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सनत्कुमार व्यास संवाद – चौथा अध्याय

सूत जी कहते हैं – हे मुनियो ! इस साधन का माहात्म्य बताते समय मैं एक प्राचीन वृत्तांत का वर्णन करूंगा, जिसे आप ध्यानपूर्वक सुनें।

बहुत पहले की बात है, पराशर मुनि के पुत्र मेरे गुरु व्यासदेव जी सरस्वती नदी के तट पर तपस्या कर रहे थे। एक दिन सूर्य के समान तेजस्वी विमान से यात्रा करते हुए भगवान सनत्कुमार वहां जा पहुंचे। मेरे गुरु ध्यान में मग्न थे। जागने पर अपने सामने सनत्कुमार जी को देखकर वे बड़ी तेजी से उठे और उनके चरणों का स्पर्श कर उन्हें अर्घ्य देकर योग्य आसन पर विराजमान किया। प्रसन्न होकर सनत्कुमार जी गंभीर वाणी में बोले- मुनि तुम सत्य का चिंतन करो। सत्य तत्व का चिंतन ही श्रेय प्राप्ति का मार्ग है। इसी से कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। यही कल्याणकारी है। यह जब जीवन में आ जाता है, तो सब सुंदर हो जाता है। सत्य का अर्थ है—सदैव रहने वाला । इस काल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह सदा एक समान रहता है।

सनत्कुमार जी ने महर्षि व्यास को आगे समझाते हुए कहा, महर्षे! सत्य पदार्थ भगवान शिव ही हैं। भगवान शंकर का श्रवण, कीर्तन और मनन ही उन्हें प्राप्त करने के सर्वश्रेष्ठ साधन हैं। पूर्वकाल में मैं दूसरे अनेकानेक साधनों के भ्रम में पड़ा घूमता हुआ तपस्या करने मंदराचल पर जा पहुंचा। कुछ समय बाद महेश्वर शिव की आज्ञा से सबके साक्षी तथा शिवगणों के स्वामी नंदिकेश्वर वहां आए और स्नेहपूर्वक मुक्ति का साधन बताते हुए बोले- भगवान शंकर का श्रवण, कीर्तन और मनन ही मुक्ति का स्रोत है। यह बात मुझे स्वयं देवाधिदेव भगवान शिव ने बताई है। अतः तुम इन्हीं साधनों का अनुष्ठान करो।

व्यास जी से ऐसा कहकर अनुगामियों सहित सनत्कुमार ब्रह्मधाम को चले गए। इस प्रकार इस उत्तम वृत्तांत का संक्षेप में मैंने वर्णन किया है।

ऋषि बोले- सूत जी ! आपने श्रवण, कीर्तन और मनन को मुक्ति का उपाय बताया है, किंतु जो मनुष्य इन तीनों साधनों में असमर्थ हो, वह मनुष्य कैसे मुक्त हो सकता है? किस कर्म के द्वारा बिना यत्न के ही मोक्ष मिल सकता है?

सत्य तत्व का चिंतन ही श्रेय प्राप्ति का मार्ग है - विद्येश्वर संहिता - शिव पुराण