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भगवान शिव भी न बच पाए शनि देव की वक्र दृष्टि से

एक बार स्वयं भगवान शिव भी शनि देव की वक्र दृष्टि के चपेट में आ गए थे और उनकी वक्र दृष्टि से बचने की कोशिश भी अंत मे नाकाम ही हुई।

भगवान भोलेनाथ पर शनि देव की वक्र दृष्टि को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार एक बार शनि देव अपने आराध्य भोलेनाथ के दर्शनों के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचे थे। उन्होंने भगवान भोले को प्रणाम कर पहले उनसे आशीर्वाद लिया फिर शनि देव ने भगवान शंकर को विनम्र भाव से बताया कि कल आपकी राशि में मेरी वक्र दृष्टि पड़ने वाली है। इस पर भगवान महादेव बहुत ही आश्चर्यचकित हुए।

भगवान शिव ने शनि देव से पूछा कि वह उनकी राशि में कितने समय के लिए रहेंगे और उनकी वक्र दृष्टि का प्रभाव कैसा होगा। शनि देव ने उन्हें विस्तार से अपनी वक्र दृष्टि के समय और प्रभाव के बारे में बताया। उन्होंने भगवान भोलेनाथ को बताया कि सवा प्रहर तक वक्र दृष्टि उनके ऊपर रहेगी। तब महादेव ने शनि देव की दृष्टि से बचने के लिए एक युक्ति लगाई और अगले दिन शनि देव के कैलाश पहुंचने से पहले ही वह पृथ्वी लोक पर आ गए।

इस दौरान उन्होंने सोचा कि अगर शनि देव उन्हे ढूंढते हुए धरती पर या गए तो वो उन्हे पहचान लेंगे। इसलिए भगवान शिव ने वक्र दृष्टि से बचने के लिए हाथी का रूप धरण कर लिया। सूर्यास्त के बाद जब वक्र दृष्टि का प्रहर बीत गया तो भगवान भोलेनाथ दोबारा अपने वास्तविक रूप में आ गए और प्रसन्न होकर कैलाश पर्वत पर लौट आए ।

जैसे ही भगवान शिव कैलाश पर आए उन्हें वहां शनि देव पूर्व से ही उपस्थित मिले। उन्होंने शनि देव को देखते ही उनकी दृष्टि से बचने की बात कह डाली। उन्होंने बोला कि शनिदेव आपकी वक्र दृष्टि का असर मुझ पर नहीं हो पाया और मैं तो बहुत आसानी से इस से बच गया।

यह सुनकर शनि देव ने हाथ जोड़कर भगवान भोलेनाथ से कहा कि प्रभु क्षमा करें लेकिन मेरे वक्र दृष्टि के कारण ही आपको कैलाश पर्वत छोड़कर धरती पर जाना पद और अपना दिव्य रूप छोड़कर कर एक पशु रूप धारण करना पड़ा।

यह सुनकर भगवान शिव मुस्कुरा दिए और अपने शिष्य शनि देव की न्यायप्रियता को देखकर काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने शनि देव को ह्रदय से लगाया और आशीर्वाद दिया।