शिव पूजन की श्रेष्ठ विधि – तेरहवां अध्याय

ब्रह्माजी कहते हैं – हे नारद! अब मैं शिव पूजन की सर्वोत्तम विधि बताता हूं। यह विधि समस्त अभीष्ट तथा सुखों को प्रदान करने वाली है। उपासक ब्रह्ममुहूर्त में उठकर जगदंबा पार्वती और भगवान शिव का स्मरण करे। दोनों हाथ जोड़कर उनके सामने सिर झुकाकर भक्तिपूर्वक प्रार्थना करे – हे देवेश ! उठिए, हे त्रिलोकीनाथ! उठिए, मेरे हृदय में निवास करने वाले देव उठिए और पूरे ब्रह्माण्ड का मंगल करिए । हे प्रभु! मैं धर्म-अधर्म को नहीं जानता हूं। आपकी प्रेरणा से ही मैं कार्य करता हूं। फिर गुरु चरणों का ध्यान करते हुए कमरे से निकलकर शौच आदि से निवृत्त हों। मिट्टी और जल से देह को शुद्ध करें। दोनों हाथों और पैरों को धोकर दातुन करें तथा सोलह बार जल की अंजलियों से मुंह को धोएं। ये कार्य सूर्योदय से पूर्व ही करें। हे देवताओ और ऋषियो! षष्ठी, प्रतिपदा, अमावस्या, नवमी और रविवार के दिन दातुन न करें। नदी अथवा घर में समय से स्नान करें। मनुष्य को देश और काल के विरुद्ध स्नान नहीं करना चाहिए। रविवार, श्राद्ध, संक्रांति, ग्रहण, महादान और उपवास वाले दिन गरम जल में स्नान न करें। क्रम से वारों को देखकर ही तेल लगाएं। जो मनुष्य नियमपूर्वक रोज तेल लगाता है, उसके लिए तेल लगाना किसी भी दिन दूषित नहीं है। सरसों के तेल को ग्रहण के दिन प्रयोग में न लाएं। इसके उपरांत स्नान पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके करें।
स्नान के उपरांत स्वच्छ अर्थात धुले हुए वस्त्र को धारण करें। दूसरों के पहने हुए अथवा रात में सोते समय पहने वस्त्रों को बिना धुले धारण न करें। स्नान के बाद पितरों एवं देवताओं को प्रसन्न करने हेतु तर्पण करें। उसके बाद धुले हुए वस्त्र धारण करें और आचमन करें। पूजा हेतु स्थान को गोबर आदि से लीपकर शुद्ध करें। वहां लकड़ी के आसन की व्यवस्था करें। ऐसा आसन अभीष्ट फल देने वाला होता है। उस आसन पर बिछाने के लिए मृग अर्थात हिरन की खाल की व्यवस्था करें। उस पर बैठकर भस्म से त्रिपुण्ड लगाएं । त्रिपुण्ड से जप-तप तथा दान सफल होता है। त्रिपुण्ड लगाकर रुद्राक्ष धारण करें। तत्पश्चात मंत्रों का उच्चारण करते हुए आचमन करें। पूजा सामग्री को एकत्र करें। फिर जल, गंध और अक्षत के पात्र को दाहिने भाग में रखें। फिर गुरु की आज्ञा लेकर और उनका ध्यान करते हुए सपरिवार शिव का पूजन करें। विघ्न विनाशक गणेश जी का बुद्धि-सिद्धि सहित पूजन करें। ‘ॐ गणपतये नमः’ का जाप करके उन्हें नमस्कार करें तथा क्षमा याचना करें। कार्तिकेय एवं गणेश जी का एक साथ पूजन करें तथा उन्हें बारंबार नमस्कार करें। फिर द्वार पर स्थित लंबोदर नामक द्वारपाल की पूजा करें। तत्पश्चात भगवती देवी की पूजा करें। चंदन, कुमकुम, धूप, दीप और नैवेद्य से शिवजी का पूजन करें। प्रेमपूर्वक नमस्कार करें। अपने घर में मिट्टी, सोना, चांदी, धातु या अन्य किसी धातु की शिव प्रतिमा बनाएं। भक्तिपूर्वक शिवजी की पूजा कर उन्हें नमस्कार
करें।
मिट्टी का शिवलिंग बनाकर विधिपूर्वक उसकी स्थापना करें तथा उसकी प्राण प्रतिष्ठा करें। घर में भी मंत्रोच्चार करते हुए पूजा करनी चाहिए। पूजा उत्तर की ओर मुख करके करनी चाहिए। आसन पर बैठकर गुरु को नमस्कार करें। अर्घ्यपात्र से शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। शांत मन से, पूर्ण श्रद्धावनत होकर महादेव जी का आवाहन इस प्रकार करें।
जो कैलाश के शिखर पर निवास करते हैं और पार्वती देवी के पति हैं। जिनके स्वरूप का वर्णन शास्त्रों में है। जो समस्त देवताओं के लिए पूजित हैं। जिनके पांच मुख, दस हाथ तथा प्रत्येक मुख पर तीन-तीन नेत्र हैं। जो सिर पर चंद्रमा का मुकुट और जटा धारण किए हुए हैं, जिनका रंग कपूर के समान है, जो बाघ की खाल बांधते हैं। जिनके गले में वासुकि नामक नाग लिपटा है, जो सभी मनुष्यों को शरण देते हैं और सभी भक्तगण जिनकी जय-जयकार करते हैं। जिनका सभी वेद और शास्त्रों में गुणगान किया गया है। ब्रह्मा, विष्णु जिनकी स्तुति करते हैं। जो परम आनंद देने वाले तथा भक्तवत्सल हैं, ऐसे देवों के देव महादेव भगवान शिवजी का मैं आवाहन करता हूं।
इस प्रकार आवाहन करने के पश्चात उनका आसन स्थापित करें। आसन के बाद शिवजी को पाद्य और अर्घ्य दें। पंचामृत के द्रव्यों द्वारा शिवलिंग को स्नान कराएं तथा मंत्रों सहित द्रव्य अर्पित करें। स्नान के पश्चात सुगंधित चंदन का लेप करें तथा सुगंधित जलधारा से उनका अभिषेक करें। फिर आचमन कर जल दें और वस्त्र अर्पित करें। मंत्रों द्वारा भगवान शिव को तिल, जौ, गेहूं, मूंग और उड़द अर्पित करें। पुष्प चढ़ाएं। शिवजी के प्रत्येक मुख पर कमल, शतपत्र, शंख – पुष्प, कुश पुष्प, धतूरा, मंदार, द्रोण पुष्प, तुलसीदल तथा बेलपत्र चढ़ाकर पराभक्ति से महेश्वर की विशेष पूजा करें। बेलपत्र समर्पित करने से शिवजी की पूजा सफल होती है। तत्पश्चात सुगंधित चूर्ण तथा सुवासित तेल बड़े हर्ष के साथ भगवान शिव को अर्पित करें। गुग्गुल और अगरु की धूप दें। घी का दीपक जलाएं। प्रभो शंकर ! आपको हम नमस्कार करते हैं। आप अर्घ्य को स्वीकार करके मुझे रूप दीजिए, यश दीजिए और भोग व मोक्ष रूपी फल प्रदान कीजिए। यह कहकर अर्घ्य अर्पित करें। नैवेद्य व तांबूल अर्पित करें। पांच बत्ती की आरती करें। चार बार पैरों में, दो बार नाभि के सामने, एक बार मुख के सामने तथा संपूर्ण शरीर में सात बार आरती दिखाएं। तत्पश्चात शिवजी की परिक्रमा करें।
हे प्रभु शिव शंकर ! मैंने अज्ञान से अथवा जान-बूझकर जो पूजन किया है, वह आपकी कृपा से सफल हो। हे भगवन मेरे प्राण आप में लगे हैं। मेरा मन सदा आपका ही चिंतन करता है। हे गौरीनाथ ! भूतनाथ ! आप मुझ पर प्रसन्न होइए । प्रभो ! जिनके पैर लड़खड़ाते हैं, उनका आप ही एकमात्र सहारा हैं। जिन्होंने कोई भी अपराध किया है, उनके लिए आप ही शरणदाता हैं। यह प्रार्थना करके पुष्पांजलि अर्पित करें तथा पुनः भगवान शिव को नमस्कार करें।
देवेश्वर प्रभो! अब आप परिवार सहित अपने स्थान को पधारें तथा जब पूजा का समय हो, तब पुनः यहां पधारें। इस प्रकार भगवान शंकर की प्रार्थना करते हुए उनका विसर्जन करें और उस जल को अपने हृदय में लगाकर मस्तक पर लगाएं।
हे महर्षियो! इस प्रकार मैंने आपको शिवपूजन की सर्वोत्तम विधि बता दी है, जो भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है।
ऋषिगण बोले- हे ब्रह्माजी ! आप सर्वश्रेष्ठ हैं। आपने हम पर कृपा कर शिवपूजन की सर्वोत्तम विधि का वर्णन हमसे किया, जिसे सुनकर हम सब कृतार्थ हो गए।