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क्यों भगवान शिव ने शुक्राचार्य को निगल लिया?

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान शिव ने क्रोधित हो के शुक्राचार्य को निगल लिया था और माता पार्वती ने ही बचाई थी शुक्राचार्य की जान ।

शुक्राचार्य ने किसी प्रकार छल-कपट से एक बार कुबेर की सारी संपत्ति का अपहरण किया। कुबेर को जब इस बात का पता चला, तब उन्होंने शिव जी से शुक्राचार्य की करनी की शिकायत की।


शुक्राचार्य को इस बात का पता चला कि उनके खिलाफ भगवान शिव जी तक शिकायत पहुंच गई है तो वे बहुत घबरा गए और शिव जी के गुस्से से बचने के लिए झाड़ियों में जा छिपे। आखिर वे इस तरह शिव जी की आंख बचाकर कितने दिन छिप सकते थे।

एक बार जब वे शिव भगवान के सामने या गए तो शुक्राचार्य को देखते ही उन्होंने शुक्राचार्य को पकड़कर निगल डाला। शिव जी की देह में शुक्राचार्य का दम घुटने लगा। शिव जी का क्रोध शांत नहीं हुआ और वे बाहर निकलने की कोशिश करने लगे। लेकिन भगवान शिव ने क्रोध मे आकर अपने शरीर के सभी द्वार बंद कर दिए ।

यह देख शुक्राचार्य ने भगवान शिव के उदर मे जाकर भगवान शंकर की स्तुति शुरू कर दी। भगवान शिव ने हंस कर कहा कि क्योंकि तुम मेरे उदर मे हो तो मेरे पुत्र समान हो गए। तुम मेरे शिश्न से बाहर निकल आओ। अंत में शुक्राचार्य मूत्र द्वार से बाहर निकल आए। इस कारण शुक्राचार्य पार्वती परमेश्वर के पुत्र समान हो गए।

शुक्राचार्य को बाहर निकले देख शिव जी का क्रोध पुन: भड़क उठा। वे शुक्राचार्य की कुछ हानि करें, इस बीच पार्वती ने परमेश्वर से निवेदन किया, यह तो हमारे पुत्र समान हो गया है। इसलिए इस पर आप क्रोध मत कीजिए।
यह तो दया का पात्र है। पार्वती की अभ्यर्थना पर शिव जी ने शुक्राचार्य को अधिक तेजस्वी बनाया। अब शुक्राचार्य भय से निरापद हो गए थे।


शुक्राचार्य ने प्रियव्रत की पुत्री ऊर्जस्वती के साथ विवाह किया। शुक्राचार्य की कन्या का नाम देवयानी तथा पुत्रों का नाम शंद और अमर्क था। इनके पुत्र शंद और अमर्क हिरण्यकशिपु के यहां नीतिशास्त्र का अध्यापन करते थे।।