ब्रह्माजी ने कहा: हे नारद! सभी ऋषि-मुनि उस पुरुष के लिए उचित नाम खोजने लगे। तब सोच-विचारकर वे बोले कि तुमने उत्पन्न होते ही ब्रह्मा का मन मंथन कर दिया है। अतः तुम्हारा पहला नाम मन्मथ होगा। तुम्हारे जैसा इस संसार में कोई नहीं है इसलिए तुम्हारा दूसरा नाम काम होगा। तीसरा नाम मदन और चौथा नाम कंदर्प होगा। अपने नामों के विषय में जानते ही काम ने अपने पांच बाणों का नामकरण कर उनका परीक्षण किया। काम ने अपने पांच बाणों को हर्षण, रोचन, मोहन, शोषण और मारण नाम से सुशोभित किया। ये बाण ऋषि-मुनियों को भी मोहित कर सकते थे। उस स्थान पर बहुत से देवता व ऋषि उपस्थित थे। उस समय संध्या भी वहीं थी। कामदेव द्वारा चलाए गए बाणों के फलस्वरूप सभी मोहित हो गए। सबके मनों में विकार आ गया। सभी काम के वशीभूत हो चुके थे। प्रजापति, मरीचि, अत्रि, दक्ष आदि सब मुनियों के साथ-साथ ब्रह्माजी भी काम के वश में होकर संध्या को पाने की इच्छा करने लगे। ब्रह्मा व उनके मानस पुत्रों, सभी को एक कन्या पर मोहित होते देखकर धर्म को बहुत दुख हुआ। धर्म ने धर्मरक्षक त्रिलोकीनाथ का स्मरण किया। तब मुझे देखकर शिवजी हंसे और कहने लगे- हे ब्रह्मा ! अपनी पुत्री के ही प्रति तुम मोहित कैसे हो गए? सूर्य का दर्शन करने वाले दक्ष, मरीचि आदि योगियों का निर्मल मन कैसे स्त्री को देखते ही मलिन हो गया? जिन देवताओं का मन स्त्री के प्रति आसक्त हो, उनके साथ शास्त्र संगति किस प्रकार की जा सकती है?
इस प्रकार के शिव वचन सुनकर मुझे बहुत लज्जा का अनुभव हुआ और मेरा पूरा शरीर पसीने-पसीने हो गया। मेरा विकार समाप्त हो गया परंतु मेरे शरीर से जो पसीना नीचे गिरा उससे पितृगणों की उत्पत्ति हुई। उससे चौंसठ हजार आग्नेष्वातो पितृगण उत्पन्न हुए और छियासी हजार बहिर्षद पितर हुए। एक सर्व गुण संपन्न, अति सुंदर कन्या भी उत्पन्न हुई, जिसका नाम रति था। उसका रूप-सौंदर्य देखकर ऋतु आदि स्खलित हो गए एवं उससे अनेक पितरों की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार संध्या से बहुत से पितरों की उत्पत्ति हुई।
शिवजी के वहां से अंतर्धान होने पर मैं काम पर क्रोधित हुआ। मेरे क्रुद्ध होने पर काम ने वह बाण वापस खींच लिया। बाण के निकलते ही मैं क्रोध की अग्नि से जलने लगा। मैंने काम को शिव बाण से भस्म होने का शाप दे डाला। यह सुनकर काम और रति दोनों मेरे चरणों में गिर पड़े और मेरी स्तुति करने लगे तथा क्षमा याचना करने लगे।
तब काम ने कहा: हे प्रभु! आपने ही तो मुझे वर देते हुए कहा था कि ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र समेत सभी देवता, ऋषि-मुनि और मनुष्य तुम्हारे वश में होंगे। मैं तो सिर्फ अपनी उस शक्ति का परीक्षण कर रहा था। इसलिए मैं निरपराध हूं। प्रभु मुझ पर कृपा करें। इस शाप के प्रभाव को समाप्त करने का उपाय बताएं।
इस प्रकार काम के वचनों को सुनकर ब्रह्माजी का क्रोध शांत हुआ। तब उन्होंने कहा कि मेरा शाप झूठा नहीं हो सकता। इसलिए तुम महादेव के तीसरे नेत्र रूपी अग्नि बाण से भस्म हो जाओगे। परंतु कुछ समय पश्चात जब शिवजी विवाह करेंगे अर्थात उनके जीवन में देवी पार्वती आएंगी, तब तुम्हारा शरीर तुम्हें पुनः प्राप्त हो जाएगा।