कैलाश पर्वत पर श्रीशिव और दक्ष कन्या सती के विविध विहारों का विस्तार से वर्णन करने के बाद ब्रह्माजी ने कहा,
नारद! एक दिन की बात है कि देवी सती भगवान शिव को प्रेमपूर्वक प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़कर खड़ी हो गईं। उन्हें चुपचाप खड़े देखकर भगवान शिव समझ गए कि देवी सती के मन में कुछ बात अवश्य है, जिसे वह कहना चाह रही हैं। तब उन्होंने मुस्कुराकर देवी सती से पूछा कि हे प्राणवत्सला ! कहिए आप क्या कहना चाहती हैं? यह सुनकर देवी सती बोलीं,
हे भगवन्! वर्षा ऋतु आ गई है। चारों ओर का वातावरण सुंदर व मनोहारी हो गया है। हे देवाधिदेव! मैं चाहती हूं कि कुछ समय हम कैलाश पर्वत से दूर पृथ्वी पर या हिमालय पर्वत पर जाकर रहें। वर्षा काल के लिए हम किसी योग्य स्थान पर चले जाएं और कुछ समय वहीं निवास करें। देवी सती की यह प्रार्थना सुनकर भगवान शिव हंसने लगे। हंसते हुए ही उन्होंने अपनी पत्नी सती से कहा कि प्रिये ! जहां पर मैं निवास करता हूं, वहां पर मेरी इच्छा के विरुद्ध कोई भी आ-जा नहीं सकता है। मेघ भी मेरी आज्ञा के बिना कैलाश पर्वत की ओर कभी नहीं आएंगे। वर्षा काल में भी मेघ सिर्फ नीचे की ओर ही घूमकर चले जाएंगे। हे प्रिये ! तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध कोई भी तुम्हें परेशान नहीं कर सकता।
फिर भी यदि आप चाहती हैं तो हम हिमालय पर्वत पर चलते हैं। तत्पश्चात भगवान शिव अपनी पत्नी सती के साथ हिमालय पर चले गए। कुछ समय वहां प्रसन्नतापूर्वक विहार करने के पश्चात वे पुनः अपने निवास पर लौट आए।