नारद जी ने पूछा :- हे ब्रह्माजी! आपके श्रीमुख से मंगलकारी व अमृतमयी शिव कथा सुनकर मुझमें उनके विषय में और अधिक जानने की लालसा उत्पन्न गई है। अतः भगवान शिव के बारे में मुझे बताइए । विश्व की सृष्टि करने वाले हे ब्रह्माजी! मैं सती के विषय में भी जानना चाहता हूं। सदाशिव योगी होते हुए एक स्त्री के साथ विवाह करके गृहस्थ कैसे हो गए? उन्हें विवाह करने का विचार कैसे आया? जो पहले दक्ष की कन्या थी, फिर हिमालय की कन्या हुई, वे सती (पार्वती) किस प्रकार शंकरजी को प्राप्त हुई? पार्वती ने किस प्रकार घोर तपस्या की और कैसे उनका विवाह हुआ? कामदेव को भस्म कर देने वाले भगवान शिव के आधे शरीर में वे किस प्रकार स्थान पा सकीं? उनका अर्द्धनारीश्वर रूप क्या है? हे प्रभो! आप ही मेरे इन प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं। आप ही मेरे संशयों का निवारण कर सकते हैं।
ब्रह्माजी ने कहा ;- हे नारद! देवी सती और भगवान शिव का शुभ यश परमपावन दिव्य और गोपनीय है। उसके रहस्य को वे ही समझते हैं। सर्वप्रथम तुम्हारी प्रार्थना पर मैं सती के चरित्र को बताता हूं।
पहले मेरे एक कन्या पैदा हुई। जिसे देखकर मैं काम पीड़ित हो गया। तब रुद्र ने धर्म का स्मरण कराते हुए मुझे बहुत धिक्कारा। फिर वे अपने निवास कैलाश पर्वत को चले गए। उन्हें मैंने समझाने की कोशिश की, परंतु मेरे सभी प्रयत्न निष्फल हो गए। तब मैंने शिवजी की आराधना की। शिवजी ने मुझे बहुत समझाया परंतु मैंने हठ नहीं छोड़ा और फिर रुद्रदेव को मोहित करने के लिए शक्ति का उपयोग करने लगा। मेरे पुत्र दक्ष के यहां सती का जन्म हुआ। वह दक्ष सुता ‘उमा’ नाम से उत्पन्न होकर कठिन तप करके रुद्र की स्त्री हुई। रुद्र ने गृहस्थाश्रम में सुखपूर्वक समय व्यतीत किया। उधर शिवजी की माया से दक्ष को घमंड हो गया और वह महादेव जी की निंदा करने लगा।
दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में दक्ष ने मुझे, विष्णुजी को, सभी देवी-देवताओं को और ऋषि-मुनियों को निमंत्रण दिया परन्तु महादेव शिवजी एवं अपनी पुत्री सती को उस विशाल यज्ञ का निमंत्रण नहीं दिया। सती को जब इस बात की जानकारी मिली, तो उन्होंने शिव-चरणों में वंदना कर उनसे दक्ष यज्ञ में जाने की इच्छा प्रकट की। भगवान शिव ने देवी सती को बहुत समझाया कि बिना बुलाए ऐसे आयोजनों में जाना अपमान और अनिष्टकारक होता है। लेकिन सती ने जाने का हठ किया। शिव ने भावी को देखते हुए आज्ञा दे दी। शिव सर्वज्ञ हैं। सती पिता के घर चली गई। वहां यज्ञ में महादेव जी के लिए भाग न देख और अपने पिता के मुख से अपने पति की घोर निंदा सुनकर उन्हें बहुत क्रोध आया। वे महादेव की निंदा सहन न कर सकीं और उन्होंने उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर का त्याग कर दिया।
जब इसका समाचार शिव तक पहुंचा, तो वे बहुत कुपित हुए। उन्होंने अपनी जटा का एक बाल उखाड़कर वीरभद्र नामक अपने गण को उत्पन्न किया। भगवान शिव ने वीरभद्र को आज्ञा दी कि वह दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दे। वीरभद्र ने शिव आज्ञा का पालन करते हुए यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काट दिया। इस उपद्रव को देखकर सभी लोग भगवान शिव की प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शिव ने दक्ष को पुनः जीवित कर दिया और उनके यज्ञ को पूर्ण कराया। भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर वहां से चले गए। उस समय सती के शरीर से उत्पन्न ज्वाला पर्वत पर गिरी थी। वही पर्वत आज भी ज्वालामुखी के नाम से पूजित है। आज भी उसके दर्शन से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वही सती दूसरे जन्म में हिमाचल के घर में पुत्री रूप में प्रकट हुईं, जिनका नाम पार्वती था। उन्होंने कठोर तप द्वारा पुनः महादेव शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त कर लिया।