हमारी परंपराओं के पीछे कई सारे वैज्ञानिक रहस्य छिपे हुए हैं, जिन्हें हम नहीं जान पाते क्योंकि इसकी शिक्षा हमें कहीं नहीं दी गई है। भगवान शिव को सावन के महीने में ढेरो टन दूध यह सोंच कर चढ़ाया जाता है कि वे हमसे प्रसन्न होंगे और हमें उन्नती का मार्ग दिखाएंगे। लेकिन श्रावण मास में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के पीछे क्या कारण छुपा है वह आज हम आपको बताएंगे।
भगवान शिव एक अकेले ऐसे देव हैं जिनकी शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है। शिव भगवान दूसरों के कल्याण के लिए हलाहल विषैला दूध भी पी सकते हैं। शिव जी संहारकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का नाश होता है, मतलब जो विष है, वो सब कुछ शिव जी को भोग लगता है।
भगवान शिव से जानें जीवन जीने का तरीका पुराने जमाने में जब श्रावण मास में हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था, तब लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने में दूध विष के सामान है और वे दूध इसलिये त्याग देते हैं कि कहीं उन्हें बरसाती बीमारियां न घेर ले।
अगर आयुर्वेद के नजरिये से देखा जाए तो सावन में दूध या दूध से बने खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये क्योंकि इसमें वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं। शरीर में वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ पैदा होती हैं। श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है। तभी हमारे पुराणों में सावन के समय शिव को दूध अर्पित करने की प्रथा बनाई गई थी क्योंकि सावन के महीने में गाय या भैंस घास के साथ कई कीडे़-मकौड़ों का भी सेवन कर लेते हैं। जो दूध को हानिकारक बना देत है इसलिये सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है।