लिंग पूजन का महत्व – नवां अध्याय
नंदिकेश्वर कहते हैं - ब्रह्मा और विष्णु भगवान शिव को प्रणाम कर चुपचाप उनके दाएं- बाएं भाग में खड़े हो गए। उन्होंने पूजनीय महादेव जी को श्रेष्ठ आसन पर बैठाकर…
“विद्येश्वर संहिता” भारत के प्रसिद्ध ग्रन्थ शिव पुराण या महाशिवपुराण का प्रथम भाग है।
1. पापनाशक साधनों के विषय में प्रश्न – पहला अध्याय
2. शिव पुराण का परिचय और महिमा – दूसरा अध्याय
3. श्रवण, कीर्तन और मनन साधनों की श्रेष्ठता – तीसरा अध्याय
4. सनत्कुमार-व्यास संवाद – चौथा अध्याय
5. शिवलिंग का रहस्य एवं महत्व – पांचवां अध्याय
6. ब्रह्मा-विष्णुं युद्ध – छठा अध्याय
7. शिव निर्णय – सातवां अध्याय
8. आठवां अध्याय ब्रह्मा का अभिमान भंग
9. लिंग पूजन का महत्व – नवां अध्याय
10. प्रणव एवं पंचाक्षर मंत्र की महत्ता – दसवां अध्याय
11. शिवलिंग की स्थापना और पूजन विधि का वर्णन – ग्यारहवां अध्याय
12. मोक्षदायक पुण्य क्षेत्रों का वर्णन – बारहवां अध्याय
13. सदाचार, संध्यावंदन, प्रणव, गायत्री जाप एवं अग्निहोत्र की विधि तथा महिमा – तेरहवां अध्याय
14. अग्नियज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ का वर्णन – चौदहवां अध्याय
15. देश, काल, पात्र और दान का विचार – पंद्रहवां अध्याय
16. देव प्रतिमा का पूजन तथा शिवलिंग के वैज्ञानिक स्वरूप का विवेचन – सोलहवां अध्याय
17. प्रणव का माहात्म्य व शिवलोक के वैभव का वर्णन – सत्रहवां अध्याय
18. बंधन और मोक्ष का विवेचन – शिव के भस्मधारण का रहस्य – अठारहवां अध्याय
19. पूजा का भेद – उन्नीसवां अध्याय
20. पार्थिव लिंग पूजन की विधि – बीसवां अध्याय
21. शिवलिंग की संख्या – इक्कीसवां अध्याय
22. शिव नैवेद्य और बिल्व माहात्म्य – बाईसवां अध्याय
23. शिव नाम की महिमा – तेईसवां अध्याय
24. भस्मधारण की महिमा – चौबीसवां अध्याय
25. रुद्राक्ष माहात्म्य – पच्चीसवां अध्याय
नंदिकेश्वर कहते हैं - ब्रह्मा और विष्णु भगवान शिव को प्रणाम कर चुपचाप उनके दाएं- बाएं भाग में खड़े हो गए। उन्होंने पूजनीय महादेव जी को श्रेष्ठ आसन पर बैठाकर…
नंदिकेश्वर बोले – महादेव जी ब्रह्माजी के छल पर अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने अपने त्रिनेत्र ( तीसरी आंख) से भैरव को प्रकट किया और उन्हें आज्ञा दी कि वह तलवार…
महादेव जी बोले – पुत्रो ! मैं जानता हूं कि तुम ब्रह्मा और विष्णु के परस्पर युद्ध से बहुत दुखी हो। तुम डरो मत, मैं अपने गणों के साथ तुम्हारे…
नंदिकेश्वर बोले- पूर्व काल में श्री विष्णु अपनी पत्नी श्री लक्ष्मी जी के साथ शेष-शय्या पर शयन कर रहे थे। तब एक बार ब्रह्माजी वहां पहुंचे और विष्णुजी को पुत्र…
सूत जी कहते हैं - हे शौनक जी ! श्रवण, कीर्तन और मनन जैसे साधनों को करना प्रत्येक के लिए सुगम नहीं है। इसके लिए योग्य गुरु और आचार्य चाहिए।…
सूत जी कहते हैं - हे मुनियो ! इस साधन का माहात्म्य बताते समय मैं एक प्राचीन वृत्तांत का वर्णन करूंगा, जिसे आप ध्यानपूर्वक सुनें। बहुत पहले की बात है,…
व्यास जी कहते हैं - सूत जी के वचनों को सुनकर सभी महर्षि बोले- भगवन् आप वेदतुल्य, अद्भुत एवं पुण्यमयी शिव पुराण की कथा सुनाइए । सूत जी ने कहा…
सूत जी कहते हैं - साधु महात्माओ ! आपने बहुत अच्छी बात पूछी है। यह प्रश्न तीनों लोकों का हित करने वाला है। आप लोगों के स्नेहपूर्ण आग्रह पर, गुरुदेव…
जो आदि से लेकर अंत में हैं, नित्य मंगलमय हैं, जो आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले हैं, जिनके पांच मुख हैं और जो खेल-खेल में जगत की रचना,…