दक्ष का यज्ञ को पूर्ण करना – बयालीसवां अध्याय
ब्रह्माजी कहते हैं: नारद मुनि! इस प्रकार श्रीहरि, मेरे, देवताओं और ऋषि-मुनियों की स्तुति से भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए। वे हम सबको कृपादृष्टि से देखते हुए बोले प्रजापति दक्ष!…
यहां शिव पुराण के श्री रुद्र संहिता – द्वितीय खंड की अध्याय सूची प्रस्तुत की जा रही है:
पहला अध्याय – सती चरित्र
दूसरा अध्याय – शिव-पार्वती चरित्र
तीसरा अध्याय – कामदेव को ब्रह्माजी द्वारा शाप देना
चौथा अध्याय – काम-रति विवाह
पांचवां अध्याय – संध्या का चरित्र
छठा अध्याय – संध्या की तपस्या
सातवां अध्याय – संध्या की आत्माहुति
आठवां अध्याय – काम की हार
नवां अध्याय – ब्रह्मा का शिव विवाह हेतु प्रयत्न
दसवां अध्याय – ब्रह्मा-विष्णु संवाद
ग्यारहवां अध्याय – ब्रह्माजी की काली देवी से प्रार्थना
बारहवां अध्याय – दक्ष की तपस्या
तेरहवां अध्याय – दक्ष द्वारा मैथुनी सृष्टि का आरंभ
चौदहवां अध्याय – दक्ष की साठ कन्याओं का विवाह
पंद्रहवां अध्याय – सती की तपस्या
सोलहवां अध्याय – रुद्रदेव का सती से विवाह
सत्रहवां अध्याय – सती को शिव से वर की प्राप्ति
अठारहवां अध्याय – शिव और सती का विवाह
उन्नीसवां अध्याय – ब्रह्मा और विष्णु द्वारा शिव की स्तुति करना
बीसवां अध्याय – शिव-सती का विदा होकर कैलाश जाना
इक्कीसवां अध्याय – शिव-सती विहार
बाईसवां अध्याय – शिव-सती का हिमालय गमन
तेईसवां अध्याय – शिव द्वारा ज्ञान और मोक्ष का वर्णन
चौबीसवां अध्याय – शिव की आज्ञा से सती द्वारा श्रीराम की परीक्षा
पच्चीसवां अध्याय – श्रीराम का सती के संदेह को दूर करना
छब्बीसवां अध्याय – दक्ष का भगवान शिव को शाप देना
सत्ताईसवां अध्याय – दक्ष द्वारा महान यज्ञ का आयोजन
अट्ठाईसवां अध्याय – सती का दक्ष के यज्ञ में आना
उन्तीसवां अध्याय – यज्ञशाला में सती का अपमान
तीसवां अध्याय – सती द्वारा योगाग्नि से शरीर को भस्म करना
इकतीसवां अध्याय – आकाशवाणी
बत्तीसवां अध्याय – शिवजी का क्रोध
तेंतीसवां अध्याय – वीरभद्र और महाकाली का यज्ञशाला की ओर प्रस्थान
चौंतीसवां अध्याय – यज्ञ मण्डप में भय और विष्णु से जीवन रक्षा की प्रार्थना
पैंतीसवां अध्याय – वीरभद्र का आगमन
छत्तीसवां अध्याय – श्रीहरि और वीरभद्र का युद्ध
सैंतीसवां अध्याय – दक्ष का सिर काटकर यज्ञ कुंड में डालना
अड़तीसवां अध्याय – दधीचि क्षुव विवाद
उन्तालीसवां अध्याय – दधीचि का शाप और क्षुव पर अनुग्रह
चालीसवां अध्याय – ब्रह्माजी का कैलाश पर शिवजी से मिलना
इकतालीसवां अध्याय – शिव द्वारा दक्ष को जीवित करना
बयालीसवां अध्याय – दक्ष का यज्ञ को पूर्ण करना
ब्रह्माजी कहते हैं: नारद मुनि! इस प्रकार श्रीहरि, मेरे, देवताओं और ऋषि-मुनियों की स्तुति से भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए। वे हम सबको कृपादृष्टि से देखते हुए बोले प्रजापति दक्ष!…
देवताओं ने महादेव जी की बहुत स्तुति की और कहा- भगवन्, आप ही परमब्रह्म हैं और इस जगत में सर्वत्र व्याप्त हैं। आप मृत्युंजय हैं। चंद्रमा, सूर्य और अग्नि आपकी…
नारद जी ने कहा: हे महाभाग्य! हे विधाता! हे महाप्राण! आप शिवतत्व का ज्ञान रखते हैं। आपने मुझ पर बड़ी कृपा की जो इस अमृतमयी कथा का श्रवण मुझे कराया।…
ब्रह्माजी बोले: नारद! श्रीहरि विष्णु अपने प्रिय भक्त राजा क्षुव के हितों की रक्षा करने के लिए एक दिन ब्राह्मण का रूप धारण करके दधीचि मुनि के आश्रम में पहुंचे।…
सूत जी कहते हैं: हे महर्षियो! ब्रह्माजी के द्वारा कही हुई कथा को सुनकर नारद जी आश्चर्यचकित हो गए तथा उन्होंने ब्रह्माजी से पूछा कि भगवान विष्णु शिवजी को छोड़कर…
हे नारद! यज्ञशाला में उपस्थित सभी देवताओं को डराकर और मारकर वीरभद्र ने वहां से भगा दिया और जो बाकी बचे उनको भी मार डाला। तब उन्होंने यज्ञ के आयोजक…
ब्रह्माजी कहते हैं: नारद! जब शिवजी की आज्ञा पाकर वीरभद्र की विशाल सेना ने यज्ञशाला में प्रवेश किया तो वहां उपस्थित सभी देवता अपने प्राणों की रक्षा के लिए शिवगणों…
दक्ष बोले: हे विष्णु ! कृपानिधान! मैं बहुत भयभीत हूं। आपको ही मेरी और मेरे यज्ञ की रक्षा करनी है। प्रभु! आप ही इस यज्ञ के रक्षक हैं। आप साक्षात…
ब्रह्माजी बोले: हे नारद! जब वीरभद्र और महाकाली की विशाल चतुरंगिणी सेना अत्यंत तीव्र गति से दक्ष के यज्ञ की ओर बढ़ी तो यज्ञोत्सव में अनेक प्रकार के अपशकुन होने…
ब्रह्माजी कहते हैं: नारद! महेश्वर के आदेश को आदरपूर्वक सुनकर वीरभद्र ने शिवजी को प्रणाम किया। तत्पश्चात उनसे आज्ञा लेकर वीरभद्र यज्ञशाला की ओर चल दिए। शिवजी ने प्रलय की…
ब्रह्माजी कहते हैं: नारद! उस आकाशवाणी को सुनकर सभी देवता और मुनि आश्चर्य से इधर-उधर देखने लगे। उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला। वे अत्यंत भयभीत हो गए।…
ब्रह्माजी कहते हैं: हे नारद! जब दक्ष के उस महान यज्ञ में घोर उत्पात मचा हुआ था और सभी डर के कारण भयभीत हो रहे थे तो उस समय वहां…
ब्रह्माजी से श्री नारद जी ने पूछा: हे पितामह ! जब सती जी ऐसा कहकर मौन हो गईं त वहां क्या हुआ? देवी सती ने आगे क्या किया? इस प्रकार…
ब्रह्माजी बोले: हे नारद! दक्षकन्या देवी सती उस स्थान पर गईं जहां महान यज्ञोत्सव चल रहा था। जहां देवता, असुर और मुनि, साधु-संत अग्नि में मंत्रोच्चारण के साथ आहुतियां डाल…
ब्रह्माजी कहते हैं: नारद! जिस समय देवता और ऋषिगण दक्ष के यज्ञ में भाग लेने के लिए उत्सव करते हुए जा रहे थे, उस समय दक्ष की पुत्री सती अपनी…
ब्रह्माजी बोले: हे महर्षि नारद! इस प्रकार, क्रोधित व अपमानित दक्ष ने कनखल नामक तीर्थ में एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में उन्होंने सभी देवर्षियों, महर्षियों…