ब्रह्माजी बोले ;– हे मुनिश्रेष्ठ नारद! जब मैना पार्वती के पास पहुंची तो उन्हें देखकर सोचने लगीं कि मेरी पुत्री तो कोमल और नाजुक है। यह सदैव राजसी ठाठ-बाट में रही है। दुख और कष्टों को सहना तो दूर की बात है इनके बारे में भी यह सर्वथा अनजान है। पार्वती को उन्होंने बड़े ही लाड़ और प्यार से पाला है। तब कैसे मैं अपनी प्रिय पुत्री को कठोर तपस्या करने के लिए प्रेरित कर सकती हूं? यही सब सोचकर मैना अपनी पुत्री से तपस्या के लिए कुछ नहीं बोल सकीं। तब अपनी माता के चिंतित चेहरे को देखकर साक्षात जगदंबा का अवतार धारण करने वाली देवी पार्वती यह जान गईं कि उनकी माताजी क्या कहना चाहती हैं? तब सबकुछ जानने वाली देवी भगवती का साक्षात स्वरूप पार्वती बोलीं- हे माता! आप यहां कब आईं? आप बैठिए। माता, पिछली रात्रि के ब्रह्ममुहूर्त में मैंने एक स्वप्न देखा है। उसके विषय में मैं आपको बताती हूं। मेरे सपने में एक दयालु और तपस्वी ब्राह्मण आए। जब मैंने उन्हें हाथ जोड़कर नमस्कार किया तो वे मुस्कुराते हुए बोले कि तुम अवश्य ही भगवान शिव शंकर की प्राणवल्लभा बनोगी। इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रेमपूर्वक तपस्या करो ।
यह सुनकर मैना ने अपनी पुत्री के सिर पर प्रेम से हाथ फेरा और अपने पति हिमालय को वहां बुलाया। हिमालय के आने पर मैना ने पार्वती के सपने के बारे में उनको बताया। तब उनके मुख से पुत्री के सपने के विषय में जानकर हिमालय बहुत प्रसन्न हुए।
तब वे अपनी पत्नी से बोले ;– प्रिय मैना! मैंने भी पिछली रात को एक सपना देखा था। मैंने अपने सपने में एक बड़े उत्तम तपस्वी को देखा। वे नारद मुनि द्वारा बताए गए सभी लक्षणों से युक्त थे। वे उत्तम तपस्वी मेरे नगर में तपस्या करने के लिए आए थे। उन्हें देखकर मुझे बहुत खुशी हुई । मैं अपनी पुत्री पार्वती को साथ लेकर उनके दर्शनों के लिए उनके पास पहुंचा। तब मुझे ज्ञात हुआ कि वे नारद जी के बताए हुए वर भगवान शिव ही हैं। तब मैंने पार्वती को उनकी सेवा करने का उपदेश दिया परंतु उन्होंने मेरी बात नहीं मानी। तभी वहां सांख्य और वेदांत पर विवाद छिड़ गया। तत्पश्चात उनकी आज्ञा पाकर पार्वती वहीं रहकर भक्तिपूर्वक उनकी सेवा करने लगीं। हे प्रिये! यही मेरा सपना था जिसे देखकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई। मैं सोचता हूं कि हमें कुछ समय तक इस सपने के सच होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। ऐसा कहकर हिमालय और मैना उस उत्तम सपने के सच होने की प्रतीक्षा करने लगे।
पार्वती के तपस्या के लिए प्रेरणा और माता-पिता का निर्णय
जब मैना ने अपनी पुत्री पार्वती को देखा, तो वे यह सोचने लगीं कि उनकी पुत्री तो अत्यंत कोमल और नाजुक है। वह हमेशा राजसी ठाठ-बाट में पली-बढ़ी है, और उसे दुख या कष्ट सहने का कोई अनुभव नहीं है। उन्होंने पार्वती को बड़े प्यार और लाड़ से पाला है, और अब वे कैसे अपनी प्रिय पुत्री को तपस्या के लिए प्रेरित कर सकती थीं? यह विचार उनके मन में घूम रहे थे।
पार्वती का साक्षात स्वरूप और उसका निर्णय
मैना के चिंतित चेहरे को देखकर, जो अपनी पुत्री को तपस्या के लिए प्रेरित करने में संकोच कर रही थी, पार्वती ने यह समझ लिया कि उनकी माँ क्या कहना चाहती हैं। तब पार्वती ने साक्षात देवी भगवती का रूप धारण किया और अपनी माताजी से बोलीं, “हे माता! आप यहां कब आईं? आप बैठिए। माता, मुझे पिछले ब्रह्ममुहूर्त में एक स्वप्न आया था, जिसे मैं आपको बताना चाहती हूं।”
पार्वती ने स्वप्न के बारे में विस्तार से बताया: “मेरे स्वप्न में एक दयालु और तपस्वी ब्राह्मण आए। जब मैंने उन्हें हाथ जोड़कर नमस्कार किया, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि तुम निश्चित रूप से भगवान शिव शंकर की प्राणवल्लभा बनोगी, इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रेमपूर्वक तपस्या करो।”
मैना और हिमालय का प्रतिक्रिया
यह सुनकर, मैना ने प्रेम से अपनी पुत्री के सिर पर हाथ फेरा और अपने पति हिमालय को बुलाया। हिमालय के आने पर, मैना ने पार्वती के स्वप्न के बारे में उन्हें बताया। हिमालय ने जब अपनी पुत्री के स्वप्न के बारे में सुना, तो वे अत्यंत प्रसन्न हुए।
हिमालय ने कहा, “प्रिय मैना! मैंने भी पिछली रात एक सपना देखा था। उस सपने में मैंने एक उत्तम तपस्वी को देखा, जो नारद मुनि द्वारा बताए गए सभी लक्षणों से युक्त थे। वे मेरे नगर में तपस्या करने के लिए आए थे। उन्हें देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। मैंने अपनी पुत्री पार्वती को उनके दर्शन के लिए उनके पास भेजा, और तब मुझे पता चला कि वे वही भगवान शिव हैं।”
हिमालय ने कहा, “मैंने पार्वती को उनकी सेवा करने का उपदेश दिया, लेकिन उसने मेरी बात नहीं मानी। तब वहां सांख्य और वेदांत पर विवाद छिड़ गया। अंततः पार्वती ने उनकी आज्ञा लेकर भक्तिपूर्वक सेवा करना शुरू किया। यह सब मैंने स्वप्न में देखा। और अब मैं सोचता हूं कि हमें इस सपने के सच होने का इंतजार करना चाहिए।”
निर्णय
हिमालय और मैना अब इस उत्तम सपने के सच होने की प्रतीक्षा करने लगे, यह मानते हुए कि पार्वती की तपस्या और भगवान शिव की कृपा के साथ उनका जीवन सुखमय और फलदायी होगा।