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मणिमहेश यात्रा

हिमाचल प्रदेश के भरमौर शहर से करीब 26 किलोमीटर की दूरी पर बसे मणिमहेश में भगवान शिव का निवास है जहां माना जाता है कि यहाँ मणि चमकती है व मणि के दर्शन होते हैं। यहाँ पर मणि चमकने की गाथाओं के आधार यहाँ शिव भगवान को मणिमहेश कहा जाता है। जिसके आधार पर इस जगह का नाम भी मणिमहेश पड़ गया है । धौलाधार, पांगी व जांस्कर पर्वत शृंखलाओं से घिरा यह कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से जाना जाता है। हजारों सालों से श्रद्धालु यहाँ की रोमांचक यात्रा पर आ रहे हैं।

भरमौर को शिवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव का असली निवास यहीं है। मणिमहेश यात्रा कब शुरू हुई, इसके बारे में कई अंदाजे लगाए जाते हैं, लेकिन कहा जाता है कि यहां पर भगवान शिव ने कई बार अपने भक्तों को दर्शन दिए हैं। 13,500 फुट की ऊंचाई पर यह प्राकृतिक झील किसी दैवीय शक्ति का प्रमाण ही है।

मणिमहेश यात्रा के बारे रोचक तथ्य – आस्था के साथ रोमांच भी

मणिमहेश-कैलाश की भौगोलिक स्थिति

शिव भगवान तीर्थ स्थल मणिमहेश कैलाश हिमाचल प्रदेश में चंबा जिले के भरमौर शहर में है। मान्यता के अनुसार, 550 ईस्वी में भरमौर मरु वंश के राजा मरुवर्मा की राजधानी था। मणिमहेश कैलाश के लिए भी बुद्धिल घाटी जो भरमौर का भाग है, से होकर जाना पड़ता है।

हड़सर से पैदल यात्रा

हड़सर नामक स्थान गाड़ी योग्य सड़क का अंतिम पड़ाव है। यहां से आगे पहाड़ी रास्तों पर पैदल या घोड़े-खच्चरों की सवारी कर के ही सफर करना होता है। चंबा, भरमौर और हड़सर तक सड़क बनने से पहले चंबा से ही पैदल यात्रा शुरू हो जाती थी। हड़सर से मणिमहेश-कैलाश 15 किलोमीटर दूर है।

महिलाएं गौरीकुंड में करती हैं स्नान

गौरीकुंड पहुंचने पर प्रथम कैलाश शिखर के दर्शन होते हैं। गौरीकुंड माता गौरी का स्नान स्थल है। यात्रा में आने वाली स्त्रियां यहां स्नान करती हैं। यहां से डेढ़ किलोमीटर की सीधी चढ़ाई के बाद मणिमहेश झील पहुंचा जाता है। यह झील चारों ओर से पहाड़ों से घिरी हुई है व देखने वालों की थकावट यहाँ के नज़ारे को देख कार क्षण भर में ही दूर हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि मणिमहेश कैलाश अगर बादलों में भी घिरा हो तो भी श्रद्धालुओं को दर्शन देने के लिए कैलाश पर्वत शिखर बाहर आ जाता है इसके दर्शन उपरांत श्रद्धालुओं की तपस्या सफल हो जाती है।

हो सकते हैं नील मणि के दर्शन

हिमाचल सरकार ने इस पर्वत को वैदूर्यमणि या नीलमणि कहा है।मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे जब सूर्य उदय होता है तो सारे आकाश मंडल में नीलिमा छा जाती है और किरणें नीले रंग में निकलती हैं। मान्यता है कि कैलाश पर्वत में नीलमणि का गुण-धर्म हैं जिनसे टकराकर सूर्य की किरणें नीले रंग में रंग जाती हैं।

परंपरागत यात्रा जन्माष्टमी से राधाष्टमी तक

परंपरागत यात्रा जन्माष्टमी से राधाष्टमी तक चलती है। जन्माष्टमी को मणिमहेश झील में छोटा स्नान व राधाष्टमी को बड़ा स्नान होता है । हिमाचल प्रदेश सरकार इस दौरान यात्रा के प्रबंधन के लिए कई कदम उठाती है तथा काफी व्यवस्थाएं करती है। आसपास के राज्यों से व जो श्रद्धालु ज्यादा भीड़भाड़ मे यात्रा नहीं करना चाहते वो जून से लेकर अक्तूबर तक यात्रा पर आते रहते हैं। बहुत से लोग यात्रा रोमांच लिए भी करते हैं ।

हेलीकॉप्टर से मणिमहेश यात्रा

हेलीकॉप्टर से मणिमहेश यात्रा का प्रबंधन सिर्फ जन्माष्टमी से राधाष्टमी तक ही होता है । हालाँकि हेलीकॉप्टर से मणिमहेश यात्रा का समय बढ़ाने की कोशिश कई बार हो चुकी है व शायद आने वाले सालों मे हेलीकॉप्टर से मणिमहेश यात्रा का समय बढ़ा दिया जाए। हेलीकॉप्टर लोगों को आधार शिविर भरमौर से पवित्र झील से एक किलोमीटर नीचे गौरीकुंड तक ले जाता है।

मणिमहेश यात्रा की हेलीकॉप्टर टिकटें सिर्फ यात्रा के दौरान काउन्टर पर ही मिलती हैं । हेलीकॉप्टर की टिकटें अग्रिम मे बुक नहीं होती हैं यात्री को खुद ही टिकट लेनी पड़ती है ।

मणिमहेश यात्रा के लिए कैसे पहुंचें

मणिमहेश यात्रा भरमौर से शुरू होती है व हड़सर से पैदल शुरू होती है। भरमौर से हड़सर 13 किलोमीटर की दूरी पर है । हड़सर से मणिमहेश भी 13 की दूरी पर है ।

भरमौर चंबा से 61 किलोमीटर व पठानकोट से 180 किलोमीटर की दूरी पर है। पठानकोट के पास चक्की बैंक मणिमहेश कैलाश यात्रा के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है व निकटतम हवाई अड्डा पठानकोट है। अगर पठानकोट के लिए उड़ाने उपलब्ध नहीं हों तो अगले निकटतम हवाई अड्डे गग्गल एयरपोर्ट कांगड़ा व अमृतसर हैं

7000 फुट की ऊंचाई से शुरू होती है पैदल यात्रा

पैदल तीर्थयात्रा भरमौर से 13 किलोमीटर दूर हड़सर नामक स्थान से शुरू होती है जहां की ऊंचाई लगभग 7000 फुट है और 13 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद 13500 फीट की उंचाई पर स्थित पवित्र मणिमहेश झील के पास समाप्त होती है ।

क्या-क्या करें

अपने साथ पर्याप्त गर्म कपड़े रखें। यहां तापमान एकदम से पांच डिग्री तक गिर सकता है। यात्रा मार्ग पर मौसम कभी भी बिगड़ सकता है। लिहाजा अपने साथ छाता, रेनकोट व अच्छे जूते लेकर जाएं।

बारिश में सामान गीला न हो, इसके लिए कपड़े व अन्य खाने-पीने की चीजें वाटरप्रूफ बैग में ही रखें।

आपात स्थिति के लिए अपने किसी साथी यात्री का नाम, पता व मोबाइल नंबर लिखकर एक पर्ची अपनी जेब में रखें।

अपने साथ पहचान पत्र या ड्राइविंग लाइसेंस या यात्रा पर्ची जरूर रखें।

क्या न करें

-जिन क्षेत्रों में चेतावनी सूचना हो, वहां न रुकें।

-यात्रा मार्ग में काफी उतार-चढ़ाव है, इसलिए चप्पल पहनकर यात्रा न करें। केवल ट्रैकिंग जूते ही पहनकर यात्रा करें।

-यात्रा के दौरान किसी तरह का शॉर्टकट न लें क्योंकि यह खतरनाक व जानलेवा हो सकता है।

-खाली पेट कभी भी यात्रा न करें। ऐसा करने से गंभीर स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न हो सकती है।

-ऐसा कोई कार्य न करें जिससे यात्रा मार्ग पर प्रदूषण फैलता हो या पर्यावरण को नुकसान पहुंचता हो।