पार्वती को सेवा में रखने के लिए हिमालय का शिव को मनाना – बारहवां अध्याय

ब्रह्माजी बोले ;– हे मुनि नारद! तत्पश्चात हिमालय अपनी पुत्री पार्वती को साथ लेकर शिवजी के पास गए। वहां जाकर उन्होंने योग साधना में डूबे त्रिलोकीनाथ भगवान शिव को दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया तथा इस प्रकार प्रार्थना करने लगे- भगवन्, मेरी पुत्री पार्वती आपकी सेवा करने की बहुत उत्सुक है। इसलिए आपकी आराधना करने के लिए मैं इसे अपने साथ यहां लाया हूं। हे प्रभु! यह अपनी दो सखियों के साथ आपकी सेवा में रहेगी। आप मुझ पर कृपा करके इसे अपनी सेवा का अवसर प्रदान करिए। तब भगवान शिव ने उस परम सुंदरी हिमालय कन्या पार्वती को देखकर अपनी आखें बंद कर लीं और पुनः परमब्रह्म के स्वरूप का ध्यान करने में निमग्न हो गए। उस समय सर्वेश्वर एवं सर्वव्यापी शिवजी तपस्या करने लगे। यह देखकर हिमालय इस सोच में डूब गए कि भगवान शंकर उनकी तपस्या स्वीकार करेंगे या नहीं?

तब एक बार पुनः हिमालय ने दोनों हाथ जोड़कर शिवजी के चरणों में प्रणाम किया और बोले – हे देवाधिदेव महादेव! हे भोलेनाथ! शिवशंकर ! मैं दोनों हाथ जोड़े आपकी शरण में आया हूं। कृपया आंखें खोलकर मेरी ओर देखिए भगवन्! आप सभी विपत्तियों को दूर करते हैं। हे भक्तवत्सल ! मैं रोज अपनी पुत्री के साथ आपके दर्शनों के लिए यहां आऊंगा। कृपया मुझे आज्ञा प्रदान कीजिए

हिमालय के वचनों को सुनकर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव ने अपने नेत्र खोल दिए और बोले—हे गिरिराज हिमालय ! आप अपनी कन्या को घर पर ही छोड़कर मेरे दर्शनों को आ सकते हैं, नहीं तो आपको मेरा भी दर्शन नहीं होगा। महेश्वर की ऐसी बात सुनकर हिमालय ने अपना मस्तक झुका दिया और शिवजी से बोले – हे प्रभु! हे महादेव जी! कृपया यह बताइए कि मैं अपनी पुत्री के साथ आपके दर्शनों के लिए क्यों नहीं आ सकता? क्या मेरी पुत्री आपकी सेवा के योग्य नहीं है? फिर इसे न लेकर आने का कारण मुझे समझ में नहीं आता

हिमालय की बात सुनकर शिवजी हंसने लगे और बोले ;- हे गिरिराज! आपकी पुत्री सुंदर, चंद्रमुखी और अनेक शुभ लक्षणों से संपन्न है। इसलिए आपको इसे मेरे पास नहीं लाना चाहिए क्योंकि विद्वानों ने नारी को माया रूपिणी कहा है। युवतियां ही तपस्वियों की तपस्या में विघ्न डालती हैं। मैं योगी हूं। सदैव तपस्या में लीन रहता हूं और माया-मोह से दूर रहता हूं। इसलिए मुझे स्त्री से दूर ही रहना चाहिए । हे हिमालय आप धर्म के ज्ञानी और वेदों की रीतियां जानते हैं। स्त्री की निकटता से मन में विषय वासना उत्पन्न हो जाती है और वैराग्य नष्ट हो जाता है जिससे तपस्वी और योगी का ध्यान नष्ट हो जाता है। इसलिए तपस्वी को स्त्रियों का साथ नहीं करना चाहिए।

इस प्रकार कहकर भगवान शिव चुप हो गए हिमालय शिवजी के ऐसे वचनों को सुनकर चकित और व्याकुल हो गए। उन्हें चुप देखकर पार्वती देवी असमंजस में पड़ गईं।

भगवान शिव का तपस्वी जीवन और पार्वती की सेवा

हिमालय, अपनी पुत्री पार्वती के साथ, भगवान शिव के पास पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान शिव को योग साधना में डूबे हुए पाया। भगवान शिव के चरणों में प्रणाम कर, हिमालय ने प्रार्थना की: “भगवान, मेरी पुत्री पार्वती आपकी सेवा करने के लिए अत्यंत उत्सुक है। इसलिए मैंने इसे अपने साथ यहां लाया है, ताकि यह आपकी आराधना कर सके। कृपया इसे अपनी सेवा का अवसर प्रदान करें।”

भगवान शिव ने पार्वती को देखा और फिर अपनी आँखें बंद कर लीं, ध्यान में लीन हो गए। उन्होंने अपनी तपस्या को जारी रखा, और हिमालय, यह सोचते हुए कि क्या भगवान शिव उनकी प्रार्थना स्वीकार करेंगे, शांति से खड़े रहे।

भगवान शिव का उत्तर

हिमालय ने एक बार फिर भगवान शिव के चरणों में प्रणाम किया और कहा: “हे महादेव! मैं आपकी शरण में आया हूँ। कृपया अपनी आँखें खोलकर मेरी ओर देखें और मुझे आज्ञा दें। मैं रोज अपनी पुत्री के साथ आपके दर्शन के लिए आऊँगा।”

भगवान शिव ने अपनी आँखें खोलीं और उत्तर दिया: “हे गिरिराज हिमालय! आप अपनी कन्या को घर पर ही छोड़कर मेरे दर्शन के लिए आ सकते हैं। यदि आप इसे साथ लाते हैं, तो मुझे दर्शन नहीं मिलेंगे।”

हिमालय भगवान शिव के वचन सुनकर चकित हो गए और बोले: “भगवान! क्या मेरी पुत्री पार्वती आपकी सेवा के योग्य नहीं है? फिर इसे न लेकर आने का कारण मुझे समझ में नहीं आता।”

भगवान शिव की व्याख्या

भगवान शिव हंसते हुए बोले: “हे गिरिराज! आपकी पुत्री सुंदर, चंद्रमुखी, और शुभ लक्षणों से संपन्न है। लेकिन, विद्वानों ने स्त्री को माया रूपिणी कहा है। युवतियां तपस्वियों की तपस्या में विघ्न डालती हैं। मैं एक योगी हूँ, तपस्या में लीन रहता हूँ और माया-मोह से दूर रहता हूँ। इसलिए मुझे स्त्रियों से दूर ही रहना चाहिए।”

भगवान शिव ने कहा, “आप धर्म के ज्ञानी हैं और वेदों की रीतियाँ जानते हैं। स्त्री की निकटता से मन में विषय वासना उत्पन्न हो जाती है, जिससे तपस्वी का ध्यान भंग हो जाता है। इसलिए तपस्वी को स्त्री से दूर रहना चाहिए।”

हिमालय की प्रतिक्रिया

हिमालय भगवान शिव के वचनों को सुनकर चकित और व्याकुल हो गए। वे बिल्कुल असमंजस में पड़ गए कि भगवान शिव ने उनकी पुत्री को सेवा के लिए स्वीकार क्यों नहीं किया। पार्वती देवी भी इस स्थिति को देखकर चिंता में पड़ गईं।

निष्कर्ष

यह घटना भगवान शिव के जीवन के एक महत्वपूर्ण पहलू को दर्शाती है – उनका तपस्वी जीवन, जिसमें वे माया और मोह से दूर रहते हुए ध्यान और साधना में निरंतर लीन रहते हैं। भगवान शिव का यह वचन यह भी बताता है कि तपस्वी जीवन में वैराग्य और संयम की अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इस जीवन में किसी प्रकार की सांसारिक बंधन से बचना आवश्यक है।