दक्ष का सिर काटकर यज्ञ कुंड में डालना – सैंतीसवां अध्याय

हे नारद! यज्ञशाला में उपस्थित सभी देवताओं को डराकर और मारकर वीरभद्र ने वहां से भगा दिया और जो बाकी बचे उनको भी मार डाला। तब उन्होंने यज्ञ के आयोजक दक्ष को, जो कि भय के मारे अंतर्वेदी में छिपा था, बलपूर्वक पकड़ लिया। वीरभद्र ने दक्ष के शरीर पर अनेकों वार किए। वे दक्ष का सिर तलवार से काटने लगे। परंतु दक्ष के योग के प्रभाव से वह सिर काटने में असफल रहे। वीरभद्र ने दक्ष की छाती पर पैर रखकर दोनों हाथों से उसकी गरदन मरोड़कर तोड़ दी। तत्पश्चात दक्ष के सिर को वीरभद्र ने अग्निकुंड में डाल दिया। उस महान यज्ञ का संपूर्ण विनाश करने के उपरांत वीरभद्र और सभी गण जीत की खुशी के साथ कैलाश पर्वत पर चले गए और शिवजी को अपनी विजय की सूचना दी। इस समाचार को पाकर महादेव जी बहुत प्रसन्न हुए।