ब्रह्माजी बोले: काम ने प्राणियों को मोहित करने वाला अपना प्रभाव फैलाया। बसंत ने उसका पूरा सहयोग किया। रति के साथ कामदेव ने शिवजी को मोहित करने के लिए अनेक प्रकार के यत्न किए। इसके फलस्वरूप सभी जीव और प्राणी मोहित हो गए। जड़-चेतन समस्त सृष्टि काम के वश में होकर अपनी मर्यादाओं को भूल गई। संयम का व्रत पालन करने वाले ऋषि-मुनि अपने कृत्यों पर पश्चाताप करते हुए आश्चर्यचकित थे कि उन्होंने कैसे अपने व्रत को तोड़ दिया। परंतु भगवान शिव पर उनका वश नहीं चल सका । कामदेव के सभी प्रयत्न व्यर्थ हो गए। तब कामदेव निराश हो गए और मेरे पास आए और मुझे
प्रणाम करके बोले: हे भगवन्! मैं इतना शक्तिशाली नहीं हूं, जो शिवजी को मोह सकूं। यह बात सुनकर मैं चिंता में डूब गया। उसी समय मेरे सांस लेने से बहुत से भयंकर गण प्रकट हो गए। जो अनेक वाद्य-यंत्रों को जोर-जोर से बजाने लगे और ‘मारो-मारो’ की आवाज करने लगे। ऐसी अवस्था देखकर कामदेव ने उनके विषय में मुझसे प्रश्न किया। तब मैंने उन गणों को ‘मार’ नाम प्रदान कर उन्हें कामदेव को सौंप दिया और बताया कि ये सदा तुम्हारे वश में रहेंगे। तुम्हारी सहायता के लिए ही इनका जन्म हुआ है। यह सुनकर रति और कामदेव बहुत प्रसन्न हुए।
काम ने कहा: प्रभु! मैं आपकी आज्ञा के अनुसार पुनः शिवजी को मोहित करने के लिए जाऊंगा परंतु मुझे यह लगता है कि मैं उन्हें मोहने में सफल नहीं हो पाऊंगा। साथ ही मुझे इस बात का भी डर है कि कहीं वे आपके शाप के अनुसार मुझे भस्म न कर दें। यह कहकर कामदेव रति, बसंत और अपने मारगणों को साथ लेकर पुनः शिवधाम को चले गए। कामदेव ने शिवजी को मोहित करने के लिए बहुत से उपाय किए परंतु वे परमात्मा शिव को मोहित करने में सफल न हो सके। फिर कामदेव वहां से वापस आ गए और मुझे अपने असफल होने की सूचना दी। मुझसे कामदेव कहने लगे कि हे ब्रह्मन्! आप ही शिवजी को मोह में डालने का उपाय करें। मेरे लिए उन्हें मोहना संभव नहीं है।