शिव है प्रथम और शिव ही है अंतिम। शिव है सनातन धर्म का परम कारण और कार्य। शिव को छोड़कर अन्य किसी में मन रमाते रहने वाले सनातन विरुद्ध है। शिव है धर्म की जड़। शिव से ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है। सभी जगत शिव की ही शरण में है, जो शिव के प्रति शरणागत नहीं है वह प्राणी दुख के गहरे गर्त में डूबता जाता है ऐसा पुराण कहते हैं। जाने-अनजाने शिव का अपमान करने वाले को प्रकृति कभी क्षमा नहीं करती है।
।।ॐ।। ओम नम: शिवाय। – ‘ओम’ प्रथम नाम परमात्मा का फिर ‘नमन’ शिव को करते हैं। ‘सत्यम, शिवम और सुंदरम’ जो सत्य है वह ब्रह्म है:- ब्रह्म अर्थात परमात्मा। जो शिव है वह परम शुभ और पवित्र आत्म तत्व है और जो सुंदरम है वही परम प्रकृति है। अर्थात परमात्मा, शिव और पार्वती के अलावा कुछ भी जानने योग्य नहीं है। इन्हें जानना और इन्हीं में लीन हो जाने का मार्ग है-हिंदुत्व।
शिव का रूप : शिव यक्ष के रूप को धारण करते हैं और लंबी-लंबी खूबसूरत जिनकी जटाएँ हैं, जिनके हाथ में ‘पिनाक’ धनुष है, जो सत् स्वरूप हैं अर्थात् सनातन हैं, यकार स्वरूप दिव्यगुणसम्पन्न उज्जवलस्वरूप होते हुए भी जो दिगम्बर हैं। जो शिव नागराज वासुकि का हार पहिने हुए हैं, वेद जिनकी बारह रुद्रों में गणना करते हैं, पुराण उन्हें शंकर और महेश कहते हैं उन शिव का रूप विचित्र है। अर्धनग्न शरीर पर राख या भभूत मले, जटाधारी, गले में रुद्राक्ष और सर्प लपेटे, तांडव नृत्य करते हैं तथा नंदी जिनके साथ रहता है। उनकी भृकुटि के मध्य में तीसरा नेत्र है। वे सदा शांत और ध्यानमग्न रहते हैं। इनके जन्म का अता-पता नहीं हैं। वे स्वयंभू माने गए हैं।
शिव निवास : तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर प्रारम्भ में उनका निवास रहा। वैज्ञानिकों के अनुसार तिब्बत धरती की सबसे प्राचीन भूमि है और पुरातनकाल में इसके चारों ओर समुद्र हुआ करता था। फिर जब समुद्र हटा तो अन्य धरती का प्रकटन हुआ। जहाँ पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है। ऐसा पुराण कहते हैं।
शिव भक्त : ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
शिव ध्यान : शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीम मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।
शिव मंत्र : दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥
शिव पर्व : महाशिवरात्रि भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। श्रावण मास में व्रत रखने के पश्चात्य इस पर्व को मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने के नियम हैं।
शिव परिवार : शिव की अर्धांगिनी का नाम पार्वती है। इनके दो पुत्र हैं स्कन्द और गणेश। स्कंद को कार्तिकेय भी कहते हैं। आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री पार्वती माता को सती कहा जाता है। यह सती शब्द बिगड़कर ‘शक्ति’ हो गया। पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वे पर्वतराज अर्थात पर्वतों के राजा की पुत्र थीं। राजकुमारी थीं, लेकिन वे भस्म रमाने वाले योगी शिव को अपना पति बनाना चाहती थीं। शिव के कारण ही उनका नाम शक्ति हो गया। पिता की अनिच्छा से उन्होंने हिमालय के इलाके में ही रहने वाले योगी शिव से विवाह कर लिया।
शिव महिमा : शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर को जो वरदान दिया था उसके जाल में वे खुद ही फँस गए थे। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा को शापित कर विष्णु को वरदान दिया था। शिव की महिमा का वर्णन पुराणों में मिलता है।
शैव परम्परा : ऋग्वेद में वृषभदेव का वर्णन मिलता है, जो जैनियों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ कहलाते हैं। माना जाता है कि शिव के बाद मूलत: उन्हीं से एक ऐसी परम्परा की शुरुआत हुई जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगम्बर और सूफी सम्प्रदाय में विभक्त हो गई। फिर भी यह शोध का विषय है। शैव, शाक्तों के धर्मग्रंथों में शिव परंपरा का उल्लेख मिलता है। भारत के चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।
शिव के प्रमुख नाम : शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहाँ प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।