रह्माजी बोले ;– हे मुनि नारद! कामदेव अपनी पत्नी रति और वसंत ऋतु को अपने साथ लेकर हिमालय पर्वत पर पहुंचे जहां त्रिलोकीनाथ भगवान शिव शंकर तपस्या में मग्न बैठे थे। कामदेव ने शिवजी पर अपने बाण चलाए। इन बाणों के प्रभाव से शिवजी के हृदय में देवी पार्वती के प्रति आकर्षण होने लगा तथा उनका ध्यान तपस्या से हटने लगा। ऐसी स्थिति देख महायोगी शिव अत्यंत आश्चर्यचकित हुए और मन में सोचने लगे कि मैं क्यों अपना ध्यान एकाग्रचित्त नहीं कर पा रहा हूं? मेरी तपस्या में यह कैसा विघ्न आ रहा है?
अपने मन में यह सोचकर भगवान शिव इधर-उधर चारों ओर देखने लगे। जब महादेव जी की दृष्टि दिशाओं पर पड़ी तो वे भी डर के मारे कांपने लगीं। तभी भगवान शिव की दृष्टि सामने छिपे हुए कामदेव पर पड़ी। उस समय काम पुनः बाण छोड़ने वाले थे। उन्हें देखते ही शिवजी को बहुत क्रोध आ गया। इतने में काम ने अपना बाण छोड़ दिया परंतु क्रोधित हुए शिवजी पर उसका कोई प्रभाव नहीं हो सका। वह बाण शिवजी के पास आते ही शांत हो गया। तब अपने बाण को बेकार हुआ देख कामदेव डर से कांपने लगे और इंद्र आदि देवताओं को याद करने लगे। सभी देवतागण वहां आ पहुंचे और महादेव जी को प्रणाम करके उनकी भक्तिभाव से स्तुति करने लगे।
जब देवतागण उनकी स्तुति कर ही रहे थे तभी भगवान शिव के मस्तक के बीचोंबीच स्थित तीसरा नेत्र खुला और उसमें से आग निकलने लगी। वह आग आकाश में ऊपर उड़ी और अगले ही पल पृथ्वी पर गिर पड़ी। फिर चारों ओर गोले में घूमने लगी। इससे पूर्व कि इंद्रदेव या अन्य देवता भगवान शिव से क्षमायाचना कर पाते, उस आग ने वहां खड़े कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया। कामदेव के मर जाने से देवताओं को बड़ी निराशा व दुख हुआ। वे यह देखकर बड़े व्याकुल हो गए कि काम उनकी वजह से ही शिवजी के क्रोध का भागी बना।
कामदेव के अग्नि में जलने का दृश्य देखकर वहां उपस्थित देवी पार्वती और उनकी सखियां भी अत्यंत भयभीत हो गईं। उनका शरीर जड़ हो गया, जैसे शरीर का खून सफेद हो गया हो। पार्वती अपनी सखियों के साथ तुरंत अपने घर की ओर चली गईं। कामदेव की पत्नी रति तो मूर्च्छित होकर गिर पड़ी। मूर्च्छा टूटने पर वह जोर-जोर से विलाप करने लगी अब मैं क्या करूं? कहां जाऊं? देवताओं ने मेरे साथ बहुत बुरा किया, जो मेरे पति को यहां भेजकर शिवजी के क्रोध की अग्नि में भस्म करा दिया। हे स्वामी! हे प्राणप्रिय ! ये आपको क्या हो गया? इस प्रकार देवी रति रोती-बिलखती हुई अपने सिर के बालों को जोरों से नोचने लगी। उनके करुण क्रंदन को सुनकर समस्त चराचर जीव भी अत्यंत दुखी हो गए। तत्पश्चात इंद्र आदि देवता वहां देवी रति को धैर्य देते हुए उन्हें समझाने लगे।
देवता बोले ;– हे देवी! आप अपने पति कामदेव के शरीर की भस्म का थोड़ा सा अंश अपने पास रख लो और अनावश्यक भय से मुक्त हो जाओ। त्रिलोकीनाथ करुणानिधान शिवजी अवश्य ही कामदेव को पुनः जीवित कर देंगे। तब तुम्हें पुनः कामदेव की प्राप्ति हो जाएगी। वैसे भी संसार में सबकुछ पूर्व निश्चित कर्मों के अनुसार ही होता है। अतः आप दुख को त्याग दें। भगवान शिव अवश्य ही कृपा करेंगे।
इस प्रकार देवी रति को अनेक आश्वासन देकर सभी देवता शिवजी के पास गए और उन्हें प्रणाम करते हुए कहने लगे – हे भक्तवत्सल ! हे त्रिलोकीनाथ। भगवान आप कामदेव के ऊपर किए अपने क्रोध पर पुनः विचार अवश्य करिए। कामदेव यह कार्य अपने लिए नहीं कर रहे थे। इसमें उनका निजी स्वार्थ कतई नहीं था। हे भगवन्! हम सभी तारकासुर के सताए हुए थे। उसने हमारा राज्य छीनकर हमें स्वर्ग से निष्कासित कर दिया था। इसलिए तारकासुर का विनाश करने के लिए ही कामदेव ने यह कार्य किया था। आप कृपा करके अपने क्रोध को शांत करें और रोती-बिलखती कामदेव की पत्नी रति को समझाने की कृपा करें। उसे सांत्वना दें। अन्यथा हम यही समझेंगे कि आप हम सभी देवताओं और मनुष्यों का संहार करना चाहते हैं । हे प्रभु! कृपा कर रति का शोक दूर करें।
तब सदाशिव बोले ;- हे देवगणो! हे ऋषियो! मेरे क्रोध के कारण मैंने कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया है। जो कुछ हो गया है उसको अब बदला नहीं जा सकता, परंतु कामदेव का पुनर्जन्म अवश्य होगा। जब विष्णु भगवान श्रीकृष्ण का अवतार लेंगे और रुक्मणी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारेंगे, तब देवी रुक्मणी के गर्भ से श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में कामदेव जन्म लेंगे। उस समय कामदेव प्रद्युम्न नाम से जाने जाएंगे। प्रद्युम्न के जन्म के तुरंत बाद ही शंबर नाम का असुर उसका अपहरण कर लेगा और उसे समुद्र में फेंक देगा। रति तब तक तुम्हें शंबर के नगर में ही निवास करना होगा। वहीं पर तुम्हें अपने पति कामदेव की प्रद्युम्न के रूप में प्राप्ति होगी। वहीं पर प्रद्युम्न के द्वारा शंबरासुर का वध होगा।
भगवान शिव की बात सुनकर देवताओं ने प्रसन्नतापूर्वक उन्हें प्रणाम किया और बोले ;- हे देवाधिदेव महादेव! करुणानिधान! आप कामदेव को जीवन दान दें और कामदेव के पुनर्जन्म तक देवी रति के प्राणों की रक्षा करें।
देवताओं की यह बात सुनकर करुणानिधान भगवान शिव ने कहा कि मैं कामदेव को अवश्य ही जीवित कर दूंगा। वह मेरा गण होकर आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करेगा। अब तुम सब निश्चिंत होकर अपने-अपने धाम को जाओ। ऐसा कहकर महादेवजी भी वहां से अंतर्धान हो गए। उनके कहे वचनों से देवताओं की सभी शंकाएं दूर हो गईं। तत्पश्चात देवताओं ने कामदेव की पत्नी रति को अनेकों आश्वासन दिए और फिर अपने धाम को चले गए। देवी रति भी शिव आज्ञा के अनुसार शंबर नगर को चली गई और वहां पहुंचकर अपने प्रियतम के प्रकट होने की प्रतीक्षा करने लगीं।
कामदेव का शिवजी के क्रोध में भस्म होना और रति का विलाप
ब्रह्माजी ने कहा, “हे मुनि नारद! कामदेव अपनी पत्नी रति और वसंत ऋतु के साथ हिमालय पर्वत पर पहुंचे, जहां भगवान शिव तपस्या में लीन थे। कामदेव ने शिवजी पर अपने बाण चलाए। इन बाणों के प्रभाव से शिवजी के हृदय में देवी पार्वती के प्रति आकर्षण उत्पन्न होने लगा और उनका ध्यान तपस्या से हटने लगा।”
शिवजी का ध्यान विचलित होना और क्रोध का प्रकट होना
“शिवजी ने देखा कि उनका ध्यान क्यों नहीं एकाग्र हो पा रहा है। जब उन्होंने चारों ओर देखा, तो उन्होंने कामदेव को छिपते हुए देखा। शिवजी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। इससे एक तेज अग्नि का प्रक्षेपण हुआ, जो तुरंत ही आकाश से पृथ्वी पर गिरकर चारों ओर घूमने लगी। इससे पहले कि देवता भगवान शिव से क्षमायाचना कर पाते, वह आग कामदेव को जलाकर भस्म कर दी।”
“कामदेव के भस्म होने से देवताओं में हाहाकार मच गया। रति, कामदेव की पत्नी, यह दृश्य देखकर बहुत दुखी हुई। वह मूर्च्छित हो गई और जब वह होश में आई, तो उसने जोर-जोर से विलाप करते हुए कहा, ‘हे भगवान! मेरे प्रियतम को क्या हो गया? देवताओं ने मुझे क्यों भेजा था? मेरे पति को शिवजी के क्रोध की अग्नि में क्यों भस्म किया गया?'”
देवताओं का रति को सांत्वना देना
“देवताओं ने रति को सांत्वना दी और कहा, ‘हे देवी! आप दुख न करें, भगवान शिव करुणावान हैं। वह कामदेव को पुनः जीवित करेंगे। आपको बस थोड़ी सी धैर्य रखना होगा।’ देवताओं ने रति को आश्वासन दिया कि भगवान शिव उसे सांत्वना देंगे और कामदेव को पुनः जीवित करेंगे।”
भगवान शिव का निर्णय
“तब भगवान शिव ने कहा, ‘हे देवताओं! मैंने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया है। जो कुछ हुआ, उसे अब बदला नहीं जा सकता, लेकिन कामदेव का पुनर्जन्म होगा। जब भगवान श्रीकृष्ण का अवतार होगा, तब वह कामदेव के रूप में प्रद्युम्न के नाम से जन्म लेंगे। इसके बाद प्रद्युम्न शंबर नामक असुर से अपहृत हो जाएंगे, और रति को शंबर के नगर में रहना होगा। वहीं प्रद्युम्न शंबर का वध करेगा।'”
“भगवान शिव ने देवताओं से कहा, ‘कामदेव का पुनर्जन्म अवश्य होगा। वह मेरा गण बनकर आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करेगा। तुम सब अब निश्चिंत होकर अपने-अपने धाम को लौट जाओ।'”
देवताओं का धन्यवाद और रति का शंबर नगर जाना
“देवताओं ने भगवान शिव का धन्यवाद किया और उन्हें प्रणाम किया। इसके बाद वे अपने-अपने स्थान को लौट गए। रति भी भगवान शिव की आज्ञा से शंबर नगर चली गई और वहां अपने प्रियतम के पुनर्जन्म की प्रतीक्षा करने लगीं।”
निष्कर्ष
भगवान शिव ने कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया, लेकिन वह अपने क्रोध में भी दयालु रहे और कामदेव को पुनः जीवन देने का वचन दिया। रति को धैर्य रखने का आश्वासन दिया गया, और देवताओं ने भगवान शिव के निर्णय को स्वीकार किया। यह घटना शिवजी के करुणामय स्वरूप को और भी उजागर करती है।