर भी यही सत्य है तो पार्वती आप स्वयं इस बात को स्वीकार करें और मुझसे इस बात को कहें।

भगवान शिव का पार्वती की तपस्या की परीक्षा लेना

भगवान ब्रह्मा ने नारदजी से कहा कि सप्तऋषियों के जाने के बाद, भगवान शिव ने देवी पार्वती की तपस्या की परीक्षा लेने का विचार किया। उन्होंने एक तपस्वी का रूप धारण किया और पार्वती के तपस्थल की ओर चल पड़े।

ब्राह्मण रूप में भगवान शिव का आगमन

भगवान शिव, ब्राह्मण देवता का रूप धारण करके पार्वती के आश्रम पहुंचे। पार्वती ने उनका स्वागत किया और उनसे पूछा कि वे कौन हैं और यहाँ क्यों आए हैं। भगवान शिव ने पार्वती से सवाल किया कि वह इस कठिन तपस्या क्यों कर रही हैं, जबकि वह युवा अवस्था में हैं। उन्होंने पार्वती से यह भी पूछा कि वह किस देवता को प्रसन्न करना चाहती हैं और किस उद्देश्य से इतनी कठिन तपस्या कर रही हैं।

देवी पार्वती का परिचय और तपस्या का उद्देश्य

देवी पार्वती ने उत्तर दिया कि वह गिरिराज हिमालय की पुत्री हैं और पहले जन्म में प्रजापति दक्ष की पुत्री सती थीं। भगवान शिव के अपमान के कारण सती ने योगाग्नि में आत्मदाह किया था। इस जन्म में भी उन्होंने भगवान शिव की सेवा करने का संकल्प लिया था। अब वह भगवान शिव को अपने पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या कर रही थीं।

पार्वती का अग्नि में प्रवेश

देवी पार्वती ने कहा कि यदि भगवान शिव उन्हें नहीं स्वीकारते हैं, तो वह अग्नि में प्रवेश करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वह तीन हजार वर्षों से कठोर तपस्या कर रही हैं। देवी पार्वती के तपस्या के प्रभाव से अग्नि ठंडी हो गई और वह आकाश की ओर उन्नत हो गईं। भगवान शिव, ब्राह्मण रूप में, इस दृश्य को देखकर हंसते हुए बोले कि यह तपस्या की सफलता का संकेत है, लेकिन उन्होंने यह भी बताया कि उनका मनोवांछित फल न मिलना, एक असफलता का संकेत है।

पार्वती की सखी का उत्तर

भगवान शिव ने पार्वती से पूछा कि वह अपनी तपस्या के उद्देश्य को स्पष्ट करें। तब पार्वती की सखी ने उत्तर दिया कि पार्वती भगवान शिव को ही पति रूप में प्राप्त करना चाहती हैं और इसके लिए वह तीन हजार वर्षों से तपस्या कर रही हैं। सखी ने यह भी बताया कि पार्वती मुनि नारद के उपदेशानुसार तपस्या कर रही हैं।

भगवान शिव का परिहास

भगवान शिव ने पार्वती की सखी की बातों को परिहास जैसा बताया और पार्वती से कहा कि अगर यह सत्य है, तो वह स्वयं स्वीकार करें और अपनी इच्छा व्यक्त करें।

निष्कर्ष

यह संवाद देवी पार्वती की अडिग भक्ति और तपस्या को प्रकट करता है। भगवान शिव की परीक्षा पार्वती के दृढ़ निश्चय और प्रेम को परखने के लिए थी, और इसने यह सिद्ध कर दिया कि उनकी भक्ति सच्ची और अडिग थी।