ब्रह्मा-विष्णु संवाद – दसवां अध्याय
ब्रह्माजी बोले: नारद ! काम के चले जाने पर श्री महादेव जी को मोहित कराने का मेरा अहंकार गिरकर चूर-चूर हो गया परंतु मेरे मन में यही चलता रहा कि…
यहां शिव पुराण के श्री रुद्र संहिता – द्वितीय खंड की अध्याय सूची प्रस्तुत की जा रही है:
पहला अध्याय – सती चरित्र
दूसरा अध्याय – शिव-पार्वती चरित्र
तीसरा अध्याय – कामदेव को ब्रह्माजी द्वारा शाप देना
चौथा अध्याय – काम-रति विवाह
पांचवां अध्याय – संध्या का चरित्र
छठा अध्याय – संध्या की तपस्या
सातवां अध्याय – संध्या की आत्माहुति
आठवां अध्याय – काम की हार
नवां अध्याय – ब्रह्मा का शिव विवाह हेतु प्रयत्न
दसवां अध्याय – ब्रह्मा-विष्णु संवाद
ग्यारहवां अध्याय – ब्रह्माजी की काली देवी से प्रार्थना
बारहवां अध्याय – दक्ष की तपस्या
तेरहवां अध्याय – दक्ष द्वारा मैथुनी सृष्टि का आरंभ
चौदहवां अध्याय – दक्ष की साठ कन्याओं का विवाह
पंद्रहवां अध्याय – सती की तपस्या
सोलहवां अध्याय – रुद्रदेव का सती से विवाह
सत्रहवां अध्याय – सती को शिव से वर की प्राप्ति
अठारहवां अध्याय – शिव और सती का विवाह
उन्नीसवां अध्याय – ब्रह्मा और विष्णु द्वारा शिव की स्तुति करना
बीसवां अध्याय – शिव-सती का विदा होकर कैलाश जाना
इक्कीसवां अध्याय – शिव-सती विहार
बाईसवां अध्याय – शिव-सती का हिमालय गमन
तेईसवां अध्याय – शिव द्वारा ज्ञान और मोक्ष का वर्णन
चौबीसवां अध्याय – शिव की आज्ञा से सती द्वारा श्रीराम की परीक्षा
पच्चीसवां अध्याय – श्रीराम का सती के संदेह को दूर करना
छब्बीसवां अध्याय – दक्ष का भगवान शिव को शाप देना
सत्ताईसवां अध्याय – दक्ष द्वारा महान यज्ञ का आयोजन
अट्ठाईसवां अध्याय – सती का दक्ष के यज्ञ में आना
उन्तीसवां अध्याय – यज्ञशाला में सती का अपमान
तीसवां अध्याय – सती द्वारा योगाग्नि से शरीर को भस्म करना
इकतीसवां अध्याय – आकाशवाणी
बत्तीसवां अध्याय – शिवजी का क्रोध
तेंतीसवां अध्याय – वीरभद्र और महाकाली का यज्ञशाला की ओर प्रस्थान
चौंतीसवां अध्याय – यज्ञ मण्डप में भय और विष्णु से जीवन रक्षा की प्रार्थना
पैंतीसवां अध्याय – वीरभद्र का आगमन
छत्तीसवां अध्याय – श्रीहरि और वीरभद्र का युद्ध
सैंतीसवां अध्याय – दक्ष का सिर काटकर यज्ञ कुंड में डालना
अड़तीसवां अध्याय – दधीचि क्षुव विवाद
उन्तालीसवां अध्याय – दधीचि का शाप और क्षुव पर अनुग्रह
चालीसवां अध्याय – ब्रह्माजी का कैलाश पर शिवजी से मिलना
इकतालीसवां अध्याय – शिव द्वारा दक्ष को जीवित करना
बयालीसवां अध्याय – दक्ष का यज्ञ को पूर्ण करना
ब्रह्माजी बोले: नारद ! काम के चले जाने पर श्री महादेव जी को मोहित कराने का मेरा अहंकार गिरकर चूर-चूर हो गया परंतु मेरे मन में यही चलता रहा कि…
ब्रह्माजी बोले: काम ने प्राणियों को मोहित करने वाला अपना प्रभाव फैलाया। बसंत ने उसका पूरा सहयोग किया। रति के साथ कामदेव ने शिवजी को मोहित करने के लिए अनेक…
सूत जी बोले: हे ऋषियो! जब इस प्रकार प्रजापति ब्रह्माजी ने कहा, तब उनके वचनों को सुनकर नारद जी आनंदित होकर बोले- हे ब्रह्मन्! मैं आपको बहुत धन्यवाद देता हूं…
ब्रह्माजी कहते हैं: नारद! जब भगवान शिव देवी संध्या को वरदान देकर वहां से अंतर्धान हो गए, तब संध्या उस स्थान पर गई, जहां पर मुनि मेधातिथि यज्ञ कर रहे…
ब्रह्माजी बोले: हे महाप्रज्ञ नारद! तपस्या की विधि बताकर जब वशिष्ठ जी चले गए, तब संध्या आसन लगाकर कठोर तप शुरू करने लगी। वशिष्ठ जी द्वारा बताए गए विधान एवं…
सूत जी बोले: हे ऋषियो! नारद जी के इस प्रकार प्रश्न करने पर ब्रह्माजी ने कहा : मुने! संध्या का चरित्र सुनकर समस्त कामनियां सती-साध्वी हो सकती हैं। वह संध्या…
नारद जी ने पूछा: हे ब्रह्माजी! इसके पश्चात क्या हुआ? आप मुझे इससे आगे की कथा भी बताइए। भगवन् काम और रति का विवाह हुआ या नहीं? आपके शाप का…
ब्रह्माजी ने कहा: हे नारद! सभी ऋषि-मुनि उस पुरुष के लिए उचित नाम खोजने लगे। तब सोच-विचारकर वे बोले कि तुमने उत्पन्न होते ही ब्रह्मा का मन मंथन कर दिया…
सूत जी बोले ;- हे ऋषियो! ब्रह्माजी के ये वचन सुनकर नारद जी पुनः पूछने लगे। हे ब्रह्माजी! मैं सती और शंकरजी के परम पवित्र व दिव्य चरित्र को पुनः…
नारद जी ने पूछा :- हे ब्रह्माजी! आपके श्रीमुख से मंगलकारी व अमृतमयी शिव कथा सुनकर मुझमें उनके विषय में और अधिक जानने की लालसा उत्पन्न गई है। अतः भगवान शिव…