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शिव पुराण का परिचय और महिमा – दूसरा अध्याय

सूत जी कहते हैं – साधु महात्माओ ! आपने बहुत अच्छी बात पूछी है। यह प्रश्न तीनों लोकों का हित करने वाला है। आप लोगों के स्नेहपूर्ण आग्रह पर, गुरुदेव व्यास का स्मरण कर मैं समस्त पापराशियों से उद्धार करने वाले शिव पुराण की अमृत कथा का वर्णन कर रहा हूं। ये वेदांत का सारसर्वस्व है। यही परलोक में परमार्थ को देने वाला है तथा दुष्टों का विनाश करने वाला है। इसमें भगवान शिव के उत्तम यश का वर्णन है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि पुरुषार्थों को देने वाला पुराण अपने प्रभाव की दृष्टि से वृद्धि तथा विस्तार को प्राप्त हो रहा है। शिव पुराण के अध्ययन से कलियुग के सभी पापों में लिप्त जीव उत्तम गति को प्राप्त होंगे। इसके उदय से ही कलियुग का उत्पात शांत हो जाएगा। शिव पुराण को वेद तुल्य माना जाएगा। इसका प्रवचन सर्वप्रथम भगवान शिव ने ही किया था। इस पुराण के बारह खण्ड या भेद हैं।

ये बारह संहिताएं हैं – (1) विद्येश्वर संहिता, (2) रुद्र संहिता, (3) विनायक संहिता, (4) उमा संहिता, (5) सहस्रकोटिरुद्र संहिता, (6) एकादशरुद्र संहिता, (7) कैलास संहिता, (8) शतरुद्र संहिता, (9) कोटिरुद्र संहिता, (10) मातृ संहिता, (11) वायवीय संहिता तथा (12) धर्म संहिता |

शिव पुराण का परिचय और महिमा

विद्येश्वर संहिता में दस हजार श्लोक हैं। रुद्र संहिता, विनायक संहिता, उमा संहिता और मातृ संहिता प्रत्येक में आठ-आठ हजार श्लोक हैं। एकादश रुद्र संहिता में तेरह हजार, कैलाश संहिता में छः हजार, शतरुद्र संहिता में तीन हजार, कोटिरुद्र संहिता में नौ हजार, सहस्रकोटिरुद्र संहिता में ग्यारह हजार, वायवीय संहिता में चार हजार तथा धर्म संहिता में बारह हजार श्लोक हैं।

मूल शिव पुराण में कुल एक लाख श्लोक हैं परंतु व्यास जी ने इसे चौबीस हजार श्लोकों में संक्षिप्त कर दिया है। पुराणों की क्रम संख्या में शिव पुराण का चौथा स्थान है, जिसमें सात संहिताएं हैं।

पूर्वकाल में भगवान शिव ने सौ करोड़ श्लोकों का पुराणग्रंथ ग्रंथित किया था। सृष्टि के आरंभ में निर्मित यह पुराण साहित्य अधिक विस्तृत था । द्वापर युग में द्वैपायन आदि महर्षियों ने पुराण को अठारह भागों में विभाजित कर चार लाख श्लोकों में इसको संक्षिप्त कर दिया । इसके उपरांत व्यास जी ने चौबीस हजार श्लोकों में इसका प्रतिपादन किया।

यह वेदतुल्य पुराण विद्येश्वररुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलाश संहिता और वायवीय संहिता नामक सात संहिताओं में विभाजित है। यह सात

संहिताओं वाला शिव पुराण वेद के समान प्रामाणिक तथा उत्तम गति प्रदान करने वाला है।

इस निर्मल शिव पुराण की रचना भगवान शिव द्वारा की गई है तथा इसको संक्षेप में संकलित करने का श्रेय व्यास जी को जाता है। शिव पुराण सभी जीवों का कल्याण करने

वाला, सभी पापों का नाश करने वाला है। यही सत्पुरुषों को कल्याण प्रदान करने वाला है। यह तुलना रहित है तथा इसमें वेद प्रतिपादित अद्वैत ज्ञान तथा निष्कपट धर्म का प्रतिपादन है। शिव पुराण श्रेष्ठ मंत्र – समूहों का संकलन है तथा यही सभी के लिए शिवधाम की प्राप्ति का साधन है। समस्त पुराणों में सर्वश्रेष्ठ शिव पुराण ईर्ष्या रहित अंतःकरण वाले विद्वानों के लिए जानने की वस्तु है । इसमें परमात्मा का गान किया गया है। इस अमृतमयी शिव पुराण को आदर से पढ़ने और सुनने वाला मनुष्य भगवान शिव का प्रिय होकर परम गति को प्राप्त कर लेता है।