ब्रह्माजी बोले ;– हे नारद! तुम्हारे स्वर्गलोक जाने के पश्चात कुछ समय तक सबकुछ ऐसे ही चलता रहा। एक दिन मैना अपने पति हिमालय के पास गई और उन्हें प्रणाम कर उनसे कहने लगी
हे प्राणनाथ! उस दिन जब देवर्षि नारद हमारे यहां पधारे थे और पार्वती का हाथ देखकर उसके विषय में अनेक बातें बता गए थे, तब मैंने उनकी बातों पर ध्यान दिया था। अब पार्वती बड़ी हो रही है। मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप उसके विवाह के लिए सुयोग्य व सुंदर वर की खोज शुरू कर दें। जिसके साथ हमारी पुत्री पार्वती सुख से अपना जीवन व्यतीत कर सके। वह शुभ लक्षणों वाला तथा कुलीन होना चाहिए क्योंकि मुझे अपनी पुत्री अपने प्राणों से भी अधिक प्यारी है। मैं सिर्फ पुत्री का सुख चाहती हूं।
यह कहकर मैना की आंखों में आंसू आ गए और वे अपने पति के चरणों में गिर पड़ीं। तत्पश्चात हिमालय ने पत्नी मैना को प्रेमपूर्वक उठाया और उन्हें समझाने लगे।
वे बोले ;– हे देवी! तुम व्यर्थ की चिंता त्याग दो। मुनि नारद की बात कभी झूठ नहीं हो सकती। यदि तुम पार्वती को सुखी देखना चाहती हो तो उसे भगवान शिव की तपस्या के लिए प्रेरित करो। यदि शिवजी प्रसन्न हो गए तो वे स्वयं ही पार्वती का पाणिग्रहण कर लेंगे। तब सबकुछ शुभ ही होगा। सभी अनिष्ट और अशुभ लक्षणों का नाश होगा। भगवान शंकर सदा मंगलकारी हैं। इसलिए तुम पार्वती को शिवजी की कृपादृष्टि प्राप्त करने के लिए तपस्या करने की शिक्षा दो।
हिमालय की बात सुनकर मैना प्रसन्नतापूर्वक अपनी पुत्री पार्वती को तपस्या के लिए कहने उनके पास चली गई।
पार्वती के विवाह की चिंता और तपस्या की ओर प्रेरणा
कुछ समय बाद, एक दिन मैना ने अपने पति हिमालय के पास जाकर उनसे विनम्रतापूर्वक कहा, “हे प्राणनाथ! जब देवर्षि नारद हमारे घर आए थे और उन्होंने पार्वती के भविष्य के बारे में बताया था, तो मैंने उनकी बातों पर गहराई से विचार किया था। अब पार्वती बड़ी हो रही है, और मुझे आपकी मदद चाहिए। मेरी आपसे यह प्रार्थना है कि आप हमारे लिए एक योग्य और सुंदर वर की खोज शुरू करें, ताकि हमारी पुत्री सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सके। वह वर शुभ लक्षणों वाला और कुलीन होना चाहिए, क्योंकि मुझे पार्वती अपनी जान से भी प्रिय है। मैं उसकी खुशी के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हूं।”
मैना के शब्दों में गहरी चिंता और मातृत्व की भावना थी, और उनकी आंखों में आंसू आ गए। वे अपने पति के चरणों में गिर पड़ीं।
हिमालय की सलाह और शिव की तपस्या की दिशा
हिमालय ने अपनी पत्नी मैना को प्रेमपूर्वक उठाया और उन्हें शांत करते हुए कहा, “हे देवी! तुम्हें व्यर्थ की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। मुनि नारद की भविष्यवाणी कभी गलत नहीं हो सकती। यदि तुम चाहती हो कि पार्वती सुखी रहे, तो उसे भगवान शिव की तपस्या करने के लिए प्रेरित करो। यदि शिवजी प्रसन्न हो गए, तो वे स्वयं ही पार्वती का विवाह करेंगे। तब सभी अशुभ लक्षणों का नाश होगा और सबकुछ शुभ ही होगा। भगवान शिव सदा मंगलकारी हैं। इसलिए तुम पार्वती को शिवजी की कृपादृष्टि प्राप्त करने के लिए तपस्या करने की शिक्षा दो।”
हिमालय की यह बात सुनकर मैना ने दृढ़ निश्चय किया कि वह अपनी पुत्री पार्वती को तपस्या के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेंगी।
मैना का पार्वती को तपस्या के लिए प्रेरित करना
मैना ने हिमालय की बात मानी और वह अपनी पुत्री पार्वती के पास गईं। उन्होंने पार्वती को भगवान शिव की तपस्या करने की सलाह दी, ताकि वह शिवजी की कृपादृष्टि प्राप्त कर सकें और उनका विवाह भगवान शिव से हो सके। यह मार्ग पार्वती के लिए एक कठिन तपस्या का था, लेकिन उन्हें विश्वास था कि अगर शिवजी की कृपा प्राप्त हो गई तो वह सबकुछ पा सकती हैं।
इस प्रकार, पार्वती के जीवन का एक नया अध्याय शुरू होने वाला था, जिसमें तपस्या और भक्ति के माध्यम से भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना था।