You are currently viewing बिंदुग का पिशाच योनि से उद्धार – पांचवां अध्याय

बिंदुग का पिशाच योनि से उद्धार – पांचवां अध्याय

सूत जी बोले- शौनक ! एक दिन चंचुला आनंद में मग्न उमा देवी के पास गई और दोनों हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगी।
चंचुला बोली – हे गिरिराजनंदिनी ! स्कंदमाता, उमा, आप सभी मनुष्यों एवं देवताओं द्वारा पूज्य तथा समस्त सुखों को देने वाली हैं। आप शंभुप्रिया हैं। आप ही सगुणा और निर्गुणा हैं। हे सच्चिदानंदस्वरूपिणी ! आप ही प्रकृति की पोषक हैं। हे माता! आप ही संसार की सृष्टि, पालन और संहार करने वाली हैं। आप ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उत्तम प्रतिष्ठा देने वाली परम शक्ति हैं।
सूत जी कहते हैं— शौनक ! सद्गति प्राप्त चंचुला इस प्रकार देवी की स्तुति कर शांत हो गई। उसकी आंखों में प्रेम के आंसू उमड़ आए। तब शंकरप्रिया भक्तवत्सला उमा देवी ने बड़े प्रेम से चंचुला को चुप कराते हुए कहा- सखी चंचुला ! मैं तुम्हारी स्तुति से प्रसन्न हूं। बोलो, क्या वर मांगती हो?
चंचुला बोली – हे गिरिराज कुमारी । मेरे पति बिंदुग इस समय कहां हैं? उनकी कैसी गति हुई है? मुझे बताइए और कुछ ऐसा उपाय कीजिए, ताकि हम फिर से मिल सकें। हे महादेवी! मेरे पति एक शूद्र जाति वेश्या के प्रति आसक्त थे और पाप में ही डूबे रहते थे।
गिरिजा बोलीं- बेटी! तुम्हारा पति बिंदुग बड़ा पापी था । उसका अंत बड़ा भयानक हुआ। वेश्या का उपभोग करने के कारण वह मूर्ख नरक में अनेक वर्षों तक अनेक प्रकार के दुख भोगकर अब शेष पाप को भोगने के लिए विंध्यपर्वत पर पिशाच की योनि में रह रहा है। वह दुष्ट वहीं वायु पीकर रहता है और सब प्रकार के कष्ट सहता है।
सूत जी कहते हैं – शौनक ! गौरी देवी की यह बात सुनकर चंचुला अत्यंत दुखी हो गई । फिर मन को किसी तरह स्थिर करती हुई दुखी हृदय से मां गौरी से उसने एक बार फिर पूछा।
हे महादेवी! मुझ पर कृपा कीजिए और मेरे पापी पति का अब उद्धार कर दीजिए | कृपा करके मुझे वह उपाय बताइए जिससे मेरे पति को उत्तम गति प्राप्त हो सके।
गौरी देवी ने कहा – यदि तुम्हारा पति बिंदुग शिव पुराण की पुण्यमयी उत्तम कथा सुने तो वह इस दुर्गति को पार करके उत्तम गति का भागी हो सकता है।
अमृत के समान मधुर गौरी देवी का यह वचन सुनकर चंचुला ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर उन्हें बारंबार प्रणाम किया तथा प्रार्थना की कि मेरे पति को शिव पुराण सुनाने की व्यवस्था कीजिए ।
ब्राह्मण पत्नी चंचुला के बार-बार प्रार्थना करने पर शिवप्रिया गौरी देवी ने भगवान शिव की महिमा का गान करने वाले गंधर्वराज तुम्बुरो को बुलाकर कहा- तुम्बुरो ! तुम्हारी भगवान शिव में प्रीति है । तुम मेरे मन की सभी बातें जानकर मेरे कार्यों को सिद्ध करते हो। तुम मेरी
इस सखी के साथ विंध्य पर जाओ। वहां एक महाघोर और भयंकर पिशाच रहता है। पूर्व जन्म में वह पिशाच बिंदुग नामक ब्राह्मण मेरी इस सखी चंचुला का पति था। वह वेश्यागामी हो गया। उसने स्नान-संध्या आदि नित्यकर्म छोड़ दिए। क्रोध के कारण उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई। दुर्जनों से उसकी मित्रता तथा सज्जनों से द्वेष बढ़ गया था। वह अस्त्र-शस्त्र से हिंसा करता, लोगों को सताता और उनके घरों में आग लगा देता था । चाण्डालों से दोस्ती करता व रोज वेश्या के पास जाता था। पत्नी को त्यागकर दुष्ट लोगों से दोस्ती कर उन्हीं के संपर्क में रहता था। वह मृत्यु तक दुराचार में फंसा रहा। मृत्यु के बाद उसे पापियों के भोग स्थान यमपुर ले जाया गया। वहां घोर नरकों को सहकर इस समय वह विंध्य पर्वत पर पिशाच बनकर रह रहा है और पापों का फल भोग रहा है। तुम उसके सामने परम पुण्यमयी पापों का नाश करने वाली शिव पुराण की दिव्य कथा का प्रवचन करो। इस कथा को सुनने से उसका हृदय सभी पापों से मुक्त होकर शुद्ध हो जाएगा और वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाएगा। दुर्गति से मुक्त होने पर उस बिंदुग नामक पिशाच को विमान पर बिठाकर तुम भगवान शिव के पास ले आना।
सूत जी कहते हैं— शौनक ! मां उमा का आदेश पाकर गंधर्वराज तुम्बुरो प्रसन्नतापूर्वक अपने भाग्य की सराहना करते हुए चंचुला को साथ लेकर विमान से पिशाच के निवास स्थान विंध्यपर्वत गया। वहां पहुंचकर उसने उस विकराल आकृति वाले पिशाच को देखा। उसका शरीर विशाल था। उसकी ठोढ़ी बड़ी थी। वह कभी हंसता, कभी रोता और कभी उछलता था। महाबली तुम्बुरो ने बिंदुग नामक पिशाच को पाशों से बांध लिया। उसके पश्चात तुम्बुरो ने शिव पुराण की कथा बांचने के लिए स्थान तलाश कर मंडप की रचना की।
शीघ्र ही इस बात का पता लोगों को चल गया कि एक पिशाच के उद्धार हेतु देवी पार्वती की आज्ञा से तुम्बुरो शिव पुराण की अमृत कथा सुनाने विंध्यपर्वत पर आया है।
उस कथा को सुनने के लोभ से बहुत से देवर्षि वहां पहुंच गए। सभी को आदरपूर्वक स्थान दिया गया । पिशाच बिंदुग को पाशों में बांधकर आसन पर बिठाया गया और तब तुम्बुरो ने परम उत्तम शिव पुराण की अमृत कथा का गान शुरू किया। उसने पहली विद्येश्वर संहिता से लेकर सातवीं वायुसंहिता तक शिव पुराण की कथा का स्पष्ट वर्णन किया ।
सातों संहिताओं सहित शिव पुराण को सुनकर सभी श्रोता कृतार्थ हो गए। परम पुण्यमय शिव
पुराण को सुनकर पिशाच सभी पापों से मुक्त हो गया और उसने पिशाच शरीर का त्याग कर दिया। शीघ्र ही उसका रूप दिव्य हो गया। उसका शरीर गौर वर्ण का हो गया । शरीर पर श्वेत वस्त्र एवं पुरुषों के आभूषण आ गए।
इस प्रकार दिव्य देहधारी होकर बिंदुग अपनी पत्नी चंचुला के साथ स्वयं भी भगवान शिव का गुणगान करने लगा। उसे इस दिव्य रूप में देखकर सभी को बहुत आश्चर्य हुआ । उसका मन परम आनंद से परिपूर्ण हो गया।
सभी भगवान महेश्वर के अद्भुत चरित्र को सुनकर कृतार्थ हो, उनका यशोगान करते हुए अपने-अपने धाम को चले गए। बिंदुग अपनी पत्नी चंचुला के साथ विमान में बैठकर शिवपुरी की ओर चल दिया।
महेश्वर के गुणों का गान करता हुआ बिंदुग अपनी पत्नी चंचुला व तुम्बुरो के साथ शीघ्र ही शिवधाम पहुंच गया। भगवान शिव व देवी पार्वती ने उसे अपना पार्षद बना लिया। दोनों पति-पत्नी सुखपूर्वक भगवान महेश्वर एवं देवी गौरी के श्रीचरणों में अविचल निवास पाकर धन्य हो गए।