मोक्षदायक पुण्य क्षेत्रों का वर्णन – बारहवां अध्याय

सूत जी बोले – हे विद्वान और बुद्धिमान महर्षियो ! मैं मोक्ष देने वाले शिवक्षेत्रों का वर्णन कर रहा हूं। पर्वत, वन और काननों सहित इस पृथ्वी का विस्तार पचास करोड़ योजन है। भगवान शिव की इच्छा से पृथ्वी ने सभी को धारण किया है। भगवान शिव ने भूतल पर विभिन्न स्थानों पर वहां के प्राणियों को मोक्ष देने के लिए शिव क्षेत्र का निर्माण किया है। कुछ क्षेत्रों को देवताओं और ऋषियों ने अपना निवास स्थान बनाया है। इसलिए उसमें तीर्थत्व प्रकट हो गया है। बहुत से तीर्थ ऐसे हैं, जो स्वयं प्रकट हुए हैं। तीर्थ क्षेत्र में जाने पर मनुष्य को सदा स्नान, दान और जाप करना चाहिए अन्यथा मनुष्य रोग, गरीबी तथा मूकता आदि दोषों का भागी हो जाता है। जो मनुष्य अपने देश में मृत्यु को प्राप्त होता है, वह इस पुण्य के फल से दुबारा मनुष्य योनि प्राप्त करता है। परंतु पापी मनुष्य दुर्गति को ही प्राप्त करता है। ब्राह्मणो! पुण्यक्षेत्र में किया गया पाप कर्म, अधिक दृढ़ हो जाता है। अतः पुण्य क्षेत्र में निवास करते समय पाप कर्म करने से बचना चाहिए।

सिंधु और सतलुज नदी के तट पर बहुत से पुण्य क्षेत्र हैं। सरस्वती नदी परम पवित्र और साठ मुखवाली है अर्थात उसकी साठ धाराएं हैं। इन धाराओं के तट पर निवास करने से परम पद की प्राप्ति होती है। हिमालय से निकली हुई पुण्य सलिला गंगा सौ मुख वाली नदी है । इसके तट पर काशी, प्रयाग आदि पुण्य क्षेत्र हैं। मकर राशि में सूर्य होने पर गंगा की तटभूमि अधिक प्रशस्त एवं पुण्यदायक हो जाती है। सोनभद्र नदी की दस धाराएं हैं। बृहस्पति के मकर राशि में आने पर यह अत्यंत पवित्र तथा अभीष्ट फल देने वाली है। इस समय यहां स्नान और उपवास करने से विनायक पद की प्राप्ति होती है। पुण्य सलिला महानदी नर्मदा के चौबीस मुख हैं। इसमें स्नान करके तट पर निवास करने से मनुष्य को वैष्णव पद की प्राप्ति होती है। तमसा के बारह तथा रेवा के दस मुख हैं। परम पुण्यमयी गोदावरी के इक्कीस मुख हैं। यह ब्रह्महत्या तथा गोवध पाप का नाश करने वाली एवं रुद्रलोक देने वाली है। कृष्णवेणी नदी समस्त पापों का नाश करने वाली है। इसके अठारह मुख हैं तथा यह विष्णुलोक प्रदान करने वाली है। तुंगभद्रा दस मुखी है एवं ब्रह्मलोक देने वाली है। सुवर्ण मुखरी के नौ मुख हैं। ब्रह्मलोक से लौटे जीव इसी नदी के तट पर जन्म लेते हैं। सरस्वती नदी, पंपा सरोवर, कन्याकुमारी अंतरीप तथा शुभकारक श्वेत नदी सभी पुण्य क्षेत्र हैं। इनके तट पर निवास करने से इंद्रलोक की प्राप्ति होती है। महानदी कावेरी परम पुण्यमयी है। इसके सत्ताईस मुख हैं। यह संपूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को देने वाली है। इसके तट ब्रह्मा, विष्णु का पद देने वाले हैं। कावेरी के जो तट शैव क्षेत्र के अंतर्गत हैं, वे अभीष्ट फल तथा शिवलोक प्रदान करने वाले हैं।

नैमिषारण्य तथा बदरिकाश्रम में सूर्य और बृहस्पति के मेष राशि में आने पर स्नान और पूजन करने से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। सिंह और कर्क राशि में सूर्य की संक्रांति होने पर सिंधु नदी में किया स्नान तथा केदार तीर्थ के जल का पान एवं स्नान ज्ञानदायक माना जाता है । बृहस्पति के सिंह राशि में स्थित होने पर भाद्रमास में गोदावरी के जल में स्नान करने से शिवलोक की प्राप्ति होती है, ऐसा स्वयं भगवान शिव ने कहा था। सूर्य और बृहस्पति के कन्या राशि में स्थित होने पर यमुना और सोनभद्र में स्नान से धर्मराज और गणेश लोक में महान भोग की प्राप्ति होती है, ऐसी महर्षियों की मान्यता है। सूर्य और बृहस्पति के तुला राशि में होने पर कावेरी नदी में स्नान करने से भगवान विष्णु के वचन की महिमा से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। मार्गशीर्ष माह में, सूर्य और बृहस्पति के वृश्चिक राशि में आने पर, नर्मदा में स्नान करने से विष्णु पद की प्राप्ति होती है। सूर्य और बृहस्पति के धनु राशि में होने पर सुवर्ण मुखरी नदी में किया स्नान शिवलोक प्रदान करने वाला है। मकर राशि में सूर्य और बृहस्पति के माघ मास में होने पर गंगाजी में किया गया स्नान शिवलोक प्रदान कराने वाला है । शिवलोक के पश्चात ब्रह्मा और विष्णु के स्थानों में सुख भोगकर अंत में मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति होती है। माघ मास में सूर्य के कुंभ राशि में होने पर फाल्गुन मास में गंगा तट पर किया श्राद्ध, पिण्डदान अथवा तिलोदक दान पिता और नाना, दोनों कुलों के पितरों की अनेकों पीढ़ियों का उद्धार करने वाला है। गंगा व कावेरी नदी का आश्रय लेकर तीर्थवास करने से पाप का नाश हो जाता है।

ताम्रपर्णी और वेगवती नदियां ब्रह्मलोक की प्राप्ति रूप फल देने वाली हैं। इनके तट पर स्वर्गदायक क्षेत्र हैं। इन नदियों के मध्य में बहुत से पुण्य क्षेत्र हैं। यहां निवास करने वाला मनुष्य अभीष्ट फल का भागी होता है। सदाचार, उत्तम वृत्ति तथा सद्भावना के साथ मन में दयाभाव रखते हुए विद्वान पुरुष को तीर्थ में निवास करना चाहिए अन्यथा उसे फल नहीं मिलता। पुण्य क्षेत्र में जीवन बिताने का निश्चय करने पर तथा वास करने पर पहले का सारा पाप तत्काल नष्ट हो जाएगा। क्योंकि पुण्य को ऐश्वर्यदायक कहा जाता है। हे ब्राह्मणो! तीर्थ में वास करने पर उत्पन्न पुण्य कायिक, वाचिक और मानसिक – सभी पापों का नाश कर देता है। तीर्थ में किया मानसिक पाप कई कल्पों तक पीछा नहीं छोड़ता, यह केवल ध्यान से ही नष्ट होता है। ‘वाचिक’ पाप जाप से तथा ‘कायिक’ पाप शरीर को सुखाने जैसे कठोर तप से नष्ट होता है। अतः सुख चाहने वाले पुरुष को देवताओं की पूजा करते हुए और ब्राह्मणों को दान देते हुए, पाप से बचकर ही तीर्थ में निवास करना चाहिए।