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श्रवण, कीर्तन और मनन साधनों की श्रेष्ठता – तीसरा अध्याय

व्यास जी कहते हैं – सूत जी के वचनों को सुनकर सभी महर्षि बोले- भगवन् आप वेदतुल्य, अद्भुत एवं पुण्यमयी शिव पुराण की कथा सुनाइए ।

सूत जी ने कहा – हे महर्षिगण ! आप कल्याणमय भगवान शिव का स्मरण करके, वेद के सार से प्रकट शिव पुराण की अमृत कथा सुनिए । शिव पुराण में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का गान किया गया है। जब सृष्टि आरंभ हुई, तो छः कुलों के महर्षि आपस में वाद-विवाद करने लगे कि अमुक वस्तु उत्कृष्ट है, अमुक नहीं। जब इस विवाद ने बड़ा रूप धारण कर लिया तो सभी अपनी शंका के समाधान के लिए सृष्टि की रचना करने वाले अविनाशी ब्रह्माजी के पास जाकर हाथ जोड़कर कहने लगे – हे प्रभु! आप संपूर्ण जगत को धारण कर उनका पोषण करने वाले हैं। प्रभु! हम जानना चाहते हैं कि संपूर्ण तत्वों से परे परात्पर पुराण पुरुष कौन हैं?

ब्रह्माजी ने कहा – ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और इंद्र आदि से युक्त संपूर्ण जगत समस्त भूतों एवं इंद्रियों के साथ पहले प्रकट हुआ है। वे देव महादेव ही सर्वज्ञ और संपूर्ण हैं। भक्ति से ही इनका साक्षात्कार होता है। दूसरे किसी उपाय से इनका दर्शन नहीं होता। भगवान शिव में अटूट भक्ति मनुष्य को संसार-बंधन से मुक्ति दिलाती है। भक्ति से उन्हें देवता का कृपाप्रसाद प्राप्त होता है। जैसे अंकुर से बीज और बीज से अंकुर पैदा होता है। भगवान शंकर का कृपाप्रसाद प्राप्त करने के लिए आप सब ब्रह्मर्षि धरती पर सहस्रों वर्षों तक चलने वाले विशाल यज्ञ करो। यज्ञपति भगवान शिव की कृपा से ही विद्या के सारतत्व साध्य-साधन का ज्ञान प्राप्त होता है।

शिवपद की प्राप्ति साध्य और उनकी सेवा ही साधन है तथा जो मनुष्य बिना किसी फल की कामना किए उनकी भक्ति में डूबे रहते हैं, वही साधक हैं। कर्म के अनुष्ठान से प्राप्त फल को भगवान शिव के श्रीचरणों में समर्पित करना ही परमेश्वर की प्राप्ति का उपाय है तथा यही मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र साधन है। साक्षात महेश्वर ने ही भक्ति के साधनों का प्रतिपादन किया है। कान से भगवान के नाम, गुण और लीलाओं का श्रवण, वाणी द्वारा उनका कीर्तन तथा मन में उनका मनन शिवपद की प्राप्ति के महान साधन हैं तथा इन साधनों से ही संपूर्ण मनोरथों की सिद्ध होती है। जिस वस्तु को हम प्रत्यक्ष अपनी आंखों के सामने देख सकते हैं, उसकी तरफ आकर्षण स्वाभाविक है परंतु जिस वस्तु को प्रत्यक्ष रूप से देखा नहीं जा सकता उसे केवल सुनकर और समझकर ही उसकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न किया जाता है। अतः श्रवण पहला साधन है। श्रवण द्वारा ही गुरु मुख से तत्व को सुनकर श्रेष्ठ बुद्धि वाला विद्वान अन्य साधन कीर्तन और मनन की शक्ति व सिद्धि प्राप्त करने का यत्न करता है। मनन के बाद इस साधन की साधना करते रहने से धीरे-धीरे भगवान शिव का संयोग प्राप्त होता है और लौकिक आनंद की प्राप्ति होती है।

भगवान शिव की पूजा, उनके नामों का जाप तथा उनके रूप, गुण, विलास के हृदय निरंतर चिंतन को ही मनन कहा जाता है। महेश्वर की कृपादृष्टि से उपलब्ध इस साधन को ही प्रमुख साधन कहा जाता है।

भगवान शिव की पूजा, उनके नामों का जाप तथा उनके रूप, गुण, विलास के हृदय निरंतर चिंतन को ही मनन कहा जाता है - विद्येश्वर संहिता – तीसरा अध्याय