शौनक जी कहते हैं – महाप्राज्ञ सूत जी ! आप धन्य एवं शिवभक्तों में श्रेष्ठ हैं। हम पर कृपा कर हमें कल्याणमय शिव पुराण के श्रवण की विधि बताइए, जिससे सभी श्रोताओं को संपूर्ण उत्तम फल की प्राप्ति हो ।
सूत जी ने कहा – मुने शौनक ! तुम्हें संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए मैं शिव पुराण की विधि सविस्तार बताता हूं। सर्वप्रथम, किसी ज्योतिषी को बुलाकर दान से संतुष्ट कर उससे कथा का शुभ मुहूर्त निकलवाना चाहिए और उसकी सूचना का संदेश सभी लोगों तक पहुंचाना चाहिए कि हमारे यहां शिव पुराण की कथा होने वाली है।
अपने कल्याण की इच्छा रखने वालों को इसे सुनने अवश्य पधारना चाहिए। देश-देश में जो भी भगवान शिव के भक्त हों तथा शिव कथा के कीर्तन और श्रवण के उत्सुक हों, उन सभी को आदरपूर्वक बुलाना चाहिए और उनका आदर-सत्कार करना चाहिए।
शिव पुराण सुनने के लिए मंदिर, तीर्थ, वनप्रांत अथवा घर में ही उत्तम स्थान का निर्माण करना चाहिए। केले के खंभों से सुशोभित कथा मण्डप तैयार कराएं। उसे सब ओर फल-पुष्प, सुंदर चंदोवे से अलंकृत करना चाहिए। चारों कोनों पर ध्वज लगाकर उसे विभिन्न सामग्री से सुशोभित करें।
भगवान शंकर के लिए भक्ति पूर्वक दिव्य आसन का निर्माण करना चाहिए तथा कथा वाचक के लिए भी दिव्य आसन का निर्माण करना चाहिए । नियमपूर्वक कथा सुनने वालों के लिए भी सुयोग्य आसन की व्यवस्था करें तथा अन्य लोगों के बैठने की भी व्यवस्था करें। कथा बांचने वाले विद्वान के प्रति कभी बुरी भावना न रखें।
संसार में जन्म तथा गुणों के कारण बहुत से गुरु होते हैं परंतु उन सब में पुराणों का ज्ञाता ही परम गुरु माना जाता है। पुराणवेत्ता पवित्र, शांत, साधु, ईर्ष्या पर विजय प्राप्त करने वाला और दयालु होना चाहिए। ऐसे गुणी मनुष्य को इस पुण्यमयी कथा को बांचना चाहिए ।
सूर्योदय से साढ़े तीन पहर तक इसे बांचने का उपयुक्त समय है। मध्याह्नकाल में दो घड़ी तक कथा बंद रखनी चाहिए ताकि लोग मल-मूत्र का त्याग कर सकें।
जिस दिन से कथा शुरू हो रही है उससे एक दिन पहले व्रत ग्रहण करें। कथा के दिनों में प्रातःकाल का नित्यकर्म संक्षेप में कर लेना चाहिए । वक्ता के पास उसकी सहायता हेतु एक विद्वान व्यक्ति को बैठाना चाहिए जो कि सब प्रकार के संशयों को दूर कर लोगों को समझाने में कुशल हो ।
कथा में आने वाले विघ्नों को दूर करने के लिए सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन करना चाहिए।
भगवान शिव व शिव पुराण की भक्तिभाव से पूजा करें। तत्पश्चात श्रोता तन- मन से शुद्ध होकर आदरपूर्वक शिव पुराण की कथा सुनें।
जो वक्ता और श्रोता अनेक प्रकार के कर्मों से भटक रहे हों, काम आदि छः विकारों से युक्त हों, वे पुण्य के भागी नहीं हो सकते।
जो मनुष्य अपनी सभी चिंताओं को भूलकर कथा में मन लगाते हैं, उन शुद्ध बुद्धि मनुष्यों को उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
शिव पुराण की कथा से संबंधित इस वर्णन में उल्लेखित महत्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं:
शिव पुराण की कथा की विधि
- शुभ मुहूर्त निकालना:
- किसी विद्वान ज्योतिषी से परामर्श कर कथा का शुभ मुहूर्त निश्चित करें।
- यह सूचना सभी भक्तों तक पहुँचाई जाए।
- श्रोताओं का आमंत्रण:
- भगवान शिव के सभी भक्तों को आदरपूर्वक कथा में आने के लिए आमंत्रित करें।
- उनका यथोचित सत्कार करें।
- कथा स्थल का निर्माण:
- कथा स्थल किसी मंदिर, तीर्थ, वन या घर में तैयार करें।
- केले के खंभों और फल-पुष्पों से सुसज्जित मंडप बनवाएं।
- चारों दिशाओं में ध्वज लगाएं और सुंदर चंदोवे से मंडप को अलंकृत करें।
- आसन व्यवस्था:
- भगवान शिव और कथा वाचक के लिए दिव्य आसन का निर्माण करें।
- श्रोताओं और अन्य उपस्थित जनों के लिए उचित बैठने की व्यवस्था करें।
- कथा वाचक के गुण:
- कथा कहने वाला पवित्र, शांत, साधु, ईर्ष्या रहित और दयालु हो।
- पुराणों का ज्ञाता ही परम गुरु माना जाता है।
- कथा का समय:
- सूर्योदय से साढ़े तीन पहर तक कथा कहनी चाहिए।
- मध्याह्न में दो घड़ी का अंतराल रखें।
- विधि-विधान:
- कथा प्रारंभ से एक दिन पूर्व व्रत रखें।
- प्रातःकाल नित्यकर्म संक्षेप में करें।
- गणेश पूजन के साथ कथा का आरंभ करें।
- श्रोता और वक्ता की मनःस्थिति:
- श्रोता और वक्ता तन-मन से शुद्ध होकर कथा का श्रवण और वाचन करें।
- काम आदि छः विकारों से मुक्त होकर कथा में पूर्ण मन लगाएं।
- सहायक का प्रावधान:
- वक्ता की सहायता के लिए एक विद्वान सहायक हो, जो श्रोताओं के संशय दूर कर सके।
फल प्राप्ति की शर्तें
- कथा को पूरी श्रद्धा और भक्ति से सुनने वाले श्रोताओं को उत्तम फल प्राप्त होता है।
- विकारों और भटकाव से युक्त व्यक्ति पुण्य के अधिकारी नहीं बनते।
यह विधि केवल कथा आयोजन को सफल बनाने के लिए नहीं है, बल्कि शिवभक्ति और जीवन में शुद्धता लाने का मार्ग भी दिखाती है।