शिव नाम की महिमा – तेईसवां अध्याय

ऋषि बोले- हे व्यास शिष्य सूत जी ! आपको नमस्कार है। हम पर कृपा कर हमें परम उत्तम ‘रुद्राक्ष’ तथा शिव नाम की महिमा का माहात्म्य सुनाइए ।

सूत जी बोले- हे ऋषियो ! आपने बहुत ही उत्तम तथा समस्त लोकों के हित की बात पूछी है। भगवान शिव की उपासना करने वाले मनुष्य धन्य हैं। उनका मनुष्य होना सफल हो गया है। साथ ही शिवभक्ति से उनके कुल का उद्धार हो गया है। जो मनुष्य अपने मुख से सदाशिव और शिव नामों का उच्चारण करते हैं, पाप उनका स्पर्श भी नहीं कर पाता है। भस्म, रुद्राक्ष और शिव नाम त्रिवेणी के समान महा पुण्यमय हैं। इन तीनों के निवास और दर्शन मात्र से ही त्रिवेणी के स्नान का फल प्राप्त हो जाता है। इनका निवास जिसके शरीर में होता है, उसके दर्शन से ही सभी पापों का विनाश हो जाता है। भगवान शिव का नाम ‘गंगा’ है, विभूति ( भस्म ) ‘यमुना’ मानी गई है तथा रुद्राक्ष को ‘सरस्वती’ कहा गया है। इनकी संयुक्त त्रिवेणी समस्त पापों का नाश करने वाली है। हे श्रेष्ठ ब्राह्मणो! इनकी महिमा सिर्फ भगवान महेश्वर ही जानते हैं। यह शिव नाम का माहात्म्य समस्त पापों को हर लेने वाला है। ‘शिव-नाम’ अग्नि है और ‘महापाप’ पर्वत है। इस अग्नि से पाप रूपी पर्वत जल जाते हैं। शिव नाम को जपने मात्र से ही पाप – मूल नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य इस पृथ्वी लोक में भगवान शिव के जाप में लगा हुआ रहता है, वह विद्वान पुण्यात्मा और वेदों का ज्ञाता है। उसके द्वारा किए गए धर्म-कर्म फल देने वाले हैं। जो भी मनुष्य शिव नाम रूपी नौका पाकर भवसागर को तर जाते हैं, उनके भवरूपी पाप नि:संदेह ही नष्ट हो जाते हैं। जो पाप रूपी दावानल से पीड़ित हैं, उन्हें शिव नामरूपी अमृत का पान करना चाहिए।

हे मुनीश्वरो ! जिसने अनेक जन्मों तक तपस्या की है, उसे ही पापों का नाश करने वाली शिव भक्ति प्राप्त होती है। जिस मनुष्य के मन में कभी न खण्डित होने वाली शिव भक्ति प्रकट हुई है, उसे ही मोक्ष मिलता है। जो अनेक पाप करके भी भगवान शिव के नाम-जप में आदरपूर्वक लग गया है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। इसमें जरा भी संशय नहीं है। जिस प्रकार जंगल में दावानल से दग्ध हुए वृक्ष भस्म हो जाते हैं, उसी प्रकार शिव नाम रूपी दावानल से दग्ध होकर उसके सारे पाप भस्म हो जाते हैं। जिसके भस्म लगाने से अंग पवित्र हो गए हैं और जो आदर सहित शिव नाम जपता है, वह इस अथाह भवसागर से पार हो जाता है। संपूर्ण वेदों का अवलोकन करके महर्षियों ने शिव नाम को संसार – सागर को पार करने का उपाय बताया है। भगवान शंकर के एक नाम में भी पाप को समाप्त करने की इतनी शक्ति है कि उतने पातक कभी कोई मनुष्य कर ही नहीं सकता । पूर्वकाल में इंद्रद्युम्न नाम का एक महापापी राजा हुआ था और एक ब्राह्मण युवती, जो बहुत पाप कर चुकी थी, शिव नाम के प्रभाव से दोनों उत्तम गति को प्राप्त हुए। हे द्विजो ! इस प्रकार मैंने तुमसे शिव नाम की महिमा का वर्णन किया है।