ब्रह्माजी कहते हैं ;— हे नारद! देवताओं ने वहां पहुंचकर भगवान शिव को प्रणाम करके उनकी स्तुति की।
वहां उपस्थित नंदीश्वर भगवान शिव से बोले ;- प्रभु! देवता और मुनि संकट में पड़कर आपकी शरण में आए हैं। सर्वेश्वर आप उनका उद्धार करें । दयालु नंदी के इन वचनों को सुनकर भगवान शिव ने धीरे-धीरे आंखें खोल दीं। समाधि से विरत होकर परमज्ञानी परमात्मा भगवान शंकर देवताओं से बोले – हे ब्रह्माजी! हे श्रीहरि विष्णु ! एवं अन्य देवताओ, आप सब यहां एक साथ क्यों आए हैं? आपके आने का क्या प्रयोजन है? आप सभी को साथ देखकर लगता है कि अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण बात है। अतः आप मुझे उस बात से अवगत कराएं।
भगवान शंकर के ये वचन सुनकर सभी देवताओं का भय पूर्णतः दूर हो गया और वे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु को देखने लगे।
तब श्रीहरि विष्णु सभी देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हुए भगवान शिव से बोले – भगवान शंकर ! तारकासुर नामक दानव ने हम सभी देवताओं को बहुत दुखी कर रखा है। उसने हमें अपने-अपने स्थानों से भी निकाल दिया है। यही सब बताने के लिए हम सब देवता आपके पास आए हैं। भगवन्! ब्रह्माजी द्वारा प्राप्त वरदान के फलस्वरूप उस तारकासुर की मृत्यु आपके पुत्र के द्वारा निश्चित है। हे स्वामी! आप उस दुष्ट का नाश कर हम सबकी रक्षा करें। हम सबका उद्धार कीजिए । प्रभो! आप हिमालय पुत्री पार्वती का पाणिग्रहण कीजिए। आपका विवाह ही हमारे कष्टों को दूर कर सकता है। आप भक्तवत्सल हैं। अपने भक्तों के दुखों को दूर करने के लिए आप देवी पार्वती से शीघ्र विवाह कर लीजिए ।
विष्णुजी के ये वचन सुनकर भगवान शिव बोले ;- देवताओ! यदि मैं आपके कहे अनु परम सुंदरी देवी पार्वती से विवाह कर लूं तो इस धरती पर सभी मनुष्य देवता और ऋषि-मुनि कामी हो जाएंगे। तब वे परमार्थ पद पर नहीं चल सकेंगे। देवी दुर्गा अपने विवाह से कामदेव को पुनः जीवित कर देंगी। मैंने कामदेव को भस्म करके देवताओं के हित का ही कार्य किया था। सभी देव निष्काम भाव से उत्तम तपस्या कर रहे थे, ताकि विशिष्ट प्रयोजन को पूर्ण कर सकें। कामदेव के न होने से सभी देवता निर्विकार होकर शांत भाव से समाधि में ध्यानमग्न होकर बैठ सकेंगे। काम से क्रोध होता है। क्रोध से मोह हो जाता है और मोह के फलस्वरूप तपस्या नष्ट हो जाती है। इसलिए मैं तो आप सबसे भी यही कहता हूं कि आप भी काम और क्रोध को त्यागकर तपस्या करें ।
ब्रह्माजी बोले ;- हे नारद! त्रिलोकीनाथ भगवान शिव के मुख से इस प्रकार की बातें सुनकर हम सभी हत्प्रभ से उन्हें देखते रहे और वे हम सब देवताओं और मुनियों को निष्काम होने का उपदेश देकर चुप हो गए और पुनः पहले की भांति सुस्थिर होकर ध्यान में लीन हो गए। भगवान शिव ब्रह्म स्वरूप आत्मचिंतन में लग गए।
श्रीहरि विष्णु सहित अन्य देवताओं ने जब परमेश्वर शिव को ध्यान में मग्न देखा तब सब देवता नंदीश्वर से कहने लगे- नंदीश्वर जी! हम अब क्या करें? हमें भगवान शिव को प्रसन्न करने का कोई मार्ग सुझाइए। तब नंदीश्वर सभी देवताओं को संबोधित करते हुए बोले – आप भक्तवत्सल भगवान शिव की प्रार्थना करते रहो। वे सदैव ही अपने भक्तों के वश में रहते हैं। तब नंदीश्वर की बात सुनकर देवता पुनः भगवान शिव की स्तुति करने लगे। वे बोले – हे देवाधिदेव! महादेव! करुणानिधान! भगवान शिव शंकर! हम दोनों हाथ जोड़कर आपकी शरण में आए हैं। आप हम सबके सभी दुखों और कष्टों को दूर कीजिए और हम सबका उद्धार कीजिए। इस प्रकार देवताओं ने भगवान शिव की अनेकों बार स्तुति की। इसके बाद भी जब भगवान ने आंखें नहीं खोलीं तो सब देवता उनकी करुण स्वर में स्तुति करते हुए रोने लगे। तब श्रीहरि विष्णु मन ही मन भगवान शिव का स्मरण करने लगे और करुण स्वर में अपना निवेदन करने लगे। देवताओ, मेरे और श्रीहरि विष्णु के बार-बार निवेदन करने पर भगवान शिव की तंद्रा टूटी और उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक अपनी आंखें खोल दीं। तब भगवान शिव बोले- तुम सब एक साथ यहां किसलिए आए हो? मुझे इससे अवगत कराओ।
श्रीहरि विष्णु बोले ;- हे देवेश्वर ! हे शिव शंकर! आप सर्वज्ञ हैं। सबके अंतर्यामी ईश्वर हैं। आप तो सबकुछ जानते हैं। भगवन्, आप हमारे मन की बात भी अवश्य ही जानते होंगे। फिर भी यदि आप हमारे मुख से सुनना चाहते हैं तो सुनें। तारक नामक असुर आजकल बड़ा बलशाली हो गया है। वह देवताओं को अनेकों प्रकार के कष्ट देता है। इसलिए हम सभी देवताओं ने देवी जगदंबा से प्रार्थना कर उन्हें गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में अवतार ग्रहण कराया है। इसलिए ही हम बार-बार आपकी प्रार्थना कर रहे हैं कि आप देवी पार्वती को पत्नी रूप में प्राप्त करें। ब्रह्माजी के वरदान के अनुसार भगवान शिव और देवी पार्वती का पुत्र ही तारकासुर का वध कर हमें उसके आतंक से मुक्त करा सकता है। मुनिश्रेष्ठ नारद के उपदेश के अनुसार देवी पार्वती कठोर तपस्या कर रही हैं। उनकी तपस्या के तेज के प्रभाव से समस्त चराचर जगत संतप्त हो गया है। इसलिए हे भगवन्! आप पार्वती को वरदान देने के लिए जाइए हे प्रभु! देवताओं पर आए इस संकट और उनके दुखों को मिटाने के लिए आप देवी पार्वती पर अपनी कृपादृष्टि कीजिए। आपका विवाह उत्सव देखने के लिए हम सभी बहुत उत्साहित हैं। अतः प्रभु, आप शीघ्र ही विवाह बंधन में बंधकर हमारी इस इच्छा को भी पूरा करें। भगवन्! आपने रति को जो वरदान प्रदान किया था, उसके पूरा होने का भी अवसर आ गया है। अतः महेश्वर! आप अपनी प्रतिज्ञा को शीघ्र ही पूरा करें।
ब्रह्माजी बोले ;- हे नारद! ऐसा कहकर और प्रणाम करके विष्णुजी और अन्य देवताओं ने पुनः शिवजी की स्तुति की। तत्पश्चात वे सब हाथ जोड़कर खड़े हो गए। तब उन्हें देखकर वेद मर्यादाओं के रक्षक भगवान शिव हंसकर बोले-‘हे हरे! हे विधे! और हे देवताओ! मेरे अनुसार विवाह करना उचित कार्य नहीं है क्योंकि विवाह मनुष्य को बांधकर रखने वाली बेड़ी है। जगत में अनेक कुरीतियां हैं। स्त्री का साथ उनमें से एक है। मनुष्य सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हो सकता है परंतु स्त्री के बंधन से वह कभी मुक्त नहीं हो सकता। एक बार को लोहे और लकड़ी की बनी जंजीरों से मुक्ति मिल सकती है परंतु विवाह एक ऐसी कैद है, जिससे छुटकारा पाना असंभव है। विवाह मन को विषयों के वशीभूत कर देता है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति असंभव हो जाती है। मनुष्य यदि सुख की इच्छा रखता है तो उसे इन विषयों को त्याग देना चाहिए। विषयों को विष के समान माना जाता है। इन सब बातों का ज्ञान होते हुए भी, मैं आप सबकी प्रार्थना को सफल करूंगा क्योंकि मैं सदैव ही अपने भक्तों के अधीन रहता हूं। मैंने अपने भक्तों की रक्षा के लिए अनेक कष्ट सहे हैं।
हे हरे! और हे विधे! आप तो सबकुछ जानते ही हैं। मेरे भक्तों पर जब-जब विपत्ति आती हैं, तब-तब मैं उनके सभी कष्टों को दूर करता हूं। भक्तों के अधीन होने के कारण मैं उनके हित में अनुचित कार्य भी कर बैठता हूं। भक्तों के दुखों को मैं हमेशा दूर करता हूं। तारकासुर ने तुम्हें जो दुख दिए हैं, उन्हें मैं भलीभांति जानता हूं। उनको मैं अवश्य ही दूर करूंगा। जैसा कि आप सभी जानते हैं, मेरे मन में विवाह करने की कोई इच्छा नहीं है फिर भी पुत्र प्राप्ति हेतु मैं देवी पार्वती का पाणिग्रहण अवश्य करूंगा। अब तुम सब देवता निर्भय और निडर होकर अपने-अपने धाम को लौट जाओ। मैं तुम्हारे कार्य की सिद्धि अवश्य करूंगा। इसलिए अपनी सभी चिंताओं को त्यागकर सभी सहर्ष अपने घर जाओ।
ऐसा कहकर भगवान शिव शंकर पुनः मौन हो गए और समाधि में बैठकर ध्यान में मग्न हो गए। तत्पश्चात, विष्णुजी और मैं देवराज इंद्र सहित सभी देवता अपने-अपने धामों को खुशी से लौट आए।
भगवान शिव और देवी पार्वती के तपस्या की अद्भुत कथा
ब्रह्माजी नारदजी से कहते हैं—
देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या आरंभ की। उनकी तपस्या को वर्षों बीत गए, लेकिन भगवान शिव ने न तो दर्शन दिए और न ही कोई वरदान। इस बीच, देवी पार्वती के पिता हिमालय, माता मैना और अन्य परिजन उन्हें समझाने और वापस घर लाने के लिए आए।
पार्वती का अडिग निश्चय
सभी परिजनों के आग्रह पर देवी पार्वती ने विनम्रतापूर्वक कहा—
“हे पिताजी और माताजी! क्या आप मेरी प्रतिज्ञा भूल गए हैं? मैं भगवान शिव को अपनी तपस्या से अवश्य प्रसन्न करूंगी। यह वही स्थान है जहां महादेव ने कामदेव को भस्म किया था। उन्हीं त्रिलोकीनाथ शिव को मैं अपनी भक्ति से वश में करूंगी। आप निश्चिंत होकर घर लौट जाएं।”
परिजनों ने पार्वती के अडिग निश्चय की सराहना की और वापस लौट गए। इसके बाद देवी पार्वती ने दुगुने उत्साह और भक्ति के साथ तपस्या आरंभ कर दी।
तपस्या का प्रभाव और देवताओं की चिंता
पार्वती की तपस्या के प्रभाव से संपूर्ण त्रिलोक संतृप्त हो उठा। प्रकृति अशांत हो गई, और देवता इस स्थिति का कारण समझ नहीं पा रहे थे। सभी देवताओं ने इंद्र के नेतृत्व में गुरु बृहस्पति और फिर ब्रह्माजी की शरण ली। ब्रह्माजी ने ध्यान करके जाना कि यह संतृप्ति देवी पार्वती की तपस्या का परिणाम है। उन्होंने देवताओं को लेकर क्षीरसागर में भगवान विष्णु के पास जाने का सुझाव दिया।
विष्णुजी की सलाह
क्षीरसागर में भगवान विष्णु ने देवताओं की करुण पुकार सुनी और कहा—
“देवी पार्वती घोर तपस्या कर रही हैं ताकि भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर सकें। उनकी इच्छा पूरी करना हमारे वश की बात नहीं है। हमें त्रिलोकीनाथ शिव के पास जाकर उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि वे पार्वती से विवाह करें।”
देवताओं का भय
विष्णुजी की बात सुनकर देवता भयभीत हो गए। उन्होंने कहा—
“भगवान शिव अत्यंत क्रोधी हैं। उनके नेत्र कालाग्नि के समान हैं। उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया था। यदि वे क्रोधित हुए, तो हमें भी भस्म कर सकते हैं।”
विष्णुजी का मार्गदर्शन
विष्णुजी ने देवताओं को समझाते हुए कहा—
“भगवान शिव भयों का नाश करने वाले और समस्त देवताओं के स्वामी हैं। वे परम तपस्वी और भक्तवत्सल हैं। हमें निडर होकर उनकी शरण में जाना चाहिए।”
विष्णुजी के मार्गदर्शन पर देवता भगवान शिव के पास जाने को तैयार हुए।
शिवजी के पास देवताओं का आगमन
देवताओं के मार्ग में तपस्या में लीन देवी पार्वती को देखकर उन्होंने उनकी तपस्या की प्रशंसा की और प्रणाम किया। इसके बाद ब्रह्माजी, विष्णुजी और अन्य देवता भगवान शिव के दर्शनार्थ आगे बढ़े।
भगवान शिव की प्रसन्नता
देवता कुछ दूरी पर ठहर गए और नारदजी को शिवजी की प्रसन्नता का पता लगाने भेजा। नारदजी ने देखा कि भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा में हैं। यह जानकर वे लौटे और देवताओं को यह शुभ समाचार दिया। तब सभी देवता शिवजी के पास पहुंचे।
शिवजी की स्तुति
भगवान शिव योग मुद्रा में अपने गणों से घिरे हुए सुखपूर्वक विराजमान थे। ब्रह्माजी, विष्णुजी और अन्य देवताओं ने वेदों और उपनिषदों के ज्ञात विधि से भगवान शिव की स्तुति की।
निष्कर्ष
देवताओं और त्रिलोक के कल्याण के लिए भगवान विष्णु, ब्रह्माजी, और सभी देवताओं ने शिवजी से देवी पार्वती से विवाह करने का अनुरोध किया। यह कथा शिव और शक्ति के पवित्र मिलन की ओर अग्रसर होती है, जो संसार की भलाई और संतुलन का प्रतीक है।