शिव और सती का विवाह – अठारहवां अध्याय

ब्रह्माजी बोले: नारद! जब मैं कैलाश पर्वत पर भगवान शिव को प्रजापति दक्ष की स्वीकृति की सूचना देने पहुंचा तो वे उत्सुकतापूर्वक मेरी ही प्रतीक्षा कर रहे थे। तब मैंने महादेव जी से कहा

हे भगवन्! दक्ष ने कहा है कि वे अपनी पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से करने को तैयार हैं क्योंकि सती का जन्म महादेव जी के लिए ही हुआ है। यह विवाह होने पर उन्हें सबसे अधिक प्रसन्नता होगी। उनकी पुत्री सती ने महादेव जी को पति रूप में प्राप्त करने हेतु ही उनकी घोर तपस्या की है। उन्हें इस बात की भी खुशी है कि मैं स्वयं आपकी आज्ञा से उनकी पुत्री के लिए आपका अर्थात भगवान शिव का विवाह प्रस्ताव लेकर वहां गया।

उन्होंने कहा, हे पितामह ! उनसे कहिए कि वे शुभ लग्न और मुहूर्त में अपनी बारात लेकर स्वयं आएं। मैं अपनी पुत्री का कन्यादान सहर्ष महादेव जी को कर दूंगा। हे भगवन्! दक्ष ने मुझसे यह बात कही है, इसलिए आप शुभ मुहूर्त देखकर शीघ्र ही उनके घर चलें और देवी सती का वरण करें।

हे नारद! मेरे ऐसे वचन सुनकर शिवजी ने कहा हे संसार की सृष्टि करने वाले ब्रह्माजी! मैं तुम्हारे और नारद जी के साथ ही प्रजापति दक्ष के घर चलूंगा। इसलिए ब्रह्माजी आप नारद और अपने मानस पुत्रों का स्मरण कर उन्हें यहां बुला लें। साथ ही मेरे पार्षद भी दक्ष के घर चलेंगे।

नारद! तब भगवान शिव की आज्ञा पाकर मैंने तुम्हारा और अपने अन्य मानस पुत्रों का स्मरण किया। उन तक मेरा संदेश पहुंचते ही वे तुरंत कैलाश पर्वत पर उपस्थित हो गए। उन्होंने हर्षित मन से महादेव जी को और मुझे प्रणाम किया। तत्पश्चात शिवजी ने भगवान श्रीहरि विष्णु का स्मरण किया। भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी के साथ अपने विमान गरुड़ पर बैठ वहां आ गए। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि में रविवार को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में त्रिलोकीनाथ भगवान शिव की बारात धूमधाम से कैलाश पर्वत से निकली। उनकी बारात में मैं, देवी सरस्वती, विष्णुजी, देवी लक्ष्मी, सभी देवी-देवता, मुनि और शिवगण आनंदमग्न होकर चल रहे थे। रास्ते में खूब उत्सव हो रहा था। भगवान शिव की इच्छा से बैल, बाघ, सांप, जटा और चंद्रकला उनके आभूषण बन गए। भगवन् स्वयं नंदी पर सवार होकर प्रजापति दक्ष के घर पहुंचे।

द्वार पर भगवान शिव की बारात देखकर सभी हर्ष से फूले नहीं समा रहे थे। प्रजापति दक्ष ने विधिपूर्वक भगवान शिव की पूजा अर्चना की। उन्होंने सभी देवताओं का खूब आदर सत्कार किया तथा उन्हें घर के अंदर ले गए। दक्ष ने भगवान शिव को उत्तम आसन पर बैठाया और हम सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों को भी यथायोग्य स्थान दिया। सभी का भक्तिपूर्वक पूजन किया।

तत्पश्चात दक्ष ने मुझसे प्रार्थना की कि मैं ही वैवाहिक कार्य को संपन्न कराऊं। मैंने दक्ष की प्रार्थना को स्वीकार किया और वैवाहिक कार्य कराने लगा। शुभ लग्न और शुभ मुहूर्त देखकर प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती का हाथ भगवान शिव के हाथों में सौंप दिया और विधि-विधान से पाणिग्रहण संस्कार संपन्न कराया। उस समय वहां बहुत बड़ा उत्सव हुआ और नाच-गाना भी हुआ। सभी आनंदमग्न थे। हम सभी देवी देवताओं ने भगवान शिव और देवी सती की बहुत स्तुति की और उन्हें भक्तिपूर्वक प्रणाम किया। भगवान शिव और सती का विवाह हो जाने पर उनके माता-पिता बहुत प्रसन्न हुए और महादेव जी को अपनी कन्या का दान कर प्रजापति दक्ष कृतार्थ हो गए। महेश्वर का विवाह होने का पूरा संसार मंगल उत्सव मनाने लगा।